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डीयू अकादमिक काउंसिल की बैठक में रखी जाए प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट: प्रो. सुमन - du academic council meeting - DU ACADEMIC COUNCIL MEETING

DU academic council meeting: दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन ने पत्र लिखकर कहा है कि प्रिंसिपल के पदों पर भी आरक्षण दिया जाए. इसके अलावा क्या है इस पत्र में, आइए जानते हैं..

दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 7, 2024, 6:47 PM IST

नई दिल्ली: फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन) के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन व महासचिव प्रोफेसर केपी. सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने यह मांग की है कि 12 जुलाई को होने जा रही डीयू एकेडमिक काउंसिल की बैठक में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण व रोस्टर रजिस्टर तैयार कर भर्ती की प्रक्रिया शुरू कराएं.

डॉ. सुमन ने पत्र में प्रोफेसर पदों पर आरक्षण तथा इन पदों का बैकलॉग व शॉटफॉल पूरा करने तथा शैक्षिक व गैर-शैक्षिक पदों को डीओपीटी, यूजीसी गाइडलाइंस-2006 को लागू करने की भी मांग की. हंसराज सुमन ने बताया कि प्रोफेसर काले कमेटी के सुझाए गए नियमों के तहत इन सभी पदों को भरने संबंधी निर्देशों पर बैठक में चर्चा होनी चाहिए.

दरअसल, प्रोफेसर काले कमेटी ने वर्ष 2016 में अपनी रिपोर्ट दिल्ली विश्वविद्यालय को सौंप दी थी. रिपोर्ट जमा किए आठ साल हो गए, लेकिन उसे आज तक एकेडमिक काउंसिल में नहीं रखा गया. प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में न रखे जाने व इसे लागू ना करने से दलित, पिछड़े वर्गों के शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है.

उनका कहना है कि इसे लागू न करके केंद्र सरकार के नियमों की उपेक्षा की जा रही है. फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को लिखे पत्र में बताया है कि डीयू में नौ साल पहले शिक्षा मंत्रालय, एससी/एसटी कमीशन, यूजीसी व डीओपीटी के अधिकारियों की टीम 9 जुलाई, 2015 को दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण की समीक्षा करने, प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण लागू कराने और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण लागू कराने का आश्वासन देकर गई थी. उन्होंने बताया कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर कोई विचार नहीं किया गया, न ही विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उस पर आगे की कार्यवाही की गई.

उन्होंने बताया कि डीयू में प्रिंसिपल पदों के विज्ञापन निकालकर नियुक्तियां हो रही हैं, लेकिन इन पदों पर वैधानिक नियमों के तहत आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. संसदीय समिति जब दिल्ली विश्वविद्यालय में आई तो उसने पाया कि यहां प्रोफेसर के पदों पर और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. साथ ही पोस्ट बेस रोस्टर को भी यूजीसी व डीओपीटी के निर्देशानुसार लागू नहीं किया जा रहा है. संसदीय समिति ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की थी. दिल्ली विश्वविद्यालय ने बाद में प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण दे दिया, लेकिन प्रिंसिपल के पदों पर आज तक आरक्षण नहीं दिया. उनका कहना था कि विश्वविद्यालय के सभी कॉलेजों के प्रिंसिपल के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तैयार करना चाहिए था.

वहीं, इन पदों को रोस्टर के अनुसार आरक्षण लागू करते हुए विज्ञापित किया जाना चाहिए था. विशेष भर्ती अभियान तथा बैकलॉग के तहत एससी/एसटी, ओबीसी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाना चाहिए था. फोरम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट को आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू नहीं किया है, ना ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने आज तक प्रिंसिपल के पदों का रोस्टर ही तैयार किया है. उन्होंने प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में भी नहीं रखा ही है.

डीयू में प्रिंसिपल के 40 पद होने हैं आरक्षित: प्रोफेसर केपी सिंह ने बताया कि 18 दिसम्बर, 2015 को समिति ने एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की थी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाये. इस तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण लागू होने पर एससी-12, एसटी-06 और ओबीसी कोटे के-22 पद बनते हैं. लेकिन आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तक नहीं बनाया है.

इस मुद्दे को विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों ने काउंसिल की मीटिंग में कई बार उठाया है. लेकिन, इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह मौन है. उन्होंने बताया कि इस विषय पर एकेडमिक काउंसिल के कई सदस्यों से बात हुई है. इस मुद्दे को लेकर एकेडमिक काउंसिल के सदस्य काफी सचेत हैं और 12 जुलाई 2024 को होने जा रही एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को जोरदार तरीके से उठाने के लिए तैयार हैं.

इन कॉलेजों में होनी है प्रिंसिपल के पद पर स्थाई नियुक्त: श्री अरबिंदो कॉलेज, राजधानी कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, सत्यवती कॉलेज, श्री अरबिंदो कॉलेज (सांध्य), महाराजा अग्रसेन कॉलेज, भीमराव अंबेडकर कॉलेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज (सांध्य) के अतिरिक्त अन्य कई कॉलेजो में प्रिंसिपल के पद आरक्षित श्रेणी में आएंगे. इन कॉलेजों में प्रिंसिपल का विज्ञापन आरक्षित पदों के अनुसार निकालकर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जाए. उनका कहना है कि पांच साल कार्यकाल पूरा कर चुके प्रिंसिपल को हटाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से कार्यवाहक या स्थायी प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जाए.

