ETV Bharat / state

हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली बेटी से दुष्कर्म के मामले में मिली सजा की रद्द, जांच अधिकारी पर कार्रवाई के आदेश - Rajasthan High Court

author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 21, 2024, 9:48 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म के मामले में मिली सजा को रद्द कर दिया है. साथ ही डीजीपी को जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है.

COURT HAS CANCELED THE SENTENCE,  ACCUSED IN THE CASE OF RAPING
राजस्थान हाईकोर्ट . (Etv Bharat jaipur)

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली पुत्री के साथ दुष्कर्म के आरोप में शहर की सती निवारण अदालत की ओर से 27 फरवरी, 1992 को सुनाई सात साल की सजा को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने डीजीपी को आदेश दिए हैं कि वह प्रकरण में जांच अधिकारी रहे पुलिसकर्मी के आचरण की जांच करें और उसे सुनवाई का मौका देने के बाद नियमानुसार कार्रवाई करें. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश नाबालिग के सौतेले पिता की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बयान दर्ज किए जाएं, लेकिन अनुसंधान अधिकारी ने रिपोर्ट को जांच में रखकर बयान दर्ज किए और बाद में एफआईआर दर्ज की. अदालत ने कहा कि यह बडे़ आश्चर्य की बात है कि घटना में तीन बार दुष्कर्म का आरोप लगाया गया है, लेकिन जांच अधिकारी ने मौका का नक्शा मौका बनाना और पीड़िता को मौके पर ले जाना जरूरी नहीं समझा. इसके अलावा पीड़िता से नमूना लेकर एफएसएल में भेजा गया, लेकिन रिपोर्ट को अदालत में पेश ही नहीं किया गया. याचिका में अधिवक्ता सुधीर जैन ने अदालत को बताया कि नाबालिग की मां ने याचिकाकर्ता से दूसरा विवाह किया था.

पढ़ेंः हाईकोर्ट ने की सीआई कानूनगो और कांस्टेबल की हत्या के पांच अभियुक्तों की उम्रकैद की सजा निलंबित - Rajasthan High Court

पहले विवाह से उसके नाबालिग और एक पुत्र हुआ था. नाबालिग की मां ने रामगंज थाने में 22 जून, 1990 को रिपोर्ट दी कि उसके पति ने घर में अकेला पाकर उसकी नाबालिग बेटी से दुष्कर्म किया. रिपोर्ट में कहा गया कि बेटी ने सौतेले पिता की ओर से तीन बार दुष्कर्म करने की बात कही. रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने एक जुलाई को बयान दर्ज किए और 2 जुलाई को एफआईआर दर्ज कर याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया. वहीं, सती निवारण कोर्ट ने उसे सात साल की सजा सुना दी. याचिका में कहा गया कि रिपोर्ट कथित घटना के दो साल बाद दर्ज कराई गई है. इसके अलावा मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर पर किसी तरह की चोट भी नहीं आई. वहीं, नाबालिग की मां भी अदालत में पक्षद्रोही हुई है. ऐसे में उसकी सजा के आदेश को रद्द किया जाए. इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता की सजा को रद्द करते हुए जांच अधिकारी के खिलाफ डीजीपी को कार्रवाई के लिए कहा है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली पुत्री के साथ दुष्कर्म के आरोप में शहर की सती निवारण अदालत की ओर से 27 फरवरी, 1992 को सुनाई सात साल की सजा को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने डीजीपी को आदेश दिए हैं कि वह प्रकरण में जांच अधिकारी रहे पुलिसकर्मी के आचरण की जांच करें और उसे सुनवाई का मौका देने के बाद नियमानुसार कार्रवाई करें. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश नाबालिग के सौतेले पिता की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बयान दर्ज किए जाएं, लेकिन अनुसंधान अधिकारी ने रिपोर्ट को जांच में रखकर बयान दर्ज किए और बाद में एफआईआर दर्ज की. अदालत ने कहा कि यह बडे़ आश्चर्य की बात है कि घटना में तीन बार दुष्कर्म का आरोप लगाया गया है, लेकिन जांच अधिकारी ने मौका का नक्शा मौका बनाना और पीड़िता को मौके पर ले जाना जरूरी नहीं समझा. इसके अलावा पीड़िता से नमूना लेकर एफएसएल में भेजा गया, लेकिन रिपोर्ट को अदालत में पेश ही नहीं किया गया. याचिका में अधिवक्ता सुधीर जैन ने अदालत को बताया कि नाबालिग की मां ने याचिकाकर्ता से दूसरा विवाह किया था.

पढ़ेंः हाईकोर्ट ने की सीआई कानूनगो और कांस्टेबल की हत्या के पांच अभियुक्तों की उम्रकैद की सजा निलंबित - Rajasthan High Court

पहले विवाह से उसके नाबालिग और एक पुत्र हुआ था. नाबालिग की मां ने रामगंज थाने में 22 जून, 1990 को रिपोर्ट दी कि उसके पति ने घर में अकेला पाकर उसकी नाबालिग बेटी से दुष्कर्म किया. रिपोर्ट में कहा गया कि बेटी ने सौतेले पिता की ओर से तीन बार दुष्कर्म करने की बात कही. रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने एक जुलाई को बयान दर्ज किए और 2 जुलाई को एफआईआर दर्ज कर याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया. वहीं, सती निवारण कोर्ट ने उसे सात साल की सजा सुना दी. याचिका में कहा गया कि रिपोर्ट कथित घटना के दो साल बाद दर्ज कराई गई है. इसके अलावा मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर पर किसी तरह की चोट भी नहीं आई. वहीं, नाबालिग की मां भी अदालत में पक्षद्रोही हुई है. ऐसे में उसकी सजा के आदेश को रद्द किया जाए. इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता की सजा को रद्द करते हुए जांच अधिकारी के खिलाफ डीजीपी को कार्रवाई के लिए कहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.