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वैज्ञानिक रविंद्र कुमार ने यूपी के किसानों को दिया गन्ने की सबसे प्रसिद्ध प्रजाति का विकल्प - MEERUT NEWS

वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. ये प्रजाति सीओ 0238 का विकल्प है.

वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया.
वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 8, 2025, 3:07 PM IST

Updated : Feb 8, 2025, 4:06 PM IST

मेरठ: उत्तर भारत में बड़े संख्या में गन्ने का उत्पादन होता है, जिसके लिए अलग-अलग वैरायटी है. हालांकि, जो सबसे ज्यादा प्रचलित वैरायटी रही है वह सीओ 0238 है, लेकिन इसमें कई गंभीर बीमारियां अब लग जाती हैं. ऐसे में ऐसे अन्नदाता जो गन्ने की फसल को ही उगाना पसंद करते हैं.

एक वक्त था जब यूपी, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत में गन्ना किसानों को सबसे ज्यादा गन्ने की प्रजाति सीओ 0238 पसंद आती थी, हालांकि, अभी भी यह काफी चलन में है, किसानों को ये बेहद ही पसंद भी है, लेकिन समय के साथ-साथ इस प्रजाति के गन्ने में अब कई बीमारियां भी पनप चुकी हैं. इससे अन्नदाता परेशान भी है. इसी बात को समझकर हरियाणा के करनाल के प्रधान वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. अब ये प्रजाति सीओ 0238 का विकल्प बन चुकी है.

वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. (Video Credit; ETV Bharat)

ईटीवी भारत ने हरियाणा के विख्यात करनाल गन्ना प्रजनन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक रविंद्र कुमार से बात की. रविंद्र सिंह को 15023 का जनक कहा जाता है. ये वैरायटी ऐसी है जो गन्ना किसानों को देशभर में लुभा रही है, इसी के साथ इसमें न सिर्फ इस वैरायटी के गन्ने में वजन अधिक है बल्कि गन्ना ठोस भी है और वर्तमान में यह गन्ना सबसे मिठा भी माना जाता है, वह भी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चर्चित वैरायटी सी ओ 0238.



वैज्ञानिक रविंद्र बताते हैं कि किसानों के लिए जो अब तक सबसे अच्छी गन्ने की वैरायटी थी, जो बेहद ही उपयोगी भी थी, वह 0238 थी, समय के साथ-साथ उसमें समस्याएं आनी शुरु हुईं तो करनाल गन्ना शोध संस्थान ने इसके विकल्प पर कई वर्षो तक काम किया. जिसके बाद दो वैरायटी इसके विकल्प के तौर पर विकसित की गईं, जिनमें एक है सीओ 0218, दूसरी सीओ 15023. वह बताते हैं क्योंकि 0238 एक आगे की वैरायटी है तो आगे की वैरायटी में ही यह दो अलग-अलग जो वैरायटी हैं ये बहुत अच्छी किस्म की वैरायटी हैं.


15023 के बारे में उन्होंने बताया कि इसकी खास बात यह है कि यह गन्ना बहुत ही ठोस होता है और बहुत ही अच्छी उत्पादन क्षमता इस प्रजाति के गन्ने में है. ज़ब इसकी पेराई होती है तो इसमें न सिर्फ रस अधिक निकलता है, बल्कि इसमें चीनी भी ज्यादा होती है. इसके अलावा इस प्रजाति की एक खास बात यह है कि इस यह फसल अन्य गाने की फसल के मुकाबले में 15 से 20 दिन पहले पक जाती है, जो कि किसानों के लिए कई मायने में उपयोगी भी साबित होती है. यह एक ऐसी प्रजाति है जो चीनी मिलों को 10 से 15 दिन पहले चलाने की क्षमता रखती है, क्योंकि यह पहले ही तैयार हो जाती है.


