कुल्लू: सनातन धर्म में जितना स्थान देवताओं को दिया गया है. वैसा ही मान सम्मान पितरों को भी दिया जाता है. ऐसे में पितरों के लिए नियमित दान, पिंड, तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं. हर साल पितृ पक्ष के दिनों में पितरों के नाम पर श्राद्ध भी किए जाते हैं और इस साल का पितृपक्ष 17 सितंबर मंगलवार से शुरू हो रहा है. ऐसे में 16 दिनों तक लोग अपने पितरों के लिए निमित विभिन्न कर्मकांड कर उनका आशीर्वाद लेते हैं.
आचार्य विजय कुमार का कहना है कि, '17 सितंबर मंगलवार को पूर्णिमा के दिन श्राद्ध की शुरुआत हो रही है. हालांकि प्रतिपदा से श्राद्ध की शुरुआत होती है. ऐसे में पहला श्राद्ध बुधवार से ही माना जाएगा और 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृ पक्ष भी समाप्त हो जाएंगे. मंगलवार पूर्णिमा का श्राद्ध ऋषियों के नाम पर दिया जाता है. इस बार छठा और सातवीं तिथि का श्राद्ध एक ही दिन आ रहा है. ऐसे में जिन व्यक्तियों को छठी और सातवीं तिथि का श्राद्ध करना है तो वह उन्हें एक ही दिन सोमवार को कर सकते हैं. छठे और सातवें श्राद्ध की तिथि अबकी बार एक ही दिन आ रही है और उस दिन 23 सितंबर का दिन होगा.'
आचार्य विजय कुमार का कहना है कि, 'पितृपक्ष में लोगो के पितर धरती पर आते हैं और हमारी उनके प्रति क्या श्रद्धा है वो इस बात को देखते हैं. सनातन धर्म के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को मुक्ति मिलने के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, श्रद्धा के साथ लोग अगर श्राद्ध के काम करें इसलिए ही इसे श्राद्ध कहते हैं. पितृ श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाने का विधान है. साथ ही जिस दिन पूर्वज का श्राद्ध होता है. उस दिन गाय, कुत्ता कौवा और चींटी को भी भोजन दिया जाता है.'
श्राद्ध करने का सही समय
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू शास्त्रों के मुताबिक सुबह और संध्याकाल में सिर्फ देवी-देवताओं की पूजा करने का विधान है. दोपहर का समय पितरों के लिए निश्चित किया गया है. दोपहर में 12 बजे से 1 बजे के करीब श्राद्ध करें और पिंडदान करें. जब श्राद्ध संपन्न हो जाए तो सबसे पहले कौवे, कुत्ते, गाय, चींटी, देवता के लिए भोग निकालना चाहिए.