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पहाड़ में 3100 फीट की ऊंचाई पर दिखा मोर, क्या जलवायु परिवर्तन का है असर

पहाड़ी इलाकों में भी मोर दिखाई देने लगे हैं. इस बार 3100 फीट की ऊंचाई पर मोर दिखा है. जिसे लेकर कौतूहल बना हुआ है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

Peacock Seen in Bageshwar
बागेश्वर के जंगल में मोर (फोटो सोर्स- Villagers)

देहरादून: तराई के इलाकों में मोर मिलना आम बात है, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मोर दिखना किसी कौतूहल से कम नहीं है. जी हां, करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक मोर पहुंच गया है. इस मोर को देखने के बाद वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान हैं तो पर्यावरण वैज्ञानिकों को भी चौंका कर रख दिया है. आमतौर पर निचले जंगलों या गर्म इलाकों में पाए जाने वाला मोर इतनी ऊंचाई में शायद पहले कभी देखा गया हो, लेकिन पहाड़ों में मोर का दिखना चर्चाओं का विषय बन गया है.

बागेश्वर में दिखा मोर: दरअसल, यह मोर बागेश्वर में दिखाई दिया है. जिससे पर्यावरणविद भी अचंभित हैं कि आखिर मोर समुद्रतल से करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंच गया. जबकि, मोर के लिए समुद्र तल से 400 मीटर की ऊंचाई को मुफीद माना जाता है. बागेश्वर में मोर दिखने के बाद वृक्ष पुरुष और पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा का कहना है कि मोर देखा जाना बड़ी बात नहीं है. क्योंकि, इससे ज्यादा ऊंचाई रानीखेत की है. जहां हर साल मई महीने में मोर दिख जाते हैं.

करीब 3100 फीट की ऊंचाई पर दिखा मोर (वीडियो सोर्स- Villagers)

उनका कहना है कि बागेश्वर जिले में पहले भी मोर देखा गया था. हालांकि, वन विभाग उसे ट्रैक नहीं कर पाया था. पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा आगे कहते हैं कि वन विभाग को अकेले घूमते मोर के साथ एक अन्य मोर यहां लाकर छोड़ देना चाहिए. ताकि, उनका जोड़ा बन जाए. इससे मोर को लेकर अध्ययन का भी एक द्वार खुलता.

क्या बोले वन रेंजर: वहीं, वन रेंजर श्याम सिंह करायत बताते हैं कि मोर के दिखाई देने की सूचना मिली थी. जिसके बाद मोर को दोबारा देखने के लिए ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं. यदि एक से ज्यादा मोर आगे दिखाई देते हैं इसे जलवायु परिवर्तन की स्थिति माना जा सकता है. उन्होंने बताया कि मोर दिखने की सूचना 3-4 महीने पहले काफलीगैर से भी सामने आई थी. वहां भी ट्रैप कैमरे लगाए गए, लेकिन वहां कोई सफलता नहीं मिली.

Peacock Seen in Bageshwar
छत पर बैठा मोर (फोटो सोर्स- Villagers)

बागेश्वर में मोर के दिखने की सूचना के बाद से ही उनकी टीम ने तत्काल मौके पर पहुंचकर ट्रैप कैमरा लगा दिए हैं. इस ट्रैप कैमरे के माध्यम से अन्य मोर को भी रिकॉर्ड करने की कोशिश की जा रही है. श्याम सिंह करायत बताते हैं कि मौसम के बदलते स्वरूप के चलते आवास के बदलाव जानवरों को नए क्षेत्र की खोज के लिए प्रेरित करते हैं.

Peacock Seen in Bageshwar
बागेश्वर में मोर (फोटो सोर्स- Villagers)

वन रेंजर श्याम सिंह करायत आगे कहते हैं कि हालांकि, जब तक अन्य मोरों को नहीं देखा जा सकता, तब तक स्थिति को साफ नहीं किया जा सकता है. वन विभाग विशेषज्ञ की स्टडी के अनुसार मोर के लिए आमतौर पर 1,307 फीट की ऊंचाई को बेहतर माना जाता है.

