देहरादूनः देश भर में पड़ रही भीषण गर्मी का असर प्रकृति पर ऐसा पड़ रहा है कि उसके सुखद और दुखद दोनों परिणाम सामने आ रहे हैं. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा नुकसान मानव जाति का हो रह है. आसमान से बरसती आग के कारण हिमालय के ग्लेशियरों को भी नुकसान पहुंच रहा है. भीषण गर्मी के कारण ग्लेशियर तेजी से पिछल रहे हैं. जिस कारण नदियों का जलस्तर भी बढ़ रहा है. हालांकि, इसका नदियों पर लगे पावर प्रोजेक्ट पर सुखद असर दिखाई दे रहा है.
पावर प्रोजेक्ट को फायदा: गर्म मौसम और पिघलते ग्लेशियर का सुखद पहलू बिजली उत्पादन पर देखने के लिए मिल रहा है. उत्तराखंड में नदियों पर पावर प्रोजेक्ट लगे हुए हैं. उन्हीं में से एक पावर प्रोजेक्ट मनेरी भाली परियोजना उत्तरकाशी में है, जो कि भागीरथी नदी में पानी अधिक होने से अधिक बिजली उत्पादन कर रहा है. इस परियोजना में तीन दिन से रोजाना 7 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है. अधिक बिजली के उत्पादन से न केवल परियोजना को फायदा हो रहा है. बल्कि राजस्व भी बढ़ा रहा है. यह परियोजना भागीरथी नदी पर बनी है. बताया जा रहा है कि मौजूदा समय में भागीरथी का जल स्तर 180 क्यूसेक तक पहुंच गया है.
यही कारण है कि पावर प्रोजेक्ट की टरबाइन और बेहतर तरीके से काम कर रहा है. पर्याप्त पानी मिलने की वजह से बिजली का उत्पादन भी बढ़ गया है. मनेरी भाली परियोजना के पीआरओ विमल डबराल ने बताया कि परियोजना में बिजली का उत्पादन बढ़ा है. इसकी वजह नदी में जलस्तर के बढ़ने से हुआ है. हमारे प्रोजेक्ट में 304 मेगावाट बिजली बनाने वाली परियोजना में 76 मेगावाट की चार टरबाइन लगी हुई है. भागीरथी में पानी अधिक होने की वजह से सभी टरबाइन काम कर रही है. जैसे-जैसे आगे बारिश शुरू होगी, वैसे-वैसे और अधिक बिजली बनाने में वृद्धि होगी.
अमूमन सभी जगह बढ़ा है पानी: देखा जाए तो दूसरा पहलू इसका बेहद खतरनाक भी है. लगातार गर्मी पड़ने की वजह से ग्लेशियरों को नुकसान हो रहा है. तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं. कुमाऊं में बहने वाली शारदा नदी का जलस्तर भी अधिक बढ़ा है. पिंडारी और अन्य ग्लेशियरों से निकलने वाले अधिक जल की वजह से इस नदी में डिस्चार्ज वाटर में वृद्धि हुई है जो इस बात का संकेत है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. बताया जा रहा है कि नदी का जलस्तर इतना बढ़ रहा है कि जून 2024 के शुरुआती दिन में शारदा नदी से 10,661 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हो रहा था. जबकि 18 जून को यह बढ़कर 11,652 क्यूसेक तक पहुंच गया है. यह नदी भारत और नेपाल दोनों ही देश में पानी की आपूर्ति पूरी करती है. उधर गंगा नदी का भी जलस्तर बीते कुछ दिनों में बढ़ा है.
चिंता का विषय: पिघलते ग्लेशियर और बढ़ते नदियों के जलस्तर को लेकर पर्यावरणविद् अनिल जोशी कहते हैं कि बीते दिनों इसरो की एक रिपोर्ट से भी एक खुलासा हुआ था कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. कई जगहों पर छोटी-छोटी झील भी बन गई हैं. अभी भले ही हमें यह बात छोटी लग रही हो लेकिन यह न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के लिए भी बेहद चिंता का विषय है. इस पर हम सभी को और सरकारों को गंभीरता पूर्वक ध्यान देना होगा.
जिस तरह से बताया जा रहा है कि विश्व के कई देश आने वाले 30 से 40 सालों में डूबने की कगार पर होंगे. इसका कारण बर्फ का तेजी से पिघलना और नदियों, समुद्र में जल स्तर का बढ़ना होगा. ऐसा ही हाल उत्तराखंड की नदियों में भी हो रहा है. तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों की वजह से नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और आने वाले समय के लिए यह संकट का संकेत है.
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