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हाटी समुदाय के जनजातीय दर्जे से जुड़े मामले की सुनवाई अब 21 नवंबर को, फिलहाल कानून के अमल पर रोक - Hatti community ST tribe case

Hatti community ST tribe case: हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का मामला हाईकोर्ट में लंबित है. इस मामले में अब अगली सुनवाई 21 नवंबर को होगी. डिटेल में जानें क्या है केस...

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 20, 2024, 9:58 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़े मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई 21 नवंबर तक टल गई है. हाटी समुदाय को ये दर्जा दिए जाने संबंधी कानून को एक याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

गिरिपार यानी ट्रांसगिरि क्षेत्र के हाटी समुदाय को केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया है. इस संबंध में कानून बन गया था, लेकिन उसके बाद इस कानून को हिमाचल हाईकोर्ट में याचिका के जरिए चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई 21 नवंबर तक टल गई है.

अगली सुनवाई तक अदालत ने इस मामले के कानून के अमल पर लगाई रोक को बढ़ा दिया है. हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार के जनजातीय विकास विभाग के पहली जनवरी 2024 को जारी उस पत्र पर भी रोक लगाई है, जिसमें गिरिपार क्षेत्र के लोगों को जनजातीय प्रमाण पत्र जारी करने को लेकर डीसी सिरमौर को आदेश जारी किए गए थे.

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष हुई. ट्रांस गिरि क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने से जुड़ा यह मामला वर्ष 1995, 2006 व 2017 में केंद्र सरकार के समक्ष भेजा गया था. केंद्र सरकार ने तब इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था.

इन कारणों में पहला गिरिपार क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया था. इसके अलावा दूसरा कारण हाटी शब्द से संबंधित था. हाटी सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है और ये किसी जातीय समूह की तरफ संकेत नहीं करता है.

अदालत ने