ऐसे में गन्ना किसान ने अगर अपने लिए खेत मे इस वैरायटी के गन्ने को उगाया है तो उस गन्ने की कटाई करने के बाद, अपनी अगली गेहूं की फसल को भी आसानी से ले सकते हैं और फिर अगली फसल जैसे गेहूं आदि का उत्पादन भी समय से बुवाई होने की वजह से अच्छा होता है. करनाल गन्ना शोध संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक रविंद्र कहते हैं कि अगर इस प्रजाति के गन्ने का किसान उपयोग करें तो इससे अभी जो अलग-अलग क्षेत्र में गाना मिले चलने का समय है वह शुगर मिल और 15 से 20 दिन पहले चल सकती हैं. इससे शुगर मिल को तो लाभ होगा ही, किसानों के लिए भी यह फायदे का सौदा होगा.


क्योंकि एक और भी महत्वपूर्ण बात है कि जब लेट तक चीनी मील चलती है तो फरवरी के बाद जब गर्मी बढ़ने लगती है ऐसे में मजदूर भी गन्ना कटाई के लिए नहीं मिल पाते हैं जिससे भी किसान को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और गर्मी में भी गाने का जो वजन है वह भी प्रभावित होता है. 15023 एक ऐसी गन्ना वैरायटी है, जो सबसे ज्यादा मीठी भी होती है.


उन्होंने कहा कि 15023 के अकेले गन्ने का वजन डेढ़ किलो ग्राम जबकि अगर थोड़ी सी मेहनत कर लें तो यह गन्ना ढाई किलोग्राम तक का भी हो जाता है. गन्ने की अगर बहुत ज्यादा हाईट होगी तो उसके गिरने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है. इसकी हाईट की अगर बात करें तो जरुरी हाईट भी इसकी काफी होती है.


उन्होंने कहा कि अगर इस गन्ने को अक्टूबर या नवंबर में भी उगाया जा रहा है तो जब सीजन में मिल चलेगा तो ये किसान को भी मुनाफा देगी और शुगर मिल के लिए भी उपयोगी है. प्रधान वैज्ञानिक रविंद्र बताते हैं कि 15023 गन्ने की किस्म की बुवाई अगर किसान फरवरी मार्च में करते हैं तो यह ध्यान रखें कि जिस प्रकार किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए यूरिया फसल में लगाते हैं उस तुलना में इन वैरायटी में नहीं लगाएं, क्योंकि फरवरी से अक्टूबर तक बहुत समय होता है, उसके बाद जब वह गन्ना शुगर मिल तक जायेगा तो तब तक फसल के ज्यादा बढ़ने के वजह से गिरने का खतरा बढ़ जाता है. जिससे गन्ने का वेट लॉस हो जाता है. ऐसे में जरूरी ये है कि इस गन्ने की मोटाई अच्छी होती है. इसकी मोटाई का फायदा उठाएं, समय पर खेत में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी अधिक चढ़ाएं तो 238 की तरह ही पैदावार दे सकती है.


वैज्ञानिक मानते हैं कि 0238 वैरायटी से पहले चीनी मिलों को करने की फसल का एरिया बढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था लेकिन गन्ने की सीओ- 238 वैरायटी को किसानो ने खूब पसंद किया, शुगर मिलों को भी बड़े पैमाने पर ऐसे 80 फीसदी तक क्षेत्रफल इसी वैरायटी के गन्ने का मिला जिससे उन्हें लाभ अधिक हुआ लेकिन एक मोनो कल्चर विकसित होने से इस प्रजाति में बीमारी जल्दी लग गईं.


अब अर्ली वैरायटी के तौर पर उत्तर भारत में सीओ -118 और सीओ -15023 पर लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा है. इसे किसानों के द्वारा लगाया जा सकता है, लेकिन वहीं साथ ही वह ये भी आगाह करते हैं कि सीओ 0238 की तरह इन दोनों वैरायटी को सौ प्रतिशत न उगाएं बल्कि यहां विविधकरण की जरूरत है. उससे बीमारी भी फ़सल में नहीं लगती है. पूरी तरह से रोग मुक्त है पैदावार की बात करें तो किसान एक एकड़ में 500 500 कुंतल से लेकर 600 कुंतल तक पैदावार ले सकता है.