बागेश्वर में इससे पहले जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर करीब 4,962 फीट की ऊंचाई पर काफलीगैर क्षेत्र में मोर को देखा गया था. मोर को पहली बार चार महीने पहले देखा गया था. यह विषय स्थानीय लोगों में कौतूहल का विषय बना था. वहीं, कुछ समय बाद फिर बागेश्वर नगर क्षेत्र में मोर देखा गया है, जिसका वीडियो भी सामने आया है.

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देहरादून: तराई के इलाकों में मोर मिलना आम बात है, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मोर दिखना किसी कौतूहल से कम नहीं है. जी हां, करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक मोर पहुंच गया है. इस मोर को देखने के बाद वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान हैं तो पर्यावरण वैज्ञानिकों को भी चौंका कर रख दिया है. आमतौर पर निचले जंगलों या गर्म इलाकों में पाए जाने वाला मोर इतनी ऊंचाई में शायद पहले कभी देखा गया हो, लेकिन पहाड़ों में मोर का दिखना चर्चाओं का विषय बन गया है.

बागेश्वर में दिखा मोर: दरअसल, यह मोर बागेश्वर में दिखाई दिया है. जिससे पर्यावरणविद भी अचंभित हैं कि आखिर मोर समुद्रतल से करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंच गया. जबकि, मोर के लिए समुद्र तल से 400 मीटर की ऊंचाई को मुफीद माना जाता है. बागेश्वर में मोर दिखने के बाद वृक्ष पुरुष और पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा का कहना है कि मोर देखा जाना बड़ी बात नहीं है. क्योंकि, इससे ज्यादा ऊंचाई रानीखेत की है. जहां हर साल मई महीने में मोर दिख जाते हैं.

करीब 3100 फीट की ऊंचाई पर दिखा मोर (वीडियो सोर्स- Villagers)

उनका कहना है कि बागेश्वर जिले में पहले भी मोर देखा गया था. हालांकि, वन विभाग उसे ट्रैक नहीं कर पाया था. पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा आगे कहते हैं कि वन विभाग को अकेले घूमते मोर के साथ एक अन्य मोर यहां लाकर छोड़ देना चाहिए. ताकि, उनका जोड़ा बन जाए. इससे मोर को लेकर अध्ययन का भी एक द्वार खुलता.

क्या बोले वन रेंजर: वहीं, वन रेंजर श्याम सिंह करायत बताते हैं कि मोर के दिखाई देने की सूचना मिली थी. जिसके बाद मोर को दोबारा देखने के लिए ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं. यदि एक से ज्यादा मोर आगे दिखाई देते हैं इसे जलवायु परिवर्तन की स्थिति माना जा सकता है. उन्होंने बताया कि मोर दिखने की सूचना 3-4 महीने पहले काफलीगैर से भी सामने आई थी. वहां भी ट्रैप कैमरे लगाए गए, लेकिन वहां कोई सफलता नहीं मिली.

Peacock Seen in Bageshwar
छत पर बैठा मोर (फोटो सोर्स- Villagers)

बागेश्वर में मोर के दिखने की सूचना के बाद से ही उनकी टीम ने तत्काल मौके पर पहुंचकर ट्रैप कैमरा लगा दिए हैं. इस ट्रैप कैमरे के माध्यम से अन्य मोर को भी रिकॉर्ड करने की कोशिश की जा रही है. श्याम सिंह करायत बताते हैं कि मौसम के बदलते स्वरूप के चलते आवास के बदलाव जानवरों को नए क्षेत्र की खोज के लिए प्रेरित करते हैं.

Peacock Seen in Bageshwar
बागेश्वर में मोर (फोटो सोर्स- Villagers)

वन रेंजर श्याम सिंह करायत आगे कहते हैं कि हालांकि, जब तक अन्य मोरों को नहीं देखा जा सकता, तब तक स्थिति को साफ नहीं किया जा सकता है. वन विभाग विशेषज्ञ की स्टडी के अनुसार मोर के लिए आमतौर पर 1,307 फीट की ऊंचाई को बेहतर माना जाता है.

बागेश्वर में इससे पहले जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर करीब 4,962 फीट की ऊंचाई पर काफलीगैर क्षेत्र में मोर को देखा गया था. मोर को पहली बार चार महीने पहले देखा गया था. यह विषय स्थानीय लोगों में कौतूहल का विषय बना था. वहीं, कुछ समय बाद फिर बागेश्वर नगर क्षेत्र में मोर देखा गया है, जिसका वीडियो भी सामने आया है.

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