जयपुर. राजनीति में कहा जाता रहा है कि न कोई स्थाई दुश्मन होता है और न कोई स्थाई दोस्त, लेकिन अब तो विचारधारा और सिद्धांत की बात भी नहीं कही जा सकती. इसकी बड़ी वजह है चुनाव आने के साथ दल बदल की स्थिति. विधानसभा चुनाव से अंतिम समय तक भी नेताओं का आना जाना लगा रहा. अब लोकसभा की रणभेरी बजने से पहले फिर से वही स्थिति दिखाई दे रही है, दो दिन पहले बड़ी संख्या में कांग्रेस के कई दिग्गजों ने जिनमें पूर्व विधायक और पूर्व मंत्रियों ने भाजपा का दामन थामा था. तो वहीं एक दिन पहले भाजपा सिंबल पर मौजूदा सांसद राहुल कस्वां भाजपा को गुडबाय बोलकर कांग्रेस के "हाथ" को थाम लिया. चुनाव से पहले चलने वाले इस दल बदल प्रोग्राम के बाद अब न पार्टियों में विचारधारा रही और न कोई सिद्धांत, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की और से अपनाई जा रही ये रणनीति कहीं "मिशन 25" पर ही संकट खड़ा न कर दे, इसकी सम्भवना की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है. राजनीति के पंडितों की मानें तो कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस के लिए कुछ सीटों पर समीकरण इस तरह से बन रहा है कि राजनीतिक निर्णय हुए तो मिशन 25 पर डेंट लग सकता है. चूरू , डूंगरपुर - बांसवाड़ा, गंगानगर - हनुमानगढ़ और नागौर की सियासी हवा बदल सकती है.
चूरू का बदलता समीकरण: सांसद राहुल कस्वां ने कमल को छोड़ हाथ को थाम लिया. कस्वां ने दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. अब चर्चा है कि कांग्रेस राहुल कस्वां को चूरू से लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर सकती है. कस्वां का भाजपा छोड़ने का सीधा कारण उनका लोकसभा टिकट कटना माना जा रहा है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और राहुल कस्वां की अदावत पिछले विधानसभा चुनाव में साफ़ दिखाई दी थी, जब हार के बाद राठौड़ ने कस्वां का सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन इशारों - इशारों में जयचंद करार दिया था. कस्वां के टिकट कटने के पीछे बड़ी वजह भी शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंची शिकायत मानी जा रही है. कस्वां की कांग्रेस में शामिल होना इस बात की इशारा करता है कि चूरू से कांग्रेस राहुल कसवा पर दांव खेल सकती है, अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए चूरू लोकसभा सीट पर ज्यादा मेहनत की जरूरत होगी. बता दें कि बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद राहुल कस्वां का टिकट काट कर पैरा ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट देवेंद्र झाझड़िया को प्रत्याशी बनाया है.
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गठबंधन रोकेगा हैट्रिक ? : लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस अपने पत्ते नहीं खोल रही है, बीजेपी की रणनीति के बाद ही कांग्रेस आगे बढ़ेगी, लेकिन जिस तरह से सियासी गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस प्रदेश की कुछ सीटों पर गठबंधन कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो भी बीजेपी के लिए चुनौती पूर्ण हो सकता है और मिशन 25 और हैट्रिक पर ब्रेक लग सकता है. नागौर में वर्ष 2019 के चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से गठबंधन किया था, जिसमे आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार बीजेपी ने किसी भी सीट पर गठबंधन नहीं किया, नागौर सीट के लिए कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई ज्योति मिर्धा को प्रत्याशी बना दिया. ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के बीच राजनीतिक अदावत की खबरें सामने आती रहती है. चर्चा है कि हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के साथ इस सीट के लिए गठबंधन कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो नागौर लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए मजबूत हो सकती है. ख़ास बात है 2019 के चुनाव में बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा को ही हराया था, उस समय ज्योति कांग्रेस से तो बेनीवाल बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में आमने-सामने थे. इसी तरह से बांसवाड़ा - डूंगरपुर लोकसभ सीट भी बीजेपी के लिए मुश्किलें भरी हो सकती है. बीजेपी ने इस सीट पर भी कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए महेंद्र जीत सिंह मालवीय को प्रत्याशी बनाया है. सूत्रों की मानें तो इस सीट पर कांग्रेस BAP भारतीय आदिवसी पार्टी से गठबंधन कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो आदिवासियों में बड़ी तेजी से प्रभाव जमा रही बाप बीजेपी मिशन 25 में डेंट का काम कर सकती है. इसी तरह से चर्चा यह भी है कि गंगानगर - हनुमानगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस सीपीएम से गठबंधन करने पर विचार कर रही है. गंगानगर और हनुमानगढ़ में सीपीएम का बड़ा प्रभाव रहा है, ऐसे में कांग्रेस और सीपीएम मिल कर चुनाव लड़ती है तो बीजेपी के लिए संघर्ष की स्थिति बन सकती है.
खोने को कुछ नहीं : राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार श्यामसुंदर शर्मा कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास खोने को ज्यादा कुछ नहीं है. पिछले दो बार के 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं हुई थी. ऐसे में अब अगर राम मंदिर के नाम के बीच बनी लहर पर ब्रेक लगाना है तो कांग्रेस को रणनीतिक तौर पर कुछ कठोर फैसले लेने होंगे. चूरू से राहुल कस्वां को टिकट देना कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है. इसी तरह से डूंगरपुर - बांसवाड़ा में BAP के साथ गठबंधन पार्टी को मजबूत स्थिति में सकता है. इसी तरह से जाट समाज में बड़ी पकड़ रखने वाले हनुमान बेनीवाल के साथ नागौर सीट पर गठबंधन होता है तो कांग्रेस अपने खाते में एक सीट जोड़ सकती है. इसी तरह से गंगानगर - हनुमानगढ़ में सीपीएम के साथ मिलकर अगर कांग्रेस चुनाव मैदान उतरती है तो इससे भी चुनावी हवाओं में परिवर्तन दिखाई दे सकता है. इसके साथ ही श्याम सुंदर शर्मा यह भी कहते हैं कि कांग्रेस को अपने वरिष्ठ और जनाधार वाले नेताओं को चुनावी मैदान उतरना चाहिए, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जोधपुर से, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को टोंक- सवाई माधोपुर या अजमेर लोकसभा सीट से , कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को सीकर से, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को जयपुर ग्रामीण या भीलवाड़ा, हरीश चौधरी को बाड़मेर से चुनाव मैदान में उतारती है तो बीजेपी की मिशन 25 पर डेंट लग सकता है.