यह भी पढ़ें: गन्ने की पत्ती व धान की पुआल का कमाल, सब्जियों की पैदावार में 12 से 24 प्रतिशत तक आया उछाल

यह भी पढ़ें: गन्ने का मूल्य बढ़ा सकती है योगी सरकार; कैबिनेट में 11 प्रस्तावों पर लगी मुहर, 20 को पेश होगा बजट




मेरठ: उत्तर भारत में बड़े संख्या में गन्ने का उत्पादन होता है, जिसके लिए अलग-अलग वैरायटी है. हालांकि, जो सबसे ज्यादा प्रचलित वैरायटी रही है वह सीओ 0238 है, लेकिन इसमें कई गंभीर बीमारियां अब लग जाती हैं. ऐसे में ऐसे अन्नदाता जो गन्ने की फसल को ही उगाना पसंद करते हैं.

एक वक्त था जब यूपी, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत में गन्ना किसानों को सबसे ज्यादा गन्ने की प्रजाति सीओ 0238 पसंद आती थी, हालांकि, अभी भी यह काफी चलन में है, किसानों को ये बेहद ही पसंद भी है, लेकिन समय के साथ-साथ इस प्रजाति के गन्ने में अब कई बीमारियां भी पनप चुकी हैं. इससे अन्नदाता परेशान भी है. इसी बात को समझकर हरियाणा के करनाल के प्रधान वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. अब ये प्रजाति सीओ 0238 का विकल्प बन चुकी है.

वैज्ञानिकों की टीम ने सीओ 15023 को ईजाद किया. (Video Credit; ETV Bharat)

ईटीवी भारत ने हरियाणा के विख्यात करनाल गन्ना प्रजनन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक रविंद्र कुमार से बात की. रविंद्र सिंह को 15023 का जनक कहा जाता है. ये वैरायटी ऐसी है जो गन्ना किसानों को देशभर में लुभा रही है, इसी के साथ इसमें न सिर्फ इस वैरायटी के गन्ने में वजन अधिक है बल्कि गन्ना ठोस भी है और वर्तमान में यह गन्ना सबसे मिठा भी माना जाता है, वह भी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चर्चित वैरायटी सी ओ 0238.



वैज्ञानिक रविंद्र बताते हैं कि किसानों के लिए जो अब तक सबसे अच्छी गन्ने की वैरायटी थी, जो बेहद ही उपयोगी भी थी, वह 0238 थी, समय के साथ-साथ उसमें समस्याएं आनी शुरु हुईं तो करनाल गन्ना शोध संस्थान ने इसके विकल्प पर कई वर्षो तक काम किया. जिसके बाद दो वैरायटी इसके विकल्प के तौर पर विकसित की गईं, जिनमें एक है सीओ 0218, दूसरी सीओ 15023. वह बताते हैं क्योंकि 0238 एक आगे की वैरायटी है तो आगे की वैरायटी में ही यह दो अलग-अलग जो वैरायटी हैं ये बहुत अच्छी किस्म की वैरायटी हैं.


15023 के बारे में उन्होंने बताया कि इसकी खास बात यह है कि यह गन्ना बहुत ही ठोस होता है और बहुत ही अच्छी उत्पादन क्षमता इस प्रजाति के गन्ने में है. ज़ब इसकी पेराई होती है तो इसमें न सिर्फ रस अधिक निकलता है, बल्कि इसमें चीनी भी ज्यादा होती है. इसके अलावा इस प्रजाति की एक खास बात यह है कि इस यह फसल अन्य गाने की फसल के मुकाबले में 15 से 20 दिन पहले पक जाती है, जो कि किसानों के लिए कई मायने में उपयोगी भी साबित होती है. यह एक ऐसी प्रजाति है जो चीनी मिलों को 10 से 15 दिन पहले चलाने की क्षमता रखती है, क्योंकि यह पहले ही तैयार हो जाती है.


