सरगुजा: हमेशा नया प्रयोग करने वाले सरगुजा पशुपालन विभाग ने एक बार फिर ऐसा प्रयोग किया है जिससे ग्रामीण आजीविका में बड़ा बदलाव आ सकता है. ऐसे ग्रामीण जिनकी अतिरिक्त आमदनी का साधन बकरा पालन है वे अब अफ्रीकन नस्ल के बकरे बकरियां पालकर करोड़पति बन सकते हैं.
सरगुजा पशु पालन विभाग ने पशुपालकों को बकरों का कृत्रिम गर्भधान (AI) करके ज्यादा वजन के बकरे तैयार करने का तरीका दिया. यह प्रयोग सफल हुआ और इस समय जिले में करीब 4 हजार से ज्यादा लोग उन्नत नस्ल के बकरे बकरियों का उत्पादन कर लाभ कमा रहे हैं. इन बकरों का वजन 30 से 40 किलो तक देखा गया. लेकिन अब पशुपालन विभाग अफ्रीकन बोयर नस्ल के बकरे बकरियों का कृत्रिम गर्भाधान कर रहा है जिससे ये नई योजना कमाल कर सकती हैं.
अफ्रीकन नस्ल के बकरे से पशुपालक होंगे मालामाल: वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ सीके मिश्रा बताते हैं "पशुपालन विभाग ने बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान के लिए 7800 सीमेन मंगाए थे, जिनमे जमुनापारी, सिरोही, बारबरी नाम की भारतीय नस्ल शामिल थी, लेकिन अब अफ्रीकन बोयर का सीमेन भी मंगाया गया है. छत्तीसगढ़ में पहली बार अफ्रीकन नस्ल के बकरे के सीमेन का उपयोग कृत्रिम गर्भाधान के लिये किया जा रहा है. सीमेन उत्तराखण्ड लाइव स्टाक डेवलपमेंट बोर्ड ऋषिकेश ने उपलब्ध कराया है, भारतीय नस्ल का एक एआई का सीमेन 25 रुपये में मिलता है जबकि अफ्रीकन नस्ल के बोयर का एक सीमेन 50 रुपये में पशु पालन विभाग खरीद रहा है"
1 बकरा बेचने पर मिलेंगे 70 हजार: लोकल बकरे का अधिकतम वजन 20 से 25 किलोग्राम होता है लेकिन नस्ल सुधार में मिली सफलता के बाद 40 से 45 किलो तक के बकरा-बकरी की बिक्री कर ग्रामीण लखपति बन रहे हैं. अब अफ्रीकन नस्ल के बकरे का कृत्रिम गर्भाधान कर 80 से 100 किलो तक के बकरा-बकरी ग्रामीणों के पास उपलब्ध होंगे. 700 रुपये प्रति किलो की दर से बिकने वाले बकरा के मांस के अनुपात में एक बकरा की बिक्री से 70 हजार तक की आय होगी.
अफ्रीकन बकरे की नस्ल का कृत्रिम गर्भाधान: पशुपालन विभाग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के उद्देश्य से पहले भी कई प्रयोग कर चुका है, जिसका पॉजिटिव रिजल्ट भी मिला है. अब नया प्रयोग अफ्रीकन बकरे का कृत्रिम गर्भाधान कर किया जा रहा है. ये प्रयोग सफल हुआ तो बकरा पालने वालों की लॉटरी लग सकती है. इसके लिए जिला पशु रोगी कल्याण समिति से भी मदद मिल रही है.