करनाल: पूरे देश में चुनाव का माहौल है, जिसके चलते प्रत्येक पार्टी चुनाव प्रचार में लगी हुई है. हरियाणा में लोकसभा चुनाव 25 मई को होगा. लेकिन अब कई वर्ग मीटिंग करके ऐसे बयान दे रहे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं. जहां अभी तक हरियाणा में किसान भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी का विरोध करते हुए नजर आ रहे थे. अब हरियाणा सरपंच संगठन ने भी मीटिंग करके भारतीय जनता पार्टी के विरोध करने की बात कही है और इसकी शुरुआत करनाल लोकसभा से करेंगे. तीन दिन पहले उन्होंने करनाल में एक प्रदेश स्तर की मीटिंग की जिसमें प्रदेश वर्ग के सरपंच संगठन के पदाधिकारी पहुंचे और मीटिंग करके फैसला लिया गया. इस लोक सभा चुनाव में वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी का विरोध करेंगे और अगर वह गांव में वोट मांगने के लिए जाते हैं, तो उनको गांव में घुसने नहीं देंगे.
बीजेपी का विरोध क्यों?: दरअसल, आज से करीब डेढ़ वर्ष पहले हरियाणा में पंचायती राज के चुनाव हुए थे. चुनाव होने के बाद हरियाणा सरकार द्वारा सरपंच और पंचायती राज के कुछ नियमों में बदलाव किया गया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले जो सरपंच अपने गांव में 20 लाख तक के विकास कार्य खुद कर सकते थे, वह घटकर अब 5 लाख तक के विकास कार्य वो खुद कर सकते हैं. अगर उससे ऊपर का टेंडर होता है तो वह कॉन्ट्रैक्ट के जरिए किया जाएगा. जिसमें सरपंच की कोई भागीदारी नहीं होगी. वह सीधा कॉन्ट्रैक्ट ऑनलाइन भरा जाएगा और भी कई मुद्दों को पंचायती राज में सरपंचों के लिए बदलाव किए गए थे. जिसका विरोध सरपंचों के द्वारा किया गया.
लेकिन जब सरपंच पंचकूला में विरोध करने के लिए पहुंचे और सीएम आवास के बाहर प्रदर्शन का कार्यक्रम बनाया तो पंचकूला बॉर्डर पर पुलिस द्वारा उनके ऊपर लाठीचार्ज किया गया था. जिसमें काफी सरपंच घायल भी हुए थे और तब से ही सरपंच अब भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खड़े होते हुए दिखाई दे रहे हैं. अब उन्होंने सीधा-सीधा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जाने की बात भी कही है.
विरोध को लेकर क्या कहते हैं पूर्व सरपंच?: पूर्व सरपंच गजे सिंह ने कहा कि पिछले प्लान में वह सरपंच बने थे. उस समय भी हरियाणा सरकार द्वारा उनके नियमों में कई बदलाव किए थे. उस समय भी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए गए, लेकिन उस समय सरकार ने उनकी बात मान ली थी. लेकिन जैसे ही डेढ़ वर्ष पहले नए सरपंच बने हैं, तो सरकार ने नियम में बदलाव किया. जिसे काफी विरोध हो रहा है. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरपंचों ने भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने की बात कही है. तो कहीं ना कहीं सरपंच अपनी जगह पर ठीक है. क्योंकि गांव की समस्या सिर्फ सरपंच ही जान सकता है और वही उसका समाधान कर सकता है. उन्होंने कहा कि अगर सरपंच भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों का विरोध करते हैं तो निश्चित तौर पर इसका सीधा-सीधा असर भारतीय जनता पार्टी पर पड़ सकता है.
विरोधी सरपंचों से सहमत नहीं ग्रामीण!: पलवल गांव के निवासी ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा जो ई-टेंडरिंग शुरू की गई है, वह एक अच्छी पहल है. क्योंकि लाखों करोड़ों रुपए का बजट गांव में आता है. लेकिन गांव के सरपंच उस विकास कार्य को करवाने के बजाय उन पैसों को खा जाते हैं और गांव में विकास नहीं हो पता. उन्होंने कहा कि जो सरपंच पैसे नहीं खा सकते, वही सरकार की इस नीति का विरोध कर रहे हैं. अगर सही नियत से देखा जाए तो ई टेंडरिंग सही मायने में गांव के लिए एक अच्छी पहल है. जिसके चलते बिना किसी भ्रष्टाचार के गांव में विकास हो सकते हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि विरोधी पार्टियों के कहने पर कुछ सरपंच भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने की बात कह रहे हैं. अगर कोई अच्छी छवि का और ईमानदार सरपंच है, तो वह टेंडरिंग का समर्थन करेगा और साफ नियत से गांव का विकास करेगा.
सरपंचों के विरोध का मतदान पर नहीं होगा असर!: सतवीर शर्मा ने कहा कि सरपंचों द्वारा भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने की बात कही गई है. लेकिन लोकसभा चुनाव की अगर बात करें, उस पर इनका कोई इतना खास असर दिखाई नहीं देगा. उन्होंने कहा कि सरपंच और लोकसभा दोनों का चुनाव बहुत अलग होता है. लोकसभा और विधानसभा में इंसान अपने हिसाब मतदान करता है. अगर सरपंच के चुनाव की बात करें, तो उसमें गांव के हिसाब से मतदान किया जाता है और ऐसे में ग्रामीण सरपंचों की बात इतनी ज्यादा नहीं मानेंगे.
बीजेपी को होगा सरपंचों के विरोध का नुकसान?: हमने सभी वर्गों से बातचीत की ओर जाना कि उनका इस मुद्दे पर क्या कहना है, हालांकि पूर्व सरपंच और ग्रामीणों से बातचीत के बाद एक निष्कर्ष यह निकला है कि सरपंचों ने जो भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के विरोध की बात कही है, उसका कुछ असर तो भारतीय जनता पार्टी पर जरूर दिखाई देगा. वहीं, अगर ग्रामीण क्षेत्र में आपसी भाईचारे की बात करें तो सरपंचों के इस बयान के बाद हरियाणा के गांव में आपसी भाईचारा भी खराब हो सकता है. क्योंकि हर कोई अपनी अलग पार्टी और अपने अलग नेता को पसंद करता है. ऐसे में अगर कोई कांग्रेस पार्टी को पसंद करता है तो कोई भारतीय जनता पार्टी को पसंद करता है. अगर किसी ने भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी को अपने गांव में कार्यक्रम के लिए बुलाया है. सरपंच उसका विरोध करते हैं तो गांव में भी तनाव की स्थिति हो सकती है.
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