शिवपुरी : शिवपुरी जिले में कड़कड़ाती ठंड के बीच जिला परियोजना समन्वयक (DPC) दफेदार सिंह सिकरवार अपने अमले में शामिल बीआरसीसी बालकृष्ण ओझा व जनशिक्षक दीवान शर्मा, पूर्व जनशिक्षक अरविंद सरैया के साथ देर शाम आदिवासी बाहुल्य बारा और पतारा की बस्ती में पहुंचे. यहां पर रात्रि में अलाव जलाने के बाद स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों के अभिभावक इकट्ठा होने लगे. इतनी शीतलहर में रात को किसी अधिकारी को अपने बीच मौजूद देखकर अभिभावक अचरज में पड़ गए. फिर धीरे-धीरे सहजता लाने के लिए डीपीसी सिकरवार ने विशुद्ध देहाती भाषा में मजदूरी और खेती करने वाले आदिवासी वर्ग के अभिभावकों से अपनत्व के साथ संवाद शुरू किया.
अभिभावकों ने ली बच्चों को स्कूल भेजने की शपथ
डीपीसी सिकरवार ने तमाम उदाहरणों के सहारे के साथ ग्रामीणों को उन्हें शिक्षा का महत्व बताया. अलाव के सहारे शुरू हुई यह रात्रि चौपाल शिक्षा का अलख जगाने का आधार बन गई. इस दौरान अभिभावकों ने भी शपथ ली "वे अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजेंगे और प्रतिदिन उनकी मॉनीटरिंग भी करेंगे कि आज स्कूल में क्या पढ़ाया, होमवर्क दिया या नहीं, मध्याह्न भोजन में क्या और कैसा मिला". जिले में शिक्षा विभाग द्वारा शुरू की गई रात्रि चौपाल के सहारे स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने की इस कवायद को सराहना मिल रही है.
आदिवासी गांवों के स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी
जिले के सरकारी स्कूलों खासतौर पर मजदूर, खेतीहर व आदिवासी बाहुल्य वाले गांव के सरकारी स्कूलों में छात्र उपस्थिति लगातार कम पाई जा रही है. दोपहर के समय शिक्षक संपर्क के लिए बस्ती में पहुंचते हैं तो अधिकांश अभिभावक मजदूरी या खेती के कार्य पर निकल जाते हैं. ऐसे में डीपीसी सिकरवार ने नवाचार के तहत परहित संस्था के मनोज भदौरिया और अपने अमले के साथ इस रात्रि चौपाल की परिकल्पना सृजित की और शुक्रवार देर रात वे वारा और पतारा गांव में रात्रि चौपाल लगाने पहुंचे. अब इसे अन्य गांव में भी आगामी दिनों में जारी रखा जाएगा.
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ये फसल बर्बाद हुई तो भरपाई नहीं होगी
चौपाल के दौरान डीपीसी अभिभावकों से जुड़े और उन्होंने कहा कि यदि आपकी पकी-पकाई फसल ओलावृष्टि या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो जाए तो कितने साल में उसकी भरपाई हो जाती है. इस पर अभिभावक बोले "उभरने में तीन-चार साल लग जाते हैं." इसी बात पर डीपीसी ने कहा कि फसल के मामले में तो तीन-चार साल में भरपाई हो जाती है, लेकिन यदि बच्चों की शिक्षा की फसल उजड़ गई तो उसकी कभी भरपाई नहीं होगी. अमूमन मार्च अप्रैल में परिक्षा के समय आप लोग मजदूरी के लिए बाहर चले जाते हैं तो ऐसे में ध्यान में रखें कि बच्चों को अपने साथ न ले जाएं. किसी परिजन के साथ घर छोड़ जाएं ताकि वह परिक्षा देने से वंचित न रहें. बीआरसीसी बालकृष्ण ओझा ने कहा "बच्चे की शिक्षा के लिए मां की जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण होती है." दोनों अधिकारियों ने अपने मोबाइल नंबर भी अभिभावकों को दिए और आश्वस्त किया कि यदि स्कूल के संचालन में कोई कोताही नजर आए तो उन्हें फोन लगाकर अवगत कराएं .