कोरबा : पांच दशक से कोरबा विकासखंड के पीपरकोना गांव के लोग बिजली, पानी, सड़क और पुल जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. जिसके कारण उन्होंने आने वाले लोकसभा चुनाव में चुनाव बहिष्कार करने की चेतावनी दी है.ग्रामीणों का कहना है कि हम बार-बार आवेदन देते हैं. लेकिन हमारी मांग पूरी नहीं होती, पिछले विधानसभा चुनाव में भी हमें मांगें पूरी करने का आश्वासन दिया गया.लेकिन वो अब तक अधूरी हैं.अब तो हम जैसे जी रहे थे, वैसे ही जीएंगे. लेकिन किसी को वोट नहीं देंगे.
विधानसभा चुनाव में भी मिला था आश्वासन : दरअसल कोरबा जिला पांचवी अनुसूची में शामिल ट्राइबल जिला है. कई गांव दुर्गम और वनांचल क्षेत्र में बसे हुए हैं. जहां अब भी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीण संघर्षरत हैं. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी कई स्थानों पर ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी थी. इन्हीं में से एक आवेदन गांव पीपरकोना सहित चिवडोढ़ा और राजाडीह के ग्रामीणों ने भी दिया था. तब भी प्रशासन ने उन्हें आश्वासन दिया था कि मांगों पर जल्द ही विचार किया जाएगा. काम कराए जाएंगे, चुनाव संपन्न हो चुके हैं. लेकिन अब भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. जिससे ग्रामीणों की नाराजगी अब दोगुनी हो चुकी है.
सड़क नहीं होने से नहीं पहुंचती एंबुलेंस : पीपरकोना गांव की ग्रामीण अनीता तिग्गा के मुताबिक 50 साल से हम मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. गांव में सड़क भी नहीं है. अगर किसी की तबीयत खराब हो या किसी महिला को प्रसव कराने के लिए अस्पताल ले जाना पड़े. तब भी गांव तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंचती. ऐसी स्थिति में हम मरीज को खाट पर लिटाकर दो से तीन किलोमीटर तक पैदल चलते हैं. जिसके बाद ही उसे इलाज मिलता है. कई बार स्थिति गंभीर हो जाती है और मरीज मरने की स्थिति में पहुंच जाता है.कई बार प्रशासन को पत्र लिखने के बाद भी मदद नहीं मिली.
''पीने के पानी का भी गांव में उचित इंतजाम नहीं है. हम नदी और ढोढ़ी से पानी का इंतजाम करते हैं. अब उम्र हो चली है, ऐसे में नदी तक जाने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गांव में ऐसे कई बुजुर्ग हैं. जो नदी तक जाने में भी सक्षम नहीं हैं. गांव में पीने के पानी का भी ठीक तरह का इंतजाम नहीं है.''- जिरमिना बाई,ग्रामीण
हमें बहला फुसलाकर वोट दिलवाया,लेकिन अब नहीं : ग्रामीण प्रमीला चेरमाको का कहना है कि हम पिछले 40- 50 साल से मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. हमारी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती. पंचायत से आवेदन जिला मुख्यालय तक नहीं भेजा जाता. मुख्यालय में भी यदि आवेदन देते हैं. तब भी कोई सुनवाई नहीं होती. विधानसभा चुनाव में भी हमने वोट नहीं देने का मन बनाया था, लेकिन तब अधिकारी गांव में आए और हमें बहला फुसलाकर वोट दिलवा दिया. लेकिन इस बार हम किसी हाल में वोट नहीं देंगे, आने वाले चुनाव का बहिष्कार करेंगे. जैसा जीवन जी रहे थे, वैसा ही जाएंगे.
प्रशासन का दावा जल्द शुरु होंगे काम : वहीं इस बारे में प्रशासन की ओर से यह जानकारी मिली है कि पिछली बार भी जब चुनाव बहिष्कार की बात सामने आई थी. तब विकास कार्यों का प्रस्ताव डीएमएफ को भेजा गया था.जल्द ही परिषद की बैठक होने वाली है. जिसमें कई कार्यो को स्वीकृति मिलेगी. इसके बाद ही काम हो पाएंगे. तब तक गांव जाकर जागरुकता अभियान चलाया जाएगा.