ऐसे में गन्ना किसान ने अगर अपने लिए खेत मे इस वैरायटी के गन्ने को उगाया है तो उस गन्ने की कटाई करने के बाद, अपनी अगली गेहूं की फसल को भी आसानी से ले सकते हैं और फिर अगली फसल जैसे गेहूं आदि का उत्पादन भी समय से बुवाई होने की वजह से अच्छा होता है. करनाल गन्ना शोध संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक रविंद्र कहते हैं कि अगर इस प्रजाति के गन्ने का किसान उपयोग करें तो इससे अभी जो अलग-अलग क्षेत्र में गाना मिले चलने का समय है वह शुगर मिल और 15 से 20 दिन पहले चल सकती हैं. इससे शुगर मिल को तो लाभ होगा ही, किसानों के लिए भी यह फायदे का सौदा होगा.


क्योंकि एक और भी महत्वपूर्ण बात है कि जब लेट तक चीनी मील चलती है तो फरवरी के बाद जब गर्मी बढ़ने लगती है ऐसे में मजदूर भी गन्ना कटाई के लिए नहीं मिल पाते हैं जिससे भी किसान को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और गर्मी में भी गाने का जो वजन है वह भी प्रभावित होता है. 15023 एक ऐसी गन्ना वैरायटी है, जो सबसे ज्यादा मीठी भी होती है.


उन्होंने कहा कि 15023 के अकेले गन्ने का वजन डेढ़ किलो ग्राम जबकि अगर थोड़ी सी मेहनत कर लें तो यह गन्ना ढाई किलोग्राम तक का भी हो जाता है. गन्ने की अगर बहुत ज्यादा हाईट होगी तो उसके गिरने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है. इसकी हाईट की अगर बात करें तो जरुरी हाईट भी इसकी काफी होती है.


उन्होंने कहा कि अगर इस गन्ने को अक्टूबर या नवंबर में भी उगाया जा रहा है तो जब सीजन में मिल चलेगा तो ये किसान को भी मुनाफा देगी और शुगर मिल के लिए भी उपयोगी है. प्रधान वैज्ञानिक रविंद्र बताते हैं कि 15023 गन्ने की किस्म की बुवाई अगर किसान फरवरी मार्च में करते हैं तो यह ध्यान रखें कि जिस प्रकार किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए यूरिया फसल में लगाते हैं उस तुलना में इन वैरायटी में नहीं लगाएं, क्योंकि फरवरी से अक्टूबर तक बहुत समय होता है, उसके बाद जब वह गन्ना शुगर मिल तक जायेगा तो तब तक फसल के ज्यादा बढ़ने के वजह से गिरने का खतरा बढ़ जाता है. जिससे गन्ने का वेट लॉस हो जाता है. ऐसे में जरूरी ये है कि इस गन्ने की मोटाई अच्छी होती है. इसकी मोटाई का फायदा उठाएं, समय पर खेत में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी अधिक चढ़ाएं तो 238 की तरह ही पैदावार दे सकती है.


वैज्ञानिक मानते हैं कि 0238 वैरायटी से पहले चीनी मिलों को करने की फसल का एरिया बढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था लेकिन गन्ने की सीओ- 238 वैरायटी को किसानो ने खूब पसंद किया, शुगर मिलों को भी बड़े पैमाने पर ऐसे 80 फीसदी तक क्षेत्रफल इसी वैरायटी के गन्ने का मिला जिससे उन्हें लाभ अधिक हुआ लेकिन एक मोनो कल्चर विकसित होने से इस प्रजाति में बीमारी जल्दी लग गईं.


अब अर्ली वैरायटी के तौर पर उत्तर भारत में सीओ -118 और सीओ -15023 पर लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा है. इसे किसानों के द्वारा लगाया जा सकता है, लेकिन वहीं साथ ही वह ये भी आगाह करते हैं कि सीओ 0238 की तरह इन दोनों वैरायटी को सौ प्रतिशत न उगाएं बल्कि यहां विविधकरण की जरूरत है. उससे बीमारी भी फ़सल में नहीं लगती है. पूरी तरह से रोग मुक्त है पैदावार की बात करें तो किसान एक एकड़ में 500 500 कुंतल से लेकर 600 कुंतल तक पैदावार ले सकता है.

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Last Updated : Feb 8, 2025, 4:06 PM IST
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