नई दिल्ली: देश के मशहूर उद्योगपति और पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा का बुधवार देर रात निधन हो गया. पूरा देश रतन टाटा को याद कर रहा है. इसी तरह दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी उन्हें याद किया गया. उनके निधन पर यहां स्थित रतन टाटा लाइब्रेरी (आरटीएल) में शोक व्यक्त किया गया और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई.
दरअसल, लाइब्रेरी वर्ष 1949 में स्थापित हुई थी. लेकिन, उसकी बिल्डिंग को विस्तार देने के लिए वर्ष 1980 में रतन टाटा ने एक लाख रुपए का योगदान दिया था, जो उसे समय एक बड़ी धनराशि थी. लाइब्रेरी में 1989 से कार्य कर रहे प्रदीप कुमार भरेजा ने बताया कि इसके बाद 1989 में रतन टाटा ट्रस्ट ने लाइब्रेरी भवन में एनेक्सी जोड़ने की लागत को आंशिक रूप से पूरा करने के लिए 2 लाख रुपये का अनुदान दिया, जो 1986 में 6 लाख रुपये की लागत से पूरा हुआ था.
रतन टाटा ट्रस्ट के इस योगदान से लाइब्रेरी को छात्रों के लिए अधिक उपयोगी बनाने की व्यवस्था हुई. इस तरह से दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का नाम रतन टाटा लाइब्रेरी पड़ा. एन ब्लॉक के जुड़ने से लाइब्रेरी को पत्रिकाओं के संग्रह को समेकित करने में मदद मिली. भूतल पर पत्रिकाओं की पुरानी फाइलें रखी जाती हैं और पहली मंजिल पर पत्रिकाओं के मौजूदा अंक रखे और प्रदर्शित किए जाते हैं. यह मंजिल वर्तमान पत्रिकाओं और धारावाहिकों के लिए एक विशेष वाचनालय के रूप में भी कार्य करती है.
डिप्टी लाइब्रेरियन अंगोम जीवन सिंह ने बताया कि लाइब्रेरी का वर्तमान में कुल संग्रह लगभग 3.37 लाख है, जिसमें पुस्तकें, पत्रिकाओं के जिल्दबंद खंड, सरकारी रिपोर्ट, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक डेटाबेस शामिल हैं. जो शोध छात्रों के लिए काफी उपयोगी है. छात्र छात्राएं प्रतिदिन अपने-अपने समय अनुसार यहां पर अपना अध्ययन करते हैं. मौजूदा समय में लाइब्रेरी में 270 छात्र-छात्राओं के बैठने की व्यवस्था है.
1992 में नीदरलैंड सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग के अपने विश्वव्यापी प्रयास के एक भाग के रूप में स्वर्गीय प्रो. सुखमय चक्रवर्ती की स्मृति में रतन टाटा लाइब्रेरी में प्रो. सुखमय चक्रवर्ती अध्ययन कक्ष की स्थापना के लिए पठन सामग्री के लिए 43,750 डच गिल्डर्स (लगभग 9,50,000 रुपये) की बंदोबस्ती सहित 80,000 डच गिल्डर्स का दान दिया था. वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने 1994 से 2004 के बीच दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स को पत्रिकाओं के संग्रह के रख-रखाव और रतन टाटा लाइब्रेरी के आधुनिकीकरण के लिए 7 करोड़ रुपये की निधि दी थी. इसके अलावा, मार्च 2012 में वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 7 करोड़ रुपये की अतिरिक्त निधि दी गई थी.
रतन टाटा लाइब्रेरी 1957 में विश्वविद्यालय लाइब्रेरी का एक हिस्सा बन गई, जब दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एक स्वायत्त संस्थान नहीं रहा और इसका प्रबंधन दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अपने हाथ में ले लिया गया. रतन टाटा लाइब्रेरी स्नातकोत्तर छात्रों, शोधार्थियों और विश्वविद्यालय तथा इसके संबद्ध महाविद्यालयों के संकाय सदस्यों को सेवाएं प्रदान करती है. लाइब्रेरी के 1300 नियमित सदस्यों के अलावा, भारत और विदेश से विद्वान अलग-अलग समय पर पुस्तकालय में आते हैं और इसके बहुमूल्य संसाधनों का उपयोग करते हैं.
पुस्तकालय को संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे कि एफएओ, आईएलओ, आईएमएफ, आईबीआरडी, जीएटीटी आदि द्वारा प्रकाशित प्रकाशनों के भंडार के रूप में नामित किया गया है. पुस्तकालय ने दुनिया भर में लगभग 70 संस्थानों के साथ समझौता किया है और भारत आर्थिक समीक्षा और सामयिक पत्रों (अर्थशास्त्र) के बदले में प्रकाशन प्राप्त करता है. डिप्टी लाइब्रेरियन ने बताया कि रतन टाटा लाइब्रेरी के अतिरिक्त, दिल्ली के बाहर स्थित विभिन्न पुस्तकालयों की पुस्तकें और पत्रिका संसाधन, डेलनेट के माध्यम से आरटीएल के सदस्यों को उपलब्ध कराए जाते हैं.
ये भी पढ़ें: