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जेएनयू में प्रेजिडेंशल डिबेट में ABVP ने नए हॉस्टल बनवाने का तो लेफ्ट ने किया स्कॉलरशिप बढ़वाने का वादा - Presidential Debate in JNU

Presidential Debate in JNU: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अध्यक्ष पद के लिए प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई. स्टूडेंट्स के बीच सभी प्रेजिडेंट कैंडिडेट ने अपने मुद्दे और वादों को रखा. एबीवीपी ने नया हॉस्टल बनवाने का तो लेफ्ट ने स्कॉलरशिप बढ़वाने का वादा किया.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Mar 21, 2024, 1:08 PM IST

जेएनयू में प्रेजिडेंशल डिबेट

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद के लिए बुधवार रात को प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई. 22 मार्च को जेएनयू छात्र संघ का चुनाव होने जा रहा है. परंपरागत तौर पर ऐसा माना जाता है कि जेएनयू में अध्यक्ष प्रत्याशी की जीत, डिबेट में उसके भाषण पर काफी निर्भर करती है और बहुत से छात्र डिबेट सुनने के बाद किसे वोट देना है, यह तय करते हैं. इसी लिए अध्यक्ष पद के सभी प्रत्याशी इस आयोजन के लिए कड़ी मेहनत कर भाषण तैयार करते हैं.

एबीवीपी के केंद्रीय पैनल से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार उमेश चंद्र अजमीरा ने अपने भाषण में कहा कि, "मैं तेलंगाना के एक रिमोट गांव के बंजारा आदिवासी समुदाय से आता हूं. बचपन में ही नक्सली हमले में मेरे पिता का देहांत हो गया था. मेरी मां पर भी हमला किया और जबरन उनका धर्म परिवर्तन करा दिया. कुछ दिनों में मां की भी मृत्यु हो गई. मैं नक्सलियों के अत्याचार को झेलते हुए जेएनयू तक पहुंचा हूं. जब तक मेरे शरीर में एक भी सांस बाकी रहेगी मैं इन वामपंथियों के खिलाफ लड़ता रहूंगा."

अजमीरा ने कहा कि, "जब कोरोना काल में जेएनयू के छात्र शिक्षक और कर्मचारी मर रहे थे तो जेएनयू के चुने हुए छात्र संघ की अध्यक्ष पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने में व्यस्त थी. पूरे कोरोना काल में जेएनयू का छात्र संघ गायब रहा, जबकि मैंने और मेरे संगठन ने विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू कैंपस में रहकर छात्र-छात्राओं शिक्षकों और सभी कर्मचारियों की पीपीई किट पहनकर कोरोना काल में सेवा की. जेएनयू परिसर में सबसे बड़ा बराक हॉस्टल बनकर तैयार हुआ है उसके लिए भी एबीवीपी ने ही लड़ाई लड़ी थी. अब हम इस हॉस्टल को छात्रों के लिए खुलवाने के लिए भी लड़ाई लड़ेंगे."

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट (आइसा) की तरफ से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार धनंजय ने कहा कि, "मोदी सरकार शिक्षा की मूलभूत अवधारणा को खत्म करने में लगी है. वर्ष 2014 में जब से मोदी सरकार आई है तब से उसने विश्वविद्यालयों को लोन के कर्ज के तले दबा दिया है. साथ ही बाहरी विश्वविद्यालय को देश में आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है कि आओ आप जमीन लो अपना कैंपस खोलकर लाखों की फीस उठाओ. छात्रों को लूटो. इसके साथ ही फीस में बढ़ोतरी, स्कॉलरशिप में कटौती सहित तमाम कार्यों को करके छात्रों को धोखा देने का काम मोदी सरकार कर रही है."

धनंजय ने कहा कि, "इन सब सरकार की करतूत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैं यहां इस मंच पर खड़ा हुआ हूं. तमाम वंचितों के लिए विश्वविद्यालय के दरवाजे खुले रहेंगे इस बात की पैरोकारी करने के लिए मैं यहां खड़ा हुआ हूं. हम शिक्षा को दुकानों में नहीं बिकने देंगे. यह सरकार शिक्षा और रोजगार में आरक्षण को खत्म करने का प्रयास कर रही है. इसको पूरा नहीं होने दिया जाएगा. सरकार चाहती है दलित और पिछड़ों को अपने जूते के नीचे रखा जाए. हम ऐसा नहीं होने देंगे. धनंजय ने मोदी सरकार पर सामाजिक ताने बाने को खत्म करने का भी आरोप लगाया."

धनंजय ने एमएसपी की मांग कर रहे किसानों की वकालत करते हुए कहा कि, "मैं किसानों की आवाज बनकर यहां खड़ा हूं और उनका समर्थन करता हूं. बिहार में सीपीआई एमएल के विधायक मनोज मंजिल को सरकार द्वारा जेल भेजने का विरोध करते हुए धनंजय ने कहा कि मैं यहां मनोज मंजिल की आवाज बनकर खड़ा हूं. जेएनयू के नए छात्र संघ के जीतकर आने के बाद हम नॉन नेट फैलोशिप और नेट फैलोशिप को भी बढ़वाने के लिए लड़ाई लड़ेंगे.

जेएनयू में प्रेजिडेंशल डिबेट

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद के लिए बुधवार रात को प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई. 22 मार्च को जेएनयू छात्र संघ का चुनाव होने जा रहा है. परंपरागत तौर पर ऐसा माना जाता है कि जेएनयू में अध्यक्ष प्रत्याशी की जीत, डिबेट में उसके भाषण पर काफी निर्भर करती है और बहुत से छात्र डिबेट सुनने के बाद किसे वोट देना है, यह तय करते हैं. इसी लिए अध्यक्ष पद के सभी प्रत्याशी इस आयोजन के लिए कड़ी मेहनत कर भाषण तैयार करते हैं.

एबीवीपी के केंद्रीय पैनल से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार उमेश चंद्र अजमीरा ने अपने भाषण में कहा कि, "मैं तेलंगाना के एक रिमोट गांव के बंजारा आदिवासी समुदाय से आता हूं. बचपन में ही नक्सली हमले में मेरे पिता का देहांत हो गया था. मेरी मां पर भी हमला किया और जबरन उनका धर्म परिवर्तन करा दिया. कुछ दिनों में मां की भी मृत्यु हो गई. मैं नक्सलियों के अत्याचार को झेलते हुए जेएनयू तक पहुंचा हूं. जब तक मेरे शरीर में एक भी सांस बाकी रहेगी मैं इन वामपंथियों के खिलाफ लड़ता रहूंगा."

अजमीरा ने कहा कि, "जब कोरोना काल में जेएनयू के छात्र शिक्षक और कर्मचारी मर रहे थे तो जेएनयू के चुने हुए छात्र संघ की अध्यक्ष पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने में व्यस्त थी. पूरे कोरोना काल में जेएनयू का छात्र संघ गायब रहा, जबकि मैंने और मेरे संगठन ने विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू कैंपस में रहकर छात्र-छात्राओं शिक्षकों और सभी कर्मचारियों की पीपीई किट पहनकर कोरोना काल में सेवा की. जेएनयू परिसर में सबसे बड़ा बराक हॉस्टल बनकर तैयार हुआ है उसके लिए भी एबीवीपी ने ही लड़ाई लड़ी थी. अब हम इस हॉस्टल को छात्रों के लिए खुलवाने के लिए भी लड़ाई लड़ेंगे."

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट (आइसा) की तरफ से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार धनंजय ने कहा कि, "मोदी सरकार शिक्षा की मूलभूत अवधारणा को खत्म करने में लगी है. वर्ष 2014 में जब से मोदी सरकार आई है तब से उसने विश्वविद्यालयों को लोन के कर्ज के तले दबा दिया है. साथ ही बाहरी विश्वविद्यालय को देश में आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है कि आओ आप जमीन लो अपना कैंपस खोलकर लाखों की फीस उठाओ. छात्रों को लूटो. इसके साथ ही फीस में बढ़ोतरी, स्कॉलरशिप में कटौती सहित तमाम कार्यों को करके छात्रों को धोखा देने का काम मोदी सरकार कर रही है."

धनंजय ने कहा कि, "इन सब सरकार की करतूत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैं यहां इस मंच पर खड़ा हुआ हूं. तमाम वंचितों के लिए विश्वविद्यालय के दरवाजे खुले रहेंगे इस बात की पैरोकारी करने के लिए मैं यहां खड़ा हुआ हूं. हम शिक्षा को दुकानों में नहीं बिकने देंगे. यह सरकार शिक्षा और रोजगार में आरक्षण को खत्म करने का प्रयास कर रही है. इसको पूरा नहीं होने दिया जाएगा. सरकार चाहती है दलित और पिछड़ों को अपने जूते के नीचे रखा जाए. हम ऐसा नहीं होने देंगे. धनंजय ने मोदी सरकार पर सामाजिक ताने बाने को खत्म करने का भी आरोप लगाया."

धनंजय ने एमएसपी की मांग कर रहे किसानों की वकालत करते हुए कहा कि, "मैं किसानों की आवाज बनकर यहां खड़ा हूं और उनका समर्थन करता हूं. बिहार में सीपीआई एमएल के विधायक मनोज मंजिल को सरकार द्वारा जेल भेजने का विरोध करते हुए धनंजय ने कहा कि मैं यहां मनोज मंजिल की आवाज बनकर खड़ा हूं. जेएनयू के नए छात्र संघ के जीतकर आने के बाद हम नॉन नेट फैलोशिप और नेट फैलोशिप को भी बढ़वाने के लिए लड़ाई लड़ेंगे.

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