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केवल बुढ़ापे और कमजोर स्वास्थ्य के कारण किसी व्यक्ति को आजीविका के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट - Delhi high court

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि मकान मालिक बूढ़ा है और कमजोर स्वास्थ्य से पीड़ित है, केवल इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वह आजीविका कमाने में सक्षम नहीं है. क्या है पूरा मामला, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर..

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By PTI

Published : Apr 14, 2024, 5:43 PM IST

Delhi high court
Delhi high court

नई दिल्ली: किसी व्यक्ति को केवल बुढ़ापे और कमजोर स्वास्थ्य के आधार पर आजीविका और सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है. यह बात दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका खारिज करते हुए कही. न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने संपत्ति से एक किराएदार को बेदखल करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि केवल इसलिए कि मकान मालिक बूढ़ा है और कमजोर स्वास्थ्य से पीड़ित है, यह नहीं माना जा सकता है कि उसे अपना व्यवसाय चलाने के लिए किराए के परिसर की आवश्यकता नहीं है या वह आजीविका कमाने में सक्षम नहीं है.

कोर्ट ने किराएदार के इस रुख को खारिज कर दिया कि मकान मालिक की वृद्धावस्था और स्वास्थ्य को देखते हुए यह विश्वास करने योग्य नहीं है कि वह उस जगह से कोई व्यवसाय करेगा, जिसे खाली करने की मांग की गई थी. उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त किराया नियंत्रक (एआरसी) के आदेश को चुनौती देने वाली किराएदार की याचिका खारिज कर दी, जिसने बेदखली का आदेश पारित किया था.

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि मकान मालिक बीमार था या उसका बेटा उसकी आर्थिक रूप से देखभाल कर रहा था. केवल बुढ़ापे और कमजोर स्वास्थ्य के कारण, किसी व्यक्ति को आजीविका के अधिकार और उसके परिणामस्वरूप सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें-यात्रा संबंधी जानकारी व्यक्तिगत, आरटीआई के तहत तीसरे पक्ष को नहीं बताई जा सकती: दिल्ली उच्च न्यायालय

दरअसल, पहाड़गंज इलाके में स्थित एक दुकान के मालिक होने का दावा करने वाले मकान मालिक ने ट्रायल कोर्ट में एक याचिका दायर कर किराएदार को इस आधार पर बेदखल करने की मांग की थी कि अब उसे अपना व्यवसाय चलाने के लिए उस जगह की आवश्यकता है, क्योंकि उसके पास ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं है. मकान मालिक ने कहा कि उन्हें अधिकारियों द्वारा बवाना में एक भूखंड आवंटित किया गया था, लेकिन उन्होंने लंबी दूरी और अपनी वृद्धावस्था के कारण उसे सरेंडर कर दिया था.

यह भी पढ़ें-केवल सुसाइड नोट में नाम होने से कोई दोषी नहीं होता, जानिए- किस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी

नई दिल्ली: किसी व्यक्ति को केवल बुढ़ापे और कमजोर स्वास्थ्य के आधार पर आजीविका और सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है. यह बात दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका खारिज करते हुए कही. न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने संपत्ति से एक किराएदार को बेदखल करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि केवल इसलिए कि मकान मालिक बूढ़ा है और कमजोर स्वास्थ्य से पीड़ित है, यह नहीं माना जा सकता है कि उसे अपना व्यवसाय चलाने के लिए किराए के परिसर की आवश्यकता नहीं है या वह आजीविका कमाने में सक्षम नहीं है.

कोर्ट ने किराएदार के इस रुख को खारिज कर दिया कि मकान मालिक की वृद्धावस्था और स्वास्थ्य को देखते हुए यह विश्वास करने योग्य नहीं है कि वह उस जगह से कोई व्यवसाय करेगा, जिसे खाली करने की मांग की गई थी. उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त किराया नियंत्रक (एआरसी) के आदेश को चुनौती देने वाली किराएदार की याचिका खारिज कर दी, जिसने बेदखली का आदेश पारित किया था.

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि मकान मालिक बीमार था या उसका बेटा उसकी आर्थिक रूप से देखभाल कर रहा था. केवल बुढ़ापे और कमजोर स्वास्थ्य के कारण, किसी व्यक्ति को आजीविका के अधिकार और उसके परिणामस्वरूप सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

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दरअसल, पहाड़गंज इलाके में स्थित एक दुकान के मालिक होने का दावा करने वाले मकान मालिक ने ट्रायल कोर्ट में एक याचिका दायर कर किराएदार को इस आधार पर बेदखल करने की मांग की थी कि अब उसे अपना व्यवसाय चलाने के लिए उस जगह की आवश्यकता है, क्योंकि उसके पास ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं है. मकान मालिक ने कहा कि उन्हें अधिकारियों द्वारा बवाना में एक भूखंड आवंटित किया गया था, लेकिन उन्होंने लंबी दूरी और अपनी वृद्धावस्था के कारण उसे सरेंडर कर दिया था.

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