कोरबा: सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली ओल्ड पेंशन स्कीम को वैसे तो 2004 में ही तत्कालीन केंद्र सरकार ने बंद किया था, लेकिन छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों से विकल्प भरवारा था. उन्हें विकल्प दिया गया कि वह ओल्ड पेंशन स्कीम चाहते हैं या फिर नई पेंशन स्कीम में जाना चाहते हैं.
बड़ी तादाद में कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन स्कीम का विकल्प भरा. तत्कालीन सरकार ने लगभग 19000 करोड़ रुपए की राशि पीएफडीआरए से वापस मांगी थी.
हाल ही में छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस मुद्दे पर जमकर बहस हुई. अब प्रदेश भर के कर्मचारी एक बार फिर ओपीएस और एनपीएस को लेकर चर्चा कर रहे हैं.
बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारी अब भी ओल्ड पेंशन योजना का लाभ चाहते हैं. वह कहते हैं कि एनपीएस सरकारी कर्मचारियों के भविष्य के लिए घातक है. खास तौर पर उन कर्मचारियों के लिए, जो 2004 के पहले अनियमित थे और इसके बाद उन्हें नियमित किया गया. इनमें बड़ी संख्या में संवीलियन से पहले काम कर आर शिक्षाकर्मी शामिल हैं. उनकी सर्विस की गणना सीधे 2004 से की जा रही है.
आखिर क्या कारण है कि सरकारी कर्मचारी अब भी ओल्ड पेंशन योजना को अपनाना चाहते हैं? इसे लेकर ईटीवी भारत ने कर्मचारी संगठनों से बात की है.
विधानसभा में गूंजा मुद्दा: छत्तीसगढ़ विधानसभा में एनपीएस को लेकर विधायक भावना बोहरा ने प्रश्नकाल के दौरान सवाल उठाया कि ओपीएस की सहमति देने वाले कर्मचारी और अधिकारियों के खाते में नियमित राशि जमा नहीं होने पर उनके खातों को नियमित रखने के लिए किस तरह के प्रावधान हैं? वर्तमान में राशि की कटौती और पूर्व में एनपीएस योजना के तहत काटी गई राशि के समायोजन के लिए क्या प्लान है?
वित्त मंत्री ने दिया जवाब: इस पर वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने कहा कि, "इसके संबंध में जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. पिछली सरकार की गिद्ध दृष्टि पीएफडीआरए में जमा 19 हजार करोड़ पर थी. सरकार अपने हिस्से का 10 फीसद का अंशदान नहीं देना चाहती थी. वर्तमान में एनपीएस का विकल्प चयन करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन से योजना के प्रावधान के अनुसार नियमित कटौती की जा रही है, जबकि पिछली सरकार ने एनपीएस की जगह 1 नवम्बर 2004 से बंद हो चुकी ओपीएस को बहाल किया था. इस सिलसिले में अधिसूचना जारी की गई थी. ओपीएस पेंशन के लिए प्रावधान किए गए हैं. इस मामले में केन्द्र सरकार से नहीं, बल्कि पीएफआरडीए से 19 हजार 136 करोड़ 81 हजार रुपए राज्य सरकार को प्राप्त होना है."
ऐसे समझिए दोनो पेंशन योजनाओं को : दरअसल, पुरानी पेंशन योजना 1 अप्रैल 2004 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा बंद कर दी गई थी. इसकी जगह नई पेंशन स्कीम लाई गई है. ओल्ड पेंशन योजना में पेंशन के लिए सैलरी में से किसी तरह की कटौती नहीं होती थी, लेकिन न्यू पेंशन योजना में 10 प्रतिशत बेसिक और डियरनेस एलाउंस को काट लिया जाता है.पुरानी पेंशन योजना में सरकारी खजाने से भुगतान किया जाता था. इधर नई पेंशन योजना शेयर मार्किट पर आश्रित है. ओल्ड पेंशन योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड की सुविधा थी. नेशनल पेंशन योजना में गारंटी तय नहीं है. पुरानी पेंशन योजना में 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी का प्रावधान है. नई योजना में यह सुविधा नहीं है. पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय बेसिक सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में प्रदान करने का स्पष्ट प्रावधान है, जिसे बुढ़ापे के एक बड़े सहारे के तौर पर देखा जाता है. नई योजना में यह प्रावधान अस्थाई है. पुरानी पेंशन योजना में छह महीने के पश्चात दिए जाना वाला भत्ता लागू होता है. नई पेंशन योजना में यह भत्ता लागू नहीं होता. पुरानी पेंशन योजना में सेवारत कर्मचारी की मृत्यु होने पर कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है. नई योजना में सरकार पैसे जमा कर लेती है. अलग-अलग रिपोर्ट्स में पुरानी पेंशन योजना को राजकोषीय घाटे का कारण माना गया था.
