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इस जगह पानी से तर्पण करने पर मिलती है मोक्ष की प्राप्ति, युधिष्ठिर ने भी यहीं किया था पिंडदान - Pehowa Pinddaan Importance - PEHOWA PINDDAAN IMPORTANCE

Pehowa Pinddaan Importance: गया के बाद पिहोवा एक ऐसी धर्म नगरी है, जहां पर पूजा पाठ करने से पितरों को मुक्ति की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व जो महाभारत का युद्ध हुआ था. तब उसे युद्ध में कौरव और पांडवों के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. इतने बड़े स्तर पर मारे गए योद्धाओं को देखकर युधिष्ठिर विचलित हो गए थे, कि उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी. तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि कुरुक्षेत्र के ही पिहोवा में पृथुदक याद सरस्वती तीर्थ पर पूजा अर्चना करने से और पिंडदान करने से सभी की आत्मा को शांति मिल जाएगी

Pehowa Pinddaan Importance
Pehowa Pinddaan Importance (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 26, 2024, 4:12 PM IST

Updated : Sep 27, 2024, 10:43 AM IST

Pehowa Pinddaan Importance (Etv Bharat)

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र का नाम विश्व विख्यात है. यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान कृष्ण को गीता का उपदेश दिया था और यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. लेकिन कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत एक ऐसा स्थान भी है. जहां पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए जाते हैं. गया के बाद पिहोवा एक ऐसी धर्म नगरी है, जहां पर पूजा पाठ करने से पितरों को मुक्ति की प्राप्ति होती है.

माना जाता है कि आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व जो महाभारत का युद्ध हुआ था. तब उसे युद्ध में कौरव और पांडवों के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. इतने बड़े स्तर पर मारे गए योद्धाओं को देखकर युधिष्ठिर विचलित हो गए थे, कि उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी. तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि कुरुक्षेत्र के ही पिहोवा में पृथुदक याद सरस्वती तीर्थ पर पूजा अर्चना करने से और पिंडदान करने से सभी की आत्मा को शांति मिल जाएगी.

उनके कहने पर युधिष्ठिर ने यहां पर अपने पुरुषों के लिए श्राद्ध और पिंडदान किए थे तभी से यह परंपरा चली आ रही है. यहां देवभूमि पर युगो युगांतर से मृत आत्मा की सद्गति और शांति के लिए शास्त्रों और पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है. इसी के चलते यहां पर दूर दराज से लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं.

दान ही श्राद्ध: पिहोवा तीर्थ पुरोहित सुभाष ने कहा कि पितृ पक्ष में यहां पर विशेष तौर पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां पर जो भी अपने पूर्वज के लिए पंडितों को दान दिया जाता है. उसको ही श्राद्ध कहा जाता है, वैसे तो यह कहीं भी किया जा सकता है. लेकिन अगर कोई इस तीर्थ पर आकर करता है. तो उस का विशेष फल प्राप्त होता है. पितृ पक्ष 15 दिन के होते हैं, जो आश्विन महीने के प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और अमावस्या के दिन समाप्त होते हैं.

ऐसे मिलती है पितरों की आत्मा को शांति: सरस्वती तीर्थ पर एक 5000 वर्ष पुराना पीपल का वट वृक्ष भी खड़ा है. जिसको प्रेत पीपल के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि अगर किसी इंसान के पितरों की आत्मा कहां पर भटक रही है. या उसकी तृप्ति नहीं मिली है. उसकी आत्मा को तृप्त करने के लिए यहां पर सरस्वती तीर्थ से पानी की बाल्टी भर के उस पेड़ को 11 बाल्टी अर्पित की जाती है. जिसे उनके पितर की आत्मा को तृप्ति मिलती है. इसके साथ-साथ अपने पितरों के लिए वस्त्र के तौर पर सफेद कपड़ा भी यहां पर चढ़ाया जाता है. जिसे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह यहां पर भड़काने की बजाय स्वर्ग में चले जाते हैं.

पिंडदान करने दूसरे राज्यों से आते हैं लोग: इस तीर्थ का इतना ज्यादा महत्व शास्त्रों में बताया गया है, कि यहां पर केवल हरियाणा ही नहीं दूसरे राज्यों से और जो भारतीय विदेश में रहते हैं. वह भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पर पिंडदान करने के लिए आते हैं. किसके साथ-साथ यहां पर अस्थि विसर्जन करने के लिए भी लोग पहुंचते हैं. जो भी अपने किसी परिवार के सदस्य की अस्थि विसर्जन करने यहां पर पहुंचते हैं. तो उसको एक अलग से सीट बस या गाड़ी में दी जाती है. अगर वह बस में आ रहे हैं, तो उसके नाम की टिकट भी ली जाती है. वहां पर उसकी अस्थियां रखी जाती है.

पिहोवा तीर्थ का महत्व और इतिहास: पिहोवा तीर्थ को पहले पृथूदक तीर्थ के नाम से जाना जाता था. क्योंकि यह महाराजा पृथु के द्वारा बसाया गया शहर है. जिसको वर्तमान में पिहोवा के नाम से जाना जाता है. पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने के लिए बिहार के गया तीर्थ जाते हैं. ज्यादातर लोग उसी के बारे में जानते हैं कि वहां पर पिंडदान करने से उनके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.

यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिहोवा तीर्थ का भी बहुत ही ज्यादा महत्व है. यहां भी पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण अनुष्ठान कर्म किए जाते हैं. क्योंकि इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. इसकी शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. जब महाभारत काल में कौरव और पांडव के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. तब उनकी आत्मा की शांति के लिए श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को यहां पर पिंडदान करने के लिए कहा था और तब से यह मान्यता चली आ रही है. यहां पर आकर श्राद्ध और पिंडदान दोनों किए जाते हैं. यहां पर जो पुरोहित बैठे हैं. वह विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ करने वाले 200 साल पुरानी वंशावली से आते हैं. यहां पर पहले भी राजा महाराजाओं और उनके बस जो का श्राद्ध या पिंडदान किया जा चुका है.

ये भी पढ़ें: नवरात्रि 2024: इस बार पालकी पर पधार रहीं मां दुर्गा, चरणायुद्ध पर होगी विदाई, जानें आप पर क्या पड़ेगा प्रभाव - SHARDIYA NAVRATRI 2024

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कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र का नाम विश्व विख्यात है. यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान कृष्ण को गीता का उपदेश दिया था और यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. लेकिन कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत एक ऐसा स्थान भी है. जहां पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए जाते हैं. गया के बाद पिहोवा एक ऐसी धर्म नगरी है, जहां पर पूजा पाठ करने से पितरों को मुक्ति की प्राप्ति होती है.

माना जाता है कि आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व जो महाभारत का युद्ध हुआ था. तब उसे युद्ध में कौरव और पांडवों के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. इतने बड़े स्तर पर मारे गए योद्धाओं को देखकर युधिष्ठिर विचलित हो गए थे, कि उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी. तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि कुरुक्षेत्र के ही पिहोवा में पृथुदक याद सरस्वती तीर्थ पर पूजा अर्चना करने से और पिंडदान करने से सभी की आत्मा को शांति मिल जाएगी.

उनके कहने पर युधिष्ठिर ने यहां पर अपने पुरुषों के लिए श्राद्ध और पिंडदान किए थे तभी से यह परंपरा चली आ रही है. यहां देवभूमि पर युगो युगांतर से मृत आत्मा की सद्गति और शांति के लिए शास्त्रों और पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है. इसी के चलते यहां पर दूर दराज से लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं.

दान ही श्राद्ध: पिहोवा तीर्थ पुरोहित सुभाष ने कहा कि पितृ पक्ष में यहां पर विशेष तौर पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां पर जो भी अपने पूर्वज के लिए पंडितों को दान दिया जाता है. उसको ही श्राद्ध कहा जाता है, वैसे तो यह कहीं भी किया जा सकता है. लेकिन अगर कोई इस तीर्थ पर आकर करता है. तो उस का विशेष फल प्राप्त होता है. पितृ पक्ष 15 दिन के होते हैं, जो आश्विन महीने के प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और अमावस्या के दिन समाप्त होते हैं.

ऐसे मिलती है पितरों की आत्मा को शांति: सरस्वती तीर्थ पर एक 5000 वर्ष पुराना पीपल का वट वृक्ष भी खड़ा है. जिसको प्रेत पीपल के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि अगर किसी इंसान के पितरों की आत्मा कहां पर भटक रही है. या उसकी तृप्ति नहीं मिली है. उसकी आत्मा को तृप्त करने के लिए यहां पर सरस्वती तीर्थ से पानी की बाल्टी भर के उस पेड़ को 11 बाल्टी अर्पित की जाती है. जिसे उनके पितर की आत्मा को तृप्ति मिलती है. इसके साथ-साथ अपने पितरों के लिए वस्त्र के तौर पर सफेद कपड़ा भी यहां पर चढ़ाया जाता है. जिसे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह यहां पर भड़काने की बजाय स्वर्ग में चले जाते हैं.

पिंडदान करने दूसरे राज्यों से आते हैं लोग: इस तीर्थ का इतना ज्यादा महत्व शास्त्रों में बताया गया है, कि यहां पर केवल हरियाणा ही नहीं दूसरे राज्यों से और जो भारतीय विदेश में रहते हैं. वह भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पर पिंडदान करने के लिए आते हैं. किसके साथ-साथ यहां पर अस्थि विसर्जन करने के लिए भी लोग पहुंचते हैं. जो भी अपने किसी परिवार के सदस्य की अस्थि विसर्जन करने यहां पर पहुंचते हैं. तो उसको एक अलग से सीट बस या गाड़ी में दी जाती है. अगर वह बस में आ रहे हैं, तो उसके नाम की टिकट भी ली जाती है. वहां पर उसकी अस्थियां रखी जाती है.

पिहोवा तीर्थ का महत्व और इतिहास: पिहोवा तीर्थ को पहले पृथूदक तीर्थ के नाम से जाना जाता था. क्योंकि यह महाराजा पृथु के द्वारा बसाया गया शहर है. जिसको वर्तमान में पिहोवा के नाम से जाना जाता है. पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने के लिए बिहार के गया तीर्थ जाते हैं. ज्यादातर लोग उसी के बारे में जानते हैं कि वहां पर पिंडदान करने से उनके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.

यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिहोवा तीर्थ का भी बहुत ही ज्यादा महत्व है. यहां भी पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण अनुष्ठान कर्म किए जाते हैं. क्योंकि इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. इसकी शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. जब महाभारत काल में कौरव और पांडव के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. तब उनकी आत्मा की शांति के लिए श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को यहां पर पिंडदान करने के लिए कहा था और तब से यह मान्यता चली आ रही है. यहां पर आकर श्राद्ध और पिंडदान दोनों किए जाते हैं. यहां पर जो पुरोहित बैठे हैं. वह विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ करने वाले 200 साल पुरानी वंशावली से आते हैं. यहां पर पहले भी राजा महाराजाओं और उनके बस जो का श्राद्ध या पिंडदान किया जा चुका है.

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Last Updated : Sep 27, 2024, 10:43 AM IST
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