जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने खाद्य पदार्थों में मिलावट से कैंसर सहित अन्य जानलेवा बीमारियां होने पर चिंता जताते हुए इसे रोकने के लिए बनाने कानून का प्रभावी क्रियान्वयन करने को कहा है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, कृषि विभाग के साथ-साथ राज्य के मुख्य सचिव, एसीएस गृह, एसीएस खाद्य सुरक्षा और एसीएस स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश इस संबंध में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए दिए.
शुद्ध के लिए युद्ध अभियान को त्योहारों तक न करें सीमित : अदालत ने कहा कि संबंधित अधिकारी खाद्य पदार्थों में मिलावट को लेकर नियमित सैंपल की जांच करें और हर माह के अंत में अदालत में रिपोर्ट पेश कर इस संबंध में उठाए गए कदमों की जानकारी दें. अदालत ने कहा कि आज लोग बहुत जिम्मेदारियों को पूरा करने में व्यस्त हैं. ऐसे में हम यह जानने के लिए बहुत कम समय देते हैं कि जो हम रोज खा रहे हैं, वह सुरक्षित है या नहीं. अदालत ने यह भी कहा कि वर्ष 2020 में खाद्य सुरक्षा मानक बिल बनाया गया था, लेकिन उसे अब तक कानूनी रूप नहीं दिया गया है. अदालत ने कहा कि सरकार मिलावट के मुद्दे को गंभीरता से लें, ताकि जीवन बचाया जा सके. अदालत ने राज्य सरकार को कहा कि शुद्ध के लिए युद्ध अभियान को त्योहार या शादी के सीजन तक सीमित नहीं रखा जाए.
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अदालत ने मिलावट पर अंकुश लगाने और इसकी मॉनिटरिंग के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय कमेटी के साथ-साथ संबंधित कलेक्टरों की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने को कहा है. अदालत ने जोधपुर और जयपुर के सभी वरिष्ठ अधिवक्ताओं, बार काउंसिल के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सहित अन्य वकीलों को कहा है कि वह इस संबंध में अदालत में अपना सहयोग प्रदान करें. इसके साथ ही अदालत ने आदेश की पालना के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय व मुख्य सचिव को आदेश की कॉपी भेजी है.
सुरक्षित नहीं खाद्य सामग्री : अदालत ने कहा कि खाद्य पदार्थों में मिलावट से कैंसर सहित अन्य जानलेवा बीमारियां हो रही हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार 20 फीसदी खाद्य पदार्थ मिलावटी या तय मानक स्तर के नहीं है. वहीं, खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वे के अनुसार 70 फीसदी दूध में पानी मिला होता है. सर्वे में दूध में डिटर्जेंट भी मिला है.
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अधिनियम से समस्या निदान नहीं : अदालत ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2006 समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं करता. अधिनियम असंगठित क्षेत्र, हॉकर्स आदि पर लागू न होकर सिर्फ प्रोसेसिंग यूनिट पर ही लागू होता है. इसके अलावा सैंपल जांचने की लैब की भी कमी है. तकनीक के अभाव में खाद्य प्राधिकारी उचित निगरानी नहीं रख पाते हैं.
हाईकोर्ट ने यह दिए निर्देश
- केन्द्र और राज्य सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2006 को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाए.
- राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकारी मिलावट को लेकर हाई रिस्क एरिया और समय चिह्नित करें.
- प्राधिकारी उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशाला का संचालन सुनिश्चित करें.
- सीएस और कलेक्टर की अध्यक्षता में राज्य व जिला स्तरीय कमेटी का गठन.
- केन्द्र व राज्य सरकार वेबसाइट बनाएं, जिसमें खाद्य सुरक्षा अधिकारियों, जिम्मेदार अफसरों के संपर्क नंबर और टोल फ्री नंबर जारी करें.
- शुद्ध के लिए युद्ध अभियान की प्रभावी क्रियान्वयन किया जाए.