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रामोत्सव पर जानिए सरगुजिहा रामायण का इतिहास, कैसे 35 पन्नों में सिमट गई रामगाथा - राम प्यारे रसिक

Sargujiha Ramayana history on Ramotsav: भगवान राम के प्राणप्रतिष्ठा के मौके पर हम आपको सरगुजिहा रामायण के बारे में बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कैसे 35 पन्नों में सिमट गई राम जी की गाथा...

Sargujiha Ramayana history
सरगुजिहा रामायण का इतिहास
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 21, 2024, 10:35 PM IST

रामोत्सव पर जानिए सरगुजिहा रामायण का इतिहास

सरगुजा: अवध में प्रभु श्रीराम के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. पूरे देश में रामोत्सव को लेकर रामभक्तों में उत्साह का माहौल है. हर कोई राममय हो चुका है. इस बीच आज हम आपको सरगुजिहा रामायण के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं. दरअसल, सरगुजिहा रामायण सरगुजा में बेहद लोकप्रिय है.

राम प्यारे रसिक ने लिखा सरगुजिहा रामायण: हिन्दू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाने वाले भगवान राम के लिए कहा जाता है, "हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहही सुनही बहु विधि सब संता" यानी कि हरि अनंत हैं और उनकी कथाएं भी अनंत है. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की तो महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की. वाल्मीकि ने सम्पूर्ण रामायण लिखी, तो तुलसी दास की रामचरित मानस में सिर्फ राम के प्रसंग गौण हैं. देश भर में रामायण के कई रूप और प्रसंग हैं. ऐसा ही एक रूप सरगुजा में है, जो स्थानीय बोली सरगुजिहा में लिखा गया है. इसकी सबसे खास बात है कि यह बेहद संक्षिप्त है. इसे स्व. राम प्यारे रसिक ने लिखा है.

1980 में लिखी सरगुजिहा रामायण: इस बारे में स्व. राम प्यारे रसिक के बेटे प्रकाश कश्यप से ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "सरगुजा के साहित्यकार राम प्यारे रसिक ने यह प्रयोग 1978 में किया था. तब रसिक ने अम्बिकापुर रेडियो स्टेशन की स्थापना होने पर आकाशवाणी में रामायण के सरगुजिहा बोली में प्रसारण के लिए इसकी रचना की थी. लेकिन 1980 में इसमें संसोधन किए गए और 1980 में सरगुजिहा रामायण लिख दी गई. 35 पेज की इस रामायण को गीतों में समाहित किया गया है. इसकी भाषा हिंदी, संस्कृत या अवधी नहीं बल्कि सरगुजिहा है. जिस तरह की भाषा का प्रयोग सरगुजा के स्थानीय लोग करते हैं, उसी भाव के साथ रसिक ने गीत लिखे और उन गीतों में राम कथा को समाहित कर दिया."

सालों तक आकाशवाणी में किया जाता रहा प्रसारित: इन गीतों को अम्बिकापुर आकाशवाणी में सालों तक प्रसारित किया गया. सरगुजा में ये गीत बेहद लोकप्रिय हुए. आलम यह है कि ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में होने वाले भजन कीर्तन में लोग रसिक जी की सरगुजिहा रामायण के गीत गाते हैं. कुछ कलाकारों ने इन गीतों को संगीत संयोजन के साथ रिकॉर्ड भी किया. लेकिन वो बात भी पुरानी हो गई. बदलते संयत्रों के बीच अब इन गीतों को दोबारा रिकॉर्ड करने की जरूरत महसूस होती है. 1933 में जन्मे राम प्यारे रसिक का निधन जुलाई 2023 में हो चुका है.

बता दें कि सरगुजिहा रामायण के अलावा स्व. राम प्यारे रसिक ने कई रचनाओं का प्रकाशन किया है. कुछ हिंदी में हैं तो ज्यादातर सरगुजिहा बोली में है. साहित्यिक जगत में वो गीत और गजल के लिए जाने जाते रहे. लेकिन सरगुजिहा रामायण रसिक की वो अमर कृति बन गई, जो उनके बाद भी सरगुजा वासियों के जीवन में अहम स्थान रखेगी. सरगुजिहा लोग इस रामायण के जरिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन को समझ सके.

