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पौराणिक ही नहीं वैज्ञानिक भी है भस्म, जानिए शोध में क्या चौंकाने वाले नतीजे आए - RESEARCH IN CCSU MEERUT

मेरठ चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भस्म के गुणों को लेकर क्या दावा किया?

Research in CCSU Meerut
Research in CCSU Meerut (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 15, 2025, 10:29 AM IST

मेरठ : चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने हाल ही में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. भौतिक विज्ञान विभाग में राख, भस्म या भभूति पर हुए शोध में कई चमत्कारिक गुणों का पता चला है. शोधकर्ताओं का दावा है कि राख, भस्म या भभूति का सिर्फ पौराणिक महत्व ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काफी उपयोगी है. शोध सफल होने के बाद अब इसे पेटेंट कराने की पहल की गई है.


राख, भस्म, भभूति या विभूति में कुछ अंतर भले ही हों, लेकिन इनके गुण अद्भुत हैं. पूर्व में कहा जाने लगा था कि राख से हाथ खराब हो जाते हैं. राख से कपड़े खराब होते हैं. राख से नालियों में सड़न हो जाती है, लेकिन अब जो वैज्ञानिक नतीजे सामने आए हैं. उससे राख के अद्भुत और चमत्कारिक गुण सामने आए हैं. राख में एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी बायोटिक गुण हैं. जिससे इसकी उपयोगिता काफी बढ़ गई है.

साधु संतों के लिए भस्म का महत्व.
साधु संतों के लिए भस्म का महत्व. (Photo Credit : ETV Bharat)

भस्म, भस्मी, भभूति या विभूति लोग मस्तक पर लगाते हैं और जुबान पर भी रखते हैं. यह सर्वविदित है कि महाकालेश्वर में नियमित भस्म आरती होती है. जिसे देखने दूर दूर से श्रद्धालु जाते हैं. माना जाता है कि विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर में पूर्व में भस्मार्ति में चिता की भस्मी चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यहां शुद्ध गोबर के कंडे की राख को छानकर इसे तैयार किए जाने की परंपरा है. यह भी परंपरा रही है कि पूजा पाठ के बाद राख को नहर या नदी में प्रवाहित किया जाता है. राख में चारकोल होने की वजह से जल को स्वच्छ रहता है. इसके अलावा दादी या नानी दूध-दही या उससे बने प्रोडक्ट का सेवन करने के बाद राख चाटने को कहती थीं. इसके पीछे का रहस्य यह है कि मुंह के अंदर मौजूद बैक्टीरिया को पनपने का मौका नहीं मिलता था. इसी प्रकार आंख में स्याही डालने का चलन था. जिससे आंख के सेल्स सुरक्षित रहते थे.

साधु संतों के लिए भस्म का महत्व.
साधु संतों के लिए भस्म का महत्व. (Photo Credit : ETV Bharat)


राख में होता क्या हैः चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि राख में सिलिका होती है, जिन पदार्थों से होकर विद्युत का प्रवाह नहीं होता, राख को परावैद्युत पदार्थ (डाइलेक्ट्रिक मैटेरियल) भी कहते हैं. राख क्षारीय है, अल्कलाइन पदार्थ है. वह बताते हैं कि 1931 का जो नोबेल के बारे में याद करें तो यह बात स्पष्ट तौर पर वर्णित है कि अल्कलाइन या क्षारीय में कोई भी बैक्टीरिया या वायरस जीवित नहीं रहता, यह प्रथा भी रही है कि अब भी राख का सेवन करना देश के कई हिस्सों में परंपरा में है.

रोग प्रतिरोधक है भस्म.
रोग प्रतिरोधक है भस्म. (Photo Credit : ETV Bharat)


कितनी पुरानी है तकनीकः प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि जीवन में राख का उपयोग प्राचीन काल की एक तकनीक है. विशेष रूप से गाय के गोबर की राख क्षारीय प्रकृति के कारण एक गुप्त औषधि है. जिसमें मुख्य रूप से सिलिका (SiO2) और कार्बन (C) तत्व होते हैं. राख का उपयोग रसोई के बर्तन साफ करने, दांत साफ करने, हाथ साफ करने, बैक्टीरिया को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता रहा है.

