जयपुर : प्रदेश की सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं. इन 7 सीटों में देवली-उनियारा, सलूंबर, रामगढ़, दौसा, चौरासी, खींवसर और झुंझुनू विधानसभा सीट शामिल है. सभी विधानसभा सीटों के सियासी मिजाज को देखें तो इनमें से झुंझुनू एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां पर बीजेपी को हर बार अपना प्रत्याशी बदलना पड़ता है. फिर वह विधानसभा के चुनाव रहे हो या लोकसभा के. हालांकि, भाजपा को अपने इस फार्मूले में ज्यादातर उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा है. क्या है झुंझुनू के विधानसभा सीट के प्रत्याशियों आंकड़ो का गणित देखिए इस रिपोर्ट में.
1996 में हुआ था झुंझुनू में उपचुनाव : यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. इस सीट पर अब तक हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी दो बार ही जीती है, हालांकि उपचुनाव केवल एक बार 1996 में हुए, तब भाजपा के मूलसिंह शेखावत ने जीत हासिल की थी. शेखावत ने बृजेंद्र ओला को हराया था. झुंझुनू जिले में लगातार तीसरा अवसर है, जब विधायक ने एमपी का चुनाव जीता है. वर्ष 2014 में भाजपा की संतोष अहलावत ने कांग्रेस की राजबाला ओला को हराकर लोकसभा का चुनाव जीता था. इससे सूरजगढ़ में उपचुनाव हुए. यहां भाजपा के दिगबर सिंह को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के श्रवण कुमार की जीत हुई थी. इसके बाद वर्ष 2019 में भाजपा के नरेन्द्र कुमार ने कांग्रेस के श्रवण कुमार को हराकर लोकसभा चुनाव जीता. इससे मंडावा में उपचुनाव हुए. यहां कांग्रेस की रीटा चौधरी ने भाजपा प्रत्याशी सुशीला सीगड़ा को हराया. झुंझुनू सीट पर पहले जब उप चुनाव हुआ था, तब शीशराम ओला के पहली बार सांसद बनने पर हुआ था. अब शीशराम के बेटे बृजेन्द्र ओला के सांसद बनने के कारण उपचुनाव होंगे.
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बीजेपी ने हर बार बदला प्रत्याशी : झुंझुनू उन विधानसभा सीटों में है जहां पर भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों में ही प्रत्याशियों को बदला है. झुंझुनू की राजनीति को बारीकी से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार मोरवाल कहते हैं कि झुंझुनू जिले की सियासत अपने आप में अन्य जिलों की अपेक्षा अलग रही है. यहां पर एक पार्टी ने तो हमेशा प्रत्याशी बदलते हुए कार्यकर्ताओं को मौका दिया, जबकि कांग्रेस ने कमोबेश हर बार एक ही परिवार पर भरोसा जताया है. मोरवाल कहते हैं बीजेपी ने 1980 से लेकर अब तक बीजेपी ने अलग अलग कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का अवसर दिया,इसके विपरीत कांग्रेस ने एक को टिकट दिया, ओला परिवार इस बार 19 वां चुनाव लड़ेगा. 5 बार शीशराम ओला सांसद, 4 विधायक रहे, 7 बार विधानसभा का चुनाव बृजेन्द्र ओला ने लड़ा है. एक बार सांसद बने, कुल मिला कर कांग्रेस ने किसी अन्य कार्यकर्ता पर भरोसा नही किया.
विधानसभा में यह रही स्थिति
- 1980 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस आई पार्टी की प्रत्याशी सुमित्रा सिंह को समर्थन दिया, जबकि कांग्रेस शीशराम ओला को टिकट दिया, जिसमें शीशराम ओला की जीत हुई.
- 1985 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने चुनाव नहीं लड़ा. निर्दलीय प्रत्याशी नरोत्तम लाल जोशी को समर्थन दिया, जबकि कांग्रेस ने शीशराम ओला को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में भी शीशराम ओला की जीत हुई.
- 1990 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने जनता दल के साथ समझौते में मोहम्मद माहिर आजाद को समर्थन दिया. कांग्रेस ने फिर शीशराम ओला को मैदान में उतारा. इस चुनाव में ओला को हार का सामना करना पड़ा और माहिर आजाद की जीत हुई.
- 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार सांवरमल वर्मा को टिकट दिया. कांग्रेस से फिर शीशराम ओला को टिकट दिया. इस चुनाव में ओला की जीत हुई.