क्या कहते हैं कर्मचारियों के संगठन: इस बारे में सरकारी कर्मचारी और अधिकारी फेडरेशन के अध्यक्ष केआर डहरिया का कहना है कि, "कांग्रेस सरकार ने ओल्ड पेंशन योजना को बहाल किया था. हालांकि इसे 2004 से ही बंद कर दिया गया था. विधानसभा में यह मामला फिर से उठा और हमें उम्मीद है कि सरकार हमें ओल्ड पेंशन योजना में एक बार फिर से डाल देगी. नई पेंशन योजना कर्मचारियों के लिए ठीक नहीं है. पेंशन के तौर पर बहुत कम राशि मिलेगी और अधिकारी कर्मचारी के वेतन से जो अंशदान की कटौती की जाती है. उतना ही राशि सरकार भी खाते में जमा करती है लेकिन फिर इस पैसे को शेयर मार्केट में डाल दिया जाता है.अब इसमें कितनी बढ़ोतरी होगी यह स्पष्ट नहीं होता. जोखिम भी अधिक होता है. कितने पैसे आएंगे, नहीं आएंगे यह स्पष्ट नहीं होता. इसलिए हमें ओल्ड पेंशन योजना का ही लाभ दिया जाना चाहिए."
जानिए क्या कहते हैं प्रदेश शिक्षक संघ: छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक संघ के कार्यकारी प्रांत अध्यक्ष ओमप्रकाश बघेल कहते हैं कि केंद्र सरकार ने 2004 से एनपीएस योजना को लागू किया है. लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे कई कर्मचारी साथी हैं, जो 1998 या 95 से विभाग में सेवा दे रहे हैं. इसके बाद हमारे कर्मचारियों का शिक्षा विभाग में जुलाई 2018 में संवीलियन कर दिया गया. सरकार यह मानती है कि ऐसे सभी कर्मचारी पंचायत के अधीन थे, इसलिए वो शिक्षा विभाग के कर्मचारी नहीं हैं. मैं पूछना यह चाहता हूं सरकार से कि यदि वह स्कूल में अध्यापन कार्य करवा रहे थे तो वह आखिर किसके कर्मचारी हुए? भले ही उनकी नियुक्ति पंचायत विभाग ने की थी. इसलिए जो 2004 के पहले नियुक्त हुए थे, उन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा है? जबकि इसके उलट ज अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारी हैं और जिनकी नियुक्ति 2004 के पहले हुई थी. उन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ अब भी मिल रहा है.
महज 800 रुपए प्रतिमाह मिलेगा पेंशन:आगे ओमप्रकाश बघेल ने कहा कि, "शिक्षा विभाग के कर्मचारियों को कहा जाता है कि चूंकि आपका संवीलियन 2018 में हुआ है. इसलिए आपको नई पेंशन स्कीम का ही लाभ दिया जाएगा. आप इसी स्कीम के तहत कवर होंगे.ओल्ड पेंशन स्कीम में जीपीएफ और स्थाई पेंशन सहित कई लाभ प्राप्त करने की पात्रता होती है. लेकिन विभाग हमारे शिक्षक साथियों के मामले में 2018 के पहले की सेवा को कोई गणना ही नहीं कर रहा है. 2018 से सेवा नियुक्ति मानी जाएगी. अब कई कर्मचारी ऐसे हैं, जो साल 2025-2026 में रिटायर हो जाएंगे. इस नियम के अनुसार उनकी 10 साल की सेवा पूरी नहीं हो पाएगी. इस आधार पर न्यू पेंशन स्कीम के तहत उन्हें महज 800 रुपए प्रतिमाह का पेंशन दिया जाएगा. यह कर्मचारियों का अपमान करने जैसा है. इसलिए हम चाहते हैं की सेवा काल की गणना 2004 के पहले से की जाए और कर्मचारियों का सम्मान किया जाए. हमारे ऐसे सभी साथियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ दिया जाए."
ऐसे में कर्मचारियों की भी मांग है कि उन्हें ओल्ड पेंशन योजना का लाभ मिले क्योंकि नई योजना से उनकों कोई खास लाभ नहीं मिल पाएगा.