देखें ; सीसीएसयू में राख पर किए गए शोध पर ईटीवी भारत की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)


लैब में कैसी राख इस्तेमाल की गईः प्रोफेसर शर्मा के मुताबिक नैनोमटेरियल्स और एडवांस्ड इन नैनो रिसर्च में 2 पेटेंट (एक भारतीय और एक कोरियाई) भी प्रकाशित किए हैं. लैब में जो खास राख शोध सामग्री के तौर पर उपयोग में ली गई उसमें कृषि खाद्य अपशिष्ट, जैसे चावल की भूसी, गन्ने की खोई और खट्टे फलों के छिलकों से राख को तैयार किया गया. जिसमें स्टैफिलोकोकस ऑरियस एक ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया है जो कई तरह की नैदानिक बीमारियों का कारण बनता है और ऑस्टियोमाइलाइटिस, सेप्टिक गठिया और संक्रमण सहित प्रमुख हड्डी और जोड़ों के संक्रमण का सामान्य कारण है. दूसरा, एस्चेरिचिया कोली (ई. कोली) एक ग्राम-नेगेटिव बेसिलस है जो कई दस्त संबंधी बीमारियों का कारक जीव है, जिसमें ट्रैवेलर्स डायरिया और पेचिश भी शामिल है.

नागा जो राख शरीर पर लगाते उसे क्या कहतेः प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि आजकल चिकित्सा में कई प्रकार की भस्म का उपयोग भी किया जाता है, सोने, चांदी की भस्म आदि. प्राचीन काल में, भस्म को ऋषि मुनियों के द्वारा विभिन्न प्रकार के उपचारों के लिए रोगियों को दिया जाता था, जबकि भभूत की तैयारी के बारे में किसी को पता नहीं था. साधु या नागा साधु अपने शरीर पर भस्म या राख लगाते हैं, जिसे वे 'भभूत' भी कहते हैं. भस्म का उपयोग एक धार्मिक प्रतीक के रूप में किया जाता है और यह पवित्रता का प्रतीक भी मानी जाती है. ऐसे में भस्म न केवल ठंड और गर्मी से बचाती है, बल्कि यह उनके मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण का भी तरीका है. इस प्रक्रिया के जरिए नागा साधु अपने आप को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित और सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर लेते हैं.

यह भी पढ़ें : नए साल की शुरुआत बाबा महाकाल से.. 2024 की पहली भस्म आरती में पहुंचे लाखों भक्त - बाबा महाकाल की भस्म आरती

यह भी पढ़ें : BS Yediyurappa in Ujjain: बाबा महाकाल की शरण में कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा, पूजा अर्चना कर मांगी देश की खुशहाली की दुआ - कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा महाकाल मंदिर में

मेरठ : चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने हाल ही में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. भौतिक विज्ञान विभाग में राख, भस्म या भभूति पर हुए शोध में कई चमत्कारिक गुणों का पता चला है. शोधकर्ताओं का दावा है कि राख, भस्म या भभूति का सिर्फ पौराणिक महत्व ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काफी उपयोगी है. शोध सफल होने के बाद अब इसे पेटेंट कराने की पहल की गई है.


राख, भस्म, भभूति या विभूति में कुछ अंतर भले ही हों, लेकिन इनके गुण अद्भुत हैं. पूर्व में कहा जाने लगा था कि राख से हाथ खराब हो जाते हैं. राख से कपड़े खराब होते हैं. राख से नालियों में सड़न हो जाती है, लेकिन अब जो वैज्ञानिक नतीजे सामने आए हैं. उससे राख के अद्भुत और चमत्कारिक गुण सामने आए हैं. राख में एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी बायोटिक गुण हैं. जिससे इसकी उपयोगिता काफी बढ़ गई है.

साधु संतों के लिए भस्म का महत्व.
साधु संतों के लिए भस्म का महत्व. (Photo Credit : ETV Bharat)

भस्म, भस्मी, भभूति या विभूति लोग मस्तक पर लगाते हैं और जुबान पर भी रखते हैं. यह सर्वविदित है कि महाकालेश्वर में नियमित भस्म आरती होती है. जिसे देखने दूर दूर से श्रद्धालु जाते हैं. माना जाता है कि विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर में पूर्व में भस्मार्ति में चिता की भस्मी चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यहां शुद्ध गोबर के कंडे की राख को छानकर इसे तैयार किए जाने की परंपरा है. यह भी परंपरा रही है कि पूजा पाठ के बाद राख को नहर या नदी में प्रवाहित किया जाता है. राख में चारकोल होने की वजह से जल को स्वच्छ रहता है. इसके अलावा दादी या नानी दूध-दही या उससे बने प्रोडक्ट का सेवन करने के बाद राख चाटने को कहती थीं. इसके पीछे का रहस्य यह है कि मुंह के अंदर मौजूद बैक्टीरिया को पनपने का मौका नहीं मिलता था. इसी प्रकार आंख में स्याही डालने का चलन था. जिससे आंख के सेल्स सुरक्षित रहते थे.

साधु संतों के लिए भस्म का महत्व.
साधु संतों के लिए भस्म का महत्व. (Photo Credit : ETV Bharat)


राख में होता क्या हैः चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि राख में सिलिका होती है, जिन पदार्थों से होकर विद्युत का प्रवाह नहीं होता, राख को परावैद्युत पदार्थ (डाइलेक्ट्रिक मैटेरियल) भी कहते हैं. राख क्षारीय है, अल्कलाइन पदार्थ है. वह बताते हैं कि 1931 का जो नोबेल के बारे में याद करें तो यह बात स्पष्ट तौर पर वर्णित है कि अल्कलाइन या क्षारीय में कोई भी बैक्टीरिया या वायरस जीवित नहीं रहता, यह प्रथा भी रही है कि अब भी राख का सेवन करना देश के कई हिस्सों में परंपरा में है.

रोग प्रतिरोधक है भस्म.
रोग प्रतिरोधक है भस्म. (Photo Credit : ETV Bharat)


कितनी पुरानी है तकनीकः प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि जीवन में राख का उपयोग प्राचीन काल की एक तकनीक है. विशेष रूप से गाय के गोबर की राख क्षारीय प्रकृति के कारण एक गुप्त औषधि है. जिसमें मुख्य रूप से सिलिका (SiO2) और कार्बन (C) तत्व होते हैं. राख का उपयोग रसोई के बर्तन साफ करने, दांत साफ करने, हाथ साफ करने, बैक्टीरिया को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता रहा है.

देखें ; सीसीएसयू में राख पर किए गए शोध पर ईटीवी भारत की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)


लैब में कैसी राख इस्तेमाल की गईः प्रोफेसर शर्मा के मुताबिक नैनोमटेरियल्स और एडवांस्ड इन नैनो रिसर्च में 2 पेटेंट (एक भारतीय और एक कोरियाई) भी प्रकाशित किए हैं. लैब में जो खास राख शोध सामग्री के तौर पर उपयोग में ली गई उसमें कृषि खाद्य अपशिष्ट, जैसे चावल की भूसी, गन्ने की खोई और खट्टे फलों के छिलकों से राख को तैयार किया गया. जिसमें स्टैफिलोकोकस ऑरियस एक ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया है जो कई तरह की नैदानिक बीमारियों का कारण बनता है और ऑस्टियोमाइलाइटिस, सेप्टिक गठिया और संक्रमण सहित प्रमुख हड्डी और जोड़ों के संक्रमण का सामान्य कारण है. दूसरा, एस्चेरिचिया कोली (ई. कोली) एक ग्राम-नेगेटिव बेसिलस है जो कई दस्त संबंधी बीमारियों का कारक जीव है, जिसमें ट्रैवेलर्स डायरिया और पेचिश भी शामिल है.

नागा जो राख शरीर पर लगाते उसे क्या कहतेः प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि आजकल चिकित्सा में कई प्रकार की भस्म का उपयोग भी किया जाता है, सोने, चांदी की भस्म आदि. प्राचीन काल में, भस्म को ऋषि मुनियों के द्वारा विभिन्न प्रकार के उपचारों के लिए रोगियों को दिया जाता था, जबकि भभूत की तैयारी के बारे में किसी को पता नहीं था. साधु या नागा साधु अपने शरीर पर भस्म या राख लगाते हैं, जिसे वे 'भभूत' भी कहते हैं. भस्म का उपयोग एक धार्मिक प्रतीक के रूप में किया जाता है और यह पवित्रता का प्रतीक भी मानी जाती है. ऐसे में भस्म न केवल ठंड और गर्मी से बचाती है, बल्कि यह उनके मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण का भी तरीका है. इस प्रक्रिया के जरिए नागा साधु अपने आप को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित और सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर लेते हैं.

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