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रामोत्सव पर जानिए सरगुजिहा रामायण का इतिहास

सरगुजा: अवध में प्रभु श्रीराम के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. पूरे देश में रामोत्सव को लेकर रामभक्तों में उत्साह का माहौल है. हर कोई राममय हो चुका है. इस बीच आज हम आपको सरगुजिहा रामायण के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं. दरअसल, सरगुजिहा रामायण सरगुजा में बेहद लोकप्रिय है.

राम प्यारे रसिक ने लिखा सरगुजिहा रामायण: हिन्दू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाने वाले भगवान राम के लिए कहा जाता है, "हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहही सुनही बहु विधि सब संता" यानी कि हरि अनंत हैं और उनकी कथाएं भी अनंत है. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की तो महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की. वाल्मीकि ने सम्पूर्ण रामायण लिखी, तो तुलसी दास की रामचरित मानस में सिर्फ राम के प्रसंग गौण हैं. देश भर में रामायण के कई रूप और प्रसंग हैं. ऐसा ही एक रूप सरगुजा में है, जो स्थानीय बोली सरगुजिहा में लिखा गया है. इसकी सबसे खास बात है कि यह बेहद संक्षिप्त है. इसे स्व. राम प्यारे रसिक ने लिखा है.

1980 में लिखी सरगुजिहा रामायण: इस बारे में स्व. राम प्यारे रसिक के बेटे प्रकाश कश्यप से ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "सरगुजा के साहित्यकार राम प्यारे रसिक ने यह प्रयोग 1978 में किया था. तब रसिक ने अम्बिकापुर रेडियो स्टेशन की स्थापना होने पर आकाशवाणी में रामायण के सरगुजिहा बोली में प्रसारण के लिए इसकी रचना की थी. लेकिन 1980 में इसमें संसोधन किए गए और 1980 में सरगुजिहा रामायण लिख दी गई. 35 पेज की इस रामायण को गीतों में समाहित किया गया है. इसकी भाषा हिंदी, संस्कृत या अवधी नहीं बल्कि सरगुजिहा है. जिस तरह की भाषा का प्रयोग सरगुजा के स्थानीय लोग करते हैं, उसी भाव के साथ रसिक ने गीत लिखे और उन गीतों में राम कथा को समाहित कर दिया."

सालों तक आकाशवाणी में किया जाता रहा प्रसारित: इन गीतों को अम्बिकापुर आकाशवाणी में सालों तक प्रसारित किया गया. सरगुजा में ये गीत बेहद लोकप्रिय हुए. आलम यह है कि ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में होने वाले भजन कीर्तन में लोग रसिक जी की सरगुजिहा रामायण के गीत गाते हैं. कुछ कलाकारों ने इन गीतों को संगीत संयोजन के साथ रिकॉर्ड भी किया. लेकिन वो बात भी पुरानी हो गई. बदलते संयत्रों के बीच अब इन गीतों को दोबारा रिकॉर्ड करने की जरूरत महसूस होती है. 1933 में जन्मे राम प्यारे रसिक का निधन जुलाई 2023 में हो चुका है.

बता दें कि सरगुजिहा रामायण के अलावा स्व. राम प्यारे रसिक ने कई रचनाओं का प्रकाशन किया है. कुछ हिंदी में हैं तो ज्यादातर सरगुजिहा बोली में है. साहित्यिक जगत में वो गीत और गजल के लिए जाने जाते रहे. लेकिन सरगुजिहा रामायण रसिक की वो अमर कृति बन गई, जो उनके बाद भी सरगुजा वासियों के जीवन में अहम स्थान रखेगी. सरगुजिहा लोग इस रामायण के जरिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन को समझ सके.

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