कुल्लू: भगवान भोलेनाथ को समर्पित श्रीखंड महादेव की यात्रा इस साल 14 जुलाई से शुरू होकर 27 जुलाई तक आधिकारिक तौर पर चलेगी. ऐसे में जिला प्रशासन ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं और सभी जरूरी इंतजाम पूरे किए जा रहे हैं.
श्रीखंड महादेव की यात्रा को अमरनाथ यात्रा से भी खतरनाक माना जाता है. ऐसे में सावन माह में होने वाली इस यात्रा पर जाने से पहले श्रद्धालुओं को भी अपना खास ख्याल रखने की जरूरत है क्योंकि इस यात्रा में 40 से अधिक श्रद्धालु साल 2010 से अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं, इस साल यात्रा शुरू होने से पहली 3 लोग इस यात्रा पर अपनी जान गंवा चुके हैं.
कुल्लू जिले के इस गांव से शुरू होती है यात्रा:
श्रीखंड महादेव यात्रा की अगर बात करें तो यह यात्रा जिला कुल्लू जिला के निरमंड में पड़ने वाले गांव जाओं से शुरू होती है. यह 35 किलोमीटर की पैदल यात्रा है जिसमें रास्ता बहुत ही दुर्गम है. इसी कारण इस यात्रा को सबसे मुश्किल धार्मिक यात्राओं से एक माना जाता है.
यात्रा के दौरान रहती है ऑक्सीजन की कमी:
ऊंचाई लगातार बढ़ने से इस यात्रा में श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी के कारण कई बार श्रद्धालुओं की चढ़ाई चढ़ते हुए जान भी गई है. हालांकि इस दुर्गम रास्ते में कुदरत की खूबसूरती हर पल चारों ओर देखने को मिलेगी. इस सफर के दौरान श्रद्धालुओं को सिंहगाड़, थाचड़ू, नयन सरोवर, भीमडवारी और पार्वती बाग जैसे सुंदर स्थानों का दर्शन करने का अवसर भी मिलेगा.
5,227 मीटर पर स्थित है ऊंची शिला:
भगवान भोलेनाथ को समर्पित श्रीखंड महादेव शिला समुद्रतल से 5,227 मीटर पर स्थित है. इस शिला के दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु इस यात्रा को करते हैं. इस शिला तक पहुंचने के लिए लंबे ग्लेशियर और बड़े-बड़े पत्थरों से होकर आना पड़ता है. जब यात्रा अंतिम दौर पर पहुंचती है तब यह यात्रा बहुत ही कठिन हो जाती है. वहीं, कुछ श्रद्धालु दूर से ही शिला के दर्शन कर वापस लौट जाते हैं.
ये है मान्यता:
निरमंड गांव के रहने वाले पंडित चमन शर्मा का कहना है कि श्रीखंड महादेव यात्रा कई सालों से चली आ रही है. धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद असुर भस्मासुर भगवान को भी भस्म करना चाहता था तब भगवान शिव यहीं पर आकर छिपे थे. बताया जाता है कि असुर भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा था कि वह अगर अपना हाथ किसी के सिर पर रखे तो वह भस्म हो जाए.
इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर को उसके हाथों से ही भस्म करवा दिया था. भस्मासुर के अंत के बाद भगवान शिव गुफा से निकले थे. मान्यता है कि महादेव यहां एक शिला के रूप में मौजूद हैं और भस्मासुर का आतंक देख मां पार्वती की आंखों में आंसू आ गए थे जिस कारण यहां एक सरोवर बन गया जिसे आज पार्वती बाग के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस सरोवर की एक धार यहां से 25 किलोमीटर दूर निरमंड के देव ढांक तक गिरती है.
महाभारत काल से जुड़ी मान्यता:
श्रीखंड महादेव की एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है. आनी के रहने वाले हरी राम शर्मा और जीवन शर्मा का कहना है कि पांडव अपने वनवास के दौरान यहां पहुंचे थे और उन्होंने अपना कुछ वक्त यहां बिताया था. यहां बड़ी-बड़ी शिलाओं को काटकर रखा गया है और कुछ गुफाएं भी मौजूद हैं. उनके अनुसार यह काम पांडु पुत्र भीम ने किया था जिसके निशान आज भी यहां मिलते हैं. यही वजह है कि यहां एक स्थान भीमडवार कहलाता है.
इसके अलावा यहां एक राक्षस रहता था जो यहां आने वाले भक्तों को मार देता था. भीम ने ही उस राक्षस का वध किया था और उसी राक्षस के खून के कारण यहां की जमीन लाल हो गई.
श्रीखंड महादेव यात्रा के लिए जिला प्रशासन ने भी तैयारियां पूरी कर ली हैं. कुल्लू पुलिस ने इस बार श्रीखंड महादेव यात्रा को 6 सेक्टरों में बांटा है जिसमें 70 पुलिसकर्मी सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रहेंगे.
प्रशासन ने सिंहगाड़ में पंजीकरण बूथ बनाया है. इसके साथ ही श्रद्धालुओं का मेडिकल चेकअप किया जाएगा और यहां पर भी पुलिस जवान तैनात रहेंगे. इसके अलावा थाचड़ू, कुंशा, भीम डवारी, पार्वती बाग बेस कैंप में भी पुलिस की व्यवस्था रहेगी.
कुल्लू पुलिस ने इसके लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं. श्रीखंड महादेव जाने वाले रास्तों की मरम्मत की जा रही है और जगह-जगह अस्थायी टॉयलेट्स बनाए जा रहे हैं. कुल्लू प्रशासन ने थाचड़ू, कुंशा, भीम डवारी, पार्वती बाग में बेस कैंप बनाए हैं जहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए टेंट लगाए गए हैं.
श्रद्धालु अपने साथ लाए टेंट का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस यात्रा पर श्रद्धालुओं को जत्थों में रवाना किया जाता है ताकि उनके रहने और खाने-पीने से लेकर अन्य व्यवस्थाएं आसानी से की जा सकें.
40 से अधिक लोगों की हो चुकी है मौत:
श्रीखंड महादेव की यात्रा सबसे कठिन यात्राओं में से एक है. यही कारण है कि शारीरिक और मानसिक रूप से फिट लोगों को ही इसकी इजाजत दी जाती है. कुल्लू प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2010 से अब तक करीब 40 से अधिक लोगों की यात्रा के दौरान मौत हो चुकी है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति शुगर, बीपी, सांस लेने जैसी किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो वह इस यात्रा पर बिल्कुल भी ना जाए. वहीं, मेडिकल कैंप में पहले सभी श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य की जांच होती है और फिट पाए जाने के बाद ही उन्हें आगे जाने की इजाजत दी जाती है.
हालांकि ऐसे हालात से निपटने के लिए डॉक्टरों से लेकर रेस्क्यू टीम मौजूद होती है लेकिन कई बार हालात खराब हो जाते हैं. श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए रूट तय होता है लेकिन कई बार कुछ लोग प्रशासन के आदेश के बावजूद गलत रास्तों से यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं और रास्ता भटकने पर अपनी जान जोखिम में डालते हैं. प्रशासन की नजर ऐसे लोगों पर भी रहती है जो बिना पंजीकरण या फिर कोई अन्य रूट लेकर इस यात्रा पर जाते हैं.
प्रशासन के दिशा निर्देशों के बावजूद चोरी-छिपे लोग ऐसे कदम उठाते हैं और अपनी जान खतरे में डाल देते हैं. श्रीखंड महादेव पहुंचने के लिए शिमला जिले के रामपुर और कुल्लू जिले के निरमंड से होकर बागीपुल और जाओं तक छोटी गाड़ियों, बसों आदि से पहुंचा जा सकता है जहां से आगे करीब 35 किमी. की दूरी पैदल तय करनी होती है. यात्रा के दौरान गर्म कपड़े, जूते, छाता, रेनकोट आदि अपने साथ रखें.
इस यात्रा को पूरा करने के लिए करीब 3 दिन का समय लगता है और उसके बाद यात्री वापस बेस कैंप पहुंचते हैं. डीसी कुल्लू तोरुल एस रवीश ने बताया "श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए प्रशासन ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं और यात्रा के लिए जो दूसरे रास्ते हैं वहा पर भी नजर रखी जा रही है ताकि चोरी छिपे कोई उस रास्ते से ना जा सके. श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर ही प्रशासन ने यह कदम उठाए हैं."
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