- 1996 शीशराम ओला के सांसद बनने के बाद उपचुनाव हुए. इसमें बीजेपी ने डॉ मूल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने ओला परिवार से हटकर सुमित्रा सिंह को मैदान में उतारा. वहीं, शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र ओला ने तिवाड़ी कांग्रेस से चुनाव में ताल ठोकी. त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी के प्रत्याशी डॉक्टर पेशे से आने वाले मूल सिंह को जनता का समर्थन मिला और जीते. तिवाड़ी कांग्रेस के बृजेन्द्र ओला और कांग्रेस प्रत्याशी सुमित्रा सिंह को हार का सामना करना पड़ा.
- 1998 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गुल मोहम्मद को टिकट दिया. कांग्रेस ने बृजेन्द्र ओला को मैदान में उतारा. वहीं, टिकट नहीं मिलने से नाराज सुमित्रा सिंह ने निर्दलीय मैदान में उतरी और जीत हासिल की.
- 2003 में सुमित्रा सिंह बीजेपी से और कांग्रेस से बृजेन्द्र ओला चुनाव लड़े. सुमित्रा सिंह जीती.
- 2008 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने डॉक्टर मूल सिंह को टिकट दिया तो कांग्रेस ने बृजेन्द्र ओला को. बृजेन्द्र ओला को तीन बार हार के बाद पहली बार जीत मिली.
- 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजीव सिंह शेखावत को टिकट दिया तो कांग्रेस ने फिर बृजेन्द्र ओला को मैदान में उतारा. बृजेन्द्र ओला की इस बार भी जीत हुई.
- 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजेंद्र भामू को और कांग्रेस ने बृजेन्द्र ओला को मैदान में उतारा, जिसमें ओला की जीत हुई.
- 2023 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर प्रत्याशी बदला और बबलू चौधरी को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस से बृजेन्द्र ओला ओला मैदान में रहे, जिसमें ओला की जीत हुई.
- 2024 के उपचुनाव में बीजेपी ने फिर प्रत्याशी बदला और राजेंद्र भामू को चुनावी मैदान में उतारा है.
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लोकसभा में भी बीजेपी का बदलता रहा प्रत्याशी : ऐसा नहीं है कि विधानसभा में ही भीजेपी ने प्रत्याशी बदला हो. लोकसभा में हर बार चुनाव में बीजेपी ने प्रत्याशी बदल कर टिकट दिया है. यहां पढ़िए 1984 से अब तक बीजेपी ने किस- किसको बनाया प्रत्याशी और क्या रहे नतीजे.
- 1984 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से जनरल कुंदन सिंह और कांग्रेस मोहम्मद अयूब खान लड़े. इसमें अयूब खान जीते.
- 1989 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जनता दल को समर्थन देते हुए जगदीप धनखड़ को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने अयूब खान को टिकट दिया. खान की हार हुई धनखड़ की जीत हुई.
- 1991 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मदन लाल सैनी और कांग्रेस ने अयूब खान को टिकट दिया, जिसमें सैनी की हार हुई और अयूब खान जीते.
- 1996 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अयूब खान और बीजेपी ने मातु राम सैनी को टिकट दिया, जबकि शीशराम ओला तिवाड़ी कांग्रेस से मैदान में उतरे और जीते.
- 1998 लोकसभा चुनाव बीजेपी से मदन लाल सैनी और कांग्रेस से जगदीप धनखड़. वहीं, ऑल इंडिया कांग्रेस सेकुलर से शीशराम ओला चुनाव मैदान में रहे. ओला की जीत हुई.
- 1999 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बनवारी लाल सैनी, कांग्रेस से शीशराम ओला चुनाव लड़े. इसमें ओला की जीत हुई.
- 2004 में बीजेपी से संतोष अहलावत, कांग्रेस से शीशराम ओला चुनाव लड़े. इसमें ओला जीते.
- 2009 में बीजेपी से दशरथ सिंह शेखावत और कांग्रेस ने शीशराम ओला को टिकट मिला. इस चुनाव में भी ओला जीते.
- 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी संतोष अहलावत और कांग्रेस ने बृजेन्द्र ओला की पत्नी राजबाला ओला को टिकट दिया. बीजेपी की प्रत्याशी संतोष अहलावत की जीत हुई.
- 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने नरेंद कुमार खीचड़ को तो कांग्रेस ने श्रवण कुमार को टिकट दिया. इस चुनाव में खीचड़ की जीत हुई
- 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी शुभकरण चौधरी को तो कांग्रेस से बृजेन्द्र ओला को टिकट दिया. इस चुनाव में ओला जीते.