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HC ने हिमाचल विधानसभा पर लगाई 50 हजार रुपये की कॉस्ट, ये है मामला - COST ON HIMACHAL VIDHAN SABHA

हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर एक शिकायत पर कोई कार्रवाई ना करने पर 50 हजार रुपये की कॉस्ट लगाई है. डिटेल में पढ़ें खबर...

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट शिमला (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 12, 2024, 8:16 PM IST

शिमला: हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के खिलाफ दी शिकायत पर कोई कार्रवाई ना करने पर 50 हजार रुपये की कॉस्ट लगाई है. न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने याचिकाकर्ता कमल जीत की याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा सचिव को आठ सप्ताह के भीतर अपने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मामले की जांच करने के आदेश भी दिए.

कोर्ट ने जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने और इसकी रिपोर्ट आगे की आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखने के आदेश भी दिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जूनियर ट्रांसलेटर के पद पर नियुक्ति देने के आदेश भी दिए. इस मामले में जिस कर्मी को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया गया था. वह पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे चुका है.

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में नियोक्ता द्वारा समय पर कार्रवाई करने से कतार में लगे अन्य अभ्यर्थियों को परेशानियों से बचाया जा सकता है. नियोक्ता से कम से कम यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह शिकायत पर किसी प्रकार की जांच शुरू करे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियुक्त व्यक्ति के पास पद के लिए अपेक्षित शैक्षिक मानदंड हैं या नहीं.

इस सामान्य ज्ञान तर्क को धता बताते हुए नियोक्ता विधानसभा द्वारा उपरोक्त सामान्य उपाय भी नहीं अपनाया गया. कोर्ट ने कहा कि फर्जी दस्तावेज अथवा नकली प्रमाणपत्र के आधार पर रोजगार प्राप्त करना एक गंभीर मामला है लेकिन विधानसभा ने इस पर आंखें मूंद लीं जिस कारण नियोक्ता का आचरण अशोभनीय है.

सूची में अगला स्थान होने के कारण याचिकाकर्ता को पद का हकदार माना जाना चाहिए. आश्चर्य की बात यह है कि याचिकाकर्ता को पद देने के बजाय विधानसभा ने विवादित पद को पुनः विज्ञापित किया. चयन प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू किया और यहां तक कि यह दलील देने की हद तक चला गया कि नई चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और परिणामस्वरूप रिट याचिका निष्फल हो गई थी.

कोर्ट ने याचिका स्वीकारते हुए विधानसभा को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को 11 सितम्बर 2019 को विज्ञापित जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के पद पर दो सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रदान करे. जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के रूप में याचिकाकर्ता की नियुक्ति पर वह अपनी काल्पनिक नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता, वेतन निर्धारण आदि के लिए पात्र होगा. वास्तविक वित्तीय लाभ याचिकाकर्ता को उसके वास्तविक पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से देय होंगे.

ये भी पढ़ें: HC का बड़ा आदेश: कॉन्ट्रैक्ट के बाद रेगुलर हुए कर्मियों को सालाना अर्जित वेतन वृद्धि देने के आदेश, 4 महीने में भुगतान करे सरकार

शिमला: हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के खिलाफ दी शिकायत पर कोई कार्रवाई ना करने पर 50 हजार रुपये की कॉस्ट लगाई है. न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने याचिकाकर्ता कमल जीत की याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा सचिव को आठ सप्ताह के भीतर अपने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मामले की जांच करने के आदेश भी दिए.

कोर्ट ने जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने और इसकी रिपोर्ट आगे की आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखने के आदेश भी दिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जूनियर ट्रांसलेटर के पद पर नियुक्ति देने के आदेश भी दिए. इस मामले में जिस कर्मी को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया गया था. वह पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे चुका है.

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में नियोक्ता द्वारा समय पर कार्रवाई करने से कतार में लगे अन्य अभ्यर्थियों को परेशानियों से बचाया जा सकता है. नियोक्ता से कम से कम यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह शिकायत पर किसी प्रकार की जांच शुरू करे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियुक्त व्यक्ति के पास पद के लिए अपेक्षित शैक्षिक मानदंड हैं या नहीं.

इस सामान्य ज्ञान तर्क को धता बताते हुए नियोक्ता विधानसभा द्वारा उपरोक्त सामान्य उपाय भी नहीं अपनाया गया. कोर्ट ने कहा कि फर्जी दस्तावेज अथवा नकली प्रमाणपत्र के आधार पर रोजगार प्राप्त करना एक गंभीर मामला है लेकिन विधानसभा ने इस पर आंखें मूंद लीं जिस कारण नियोक्ता का आचरण अशोभनीय है.

सूची में अगला स्थान होने के कारण याचिकाकर्ता को पद का हकदार माना जाना चाहिए. आश्चर्य की बात यह है कि याचिकाकर्ता को पद देने के बजाय विधानसभा ने विवादित पद को पुनः विज्ञापित किया. चयन प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू किया और यहां तक कि यह दलील देने की हद तक चला गया कि नई चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और परिणामस्वरूप रिट याचिका निष्फल हो गई थी.

कोर्ट ने याचिका स्वीकारते हुए विधानसभा को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को 11 सितम्बर 2019 को विज्ञापित जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के पद पर दो सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रदान करे. जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के रूप में याचिकाकर्ता की नियुक्ति पर वह अपनी काल्पनिक नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता, वेतन निर्धारण आदि के लिए पात्र होगा. वास्तविक वित्तीय लाभ याचिकाकर्ता को उसके वास्तविक पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से देय होंगे.

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