यह भी पढ़ें-डीयू: विधि संकाय ने स्थगित हुई परीक्षाओं के लिए जारी की नई डेट शीट, जानें कब से शुरू होंगी परीक्षाएं

नई दिल्ली: फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन) के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन व महासचिव प्रोफेसर केपी. सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने यह मांग की है कि 12 जुलाई को होने जा रही डीयू एकेडमिक काउंसिल की बैठक में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण व रोस्टर रजिस्टर तैयार कर भर्ती की प्रक्रिया शुरू कराएं.

डॉ. सुमन ने पत्र में प्रोफेसर पदों पर आरक्षण तथा इन पदों का बैकलॉग व शॉटफॉल पूरा करने तथा शैक्षिक व गैर-शैक्षिक पदों को डीओपीटी, यूजीसी गाइडलाइंस-2006 को लागू करने की भी मांग की. हंसराज सुमन ने बताया कि प्रोफेसर काले कमेटी के सुझाए गए नियमों के तहत इन सभी पदों को भरने संबंधी निर्देशों पर बैठक में चर्चा होनी चाहिए.

दरअसल, प्रोफेसर काले कमेटी ने वर्ष 2016 में अपनी रिपोर्ट दिल्ली विश्वविद्यालय को सौंप दी थी. रिपोर्ट जमा किए आठ साल हो गए, लेकिन उसे आज तक एकेडमिक काउंसिल में नहीं रखा गया. प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में न रखे जाने व इसे लागू ना करने से दलित, पिछड़े वर्गों के शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है.

उनका कहना है कि इसे लागू न करके केंद्र सरकार के नियमों की उपेक्षा की जा रही है. फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को लिखे पत्र में बताया है कि डीयू में नौ साल पहले शिक्षा मंत्रालय, एससी/एसटी कमीशन, यूजीसी व डीओपीटी के अधिकारियों की टीम 9 जुलाई, 2015 को दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण की समीक्षा करने, प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण लागू कराने और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण लागू कराने का आश्वासन देकर गई थी. उन्होंने बताया कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर कोई विचार नहीं किया गया, न ही विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उस पर आगे की कार्यवाही की गई.

उन्होंने बताया कि डीयू में प्रिंसिपल पदों के विज्ञापन निकालकर नियुक्तियां हो रही हैं, लेकिन इन पदों पर वैधानिक नियमों के तहत आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. संसदीय समिति जब दिल्ली विश्वविद्यालय में आई तो उसने पाया कि यहां प्रोफेसर के पदों पर और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. साथ ही पोस्ट बेस रोस्टर को भी यूजीसी व डीओपीटी के निर्देशानुसार लागू नहीं किया जा रहा है. संसदीय समिति ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की थी. दिल्ली विश्वविद्यालय ने बाद में प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण दे दिया, लेकिन प्रिंसिपल के पदों पर आज तक आरक्षण नहीं दिया. उनका कहना था कि विश्वविद्यालय के सभी कॉलेजों के प्रिंसिपल के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तैयार करना चाहिए था.

वहीं, इन पदों को रोस्टर के अनुसार आरक्षण लागू करते हुए विज्ञापित किया जाना चाहिए था. विशेष भर्ती अभियान तथा बैकलॉग के तहत एससी/एसटी, ओबीसी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाना चाहिए था. फोरम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट को आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू नहीं किया है, ना ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने आज तक प्रिंसिपल के पदों का रोस्टर ही तैयार किया है. उन्होंने प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में भी नहीं रखा ही है.

डीयू में प्रिंसिपल के 40 पद होने हैं आरक्षित: प्रोफेसर केपी सिंह ने बताया कि 18 दिसम्बर, 2015 को समिति ने एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की थी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाये. इस तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण लागू होने पर एससी-12, एसटी-06 और ओबीसी कोटे के-22 पद बनते हैं. लेकिन आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तक नहीं बनाया है.

इस मुद्दे को विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों ने काउंसिल की मीटिंग में कई बार उठाया है. लेकिन, इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह मौन है. उन्होंने बताया कि इस विषय पर एकेडमिक काउंसिल के कई सदस्यों से बात हुई है. इस मुद्दे को लेकर एकेडमिक काउंसिल के सदस्य काफी सचेत हैं और 12 जुलाई 2024 को होने जा रही एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को जोरदार तरीके से उठाने के लिए तैयार हैं.

इन कॉलेजों में होनी है प्रिंसिपल के पद पर स्थाई नियुक्त: श्री अरबिंदो कॉलेज, राजधानी कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, सत्यवती कॉलेज, श्री अरबिंदो कॉलेज (सांध्य), महाराजा अग्रसेन कॉलेज, भीमराव अंबेडकर कॉलेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज (सांध्य) के अतिरिक्त अन्य कई कॉलेजो में प्रिंसिपल के पद आरक्षित श्रेणी में आएंगे. इन कॉलेजों में प्रिंसिपल का विज्ञापन आरक्षित पदों के अनुसार निकालकर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जाए. उनका कहना है कि पांच साल कार्यकाल पूरा कर चुके प्रिंसिपल को हटाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से कार्यवाहक या स्थायी प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जाए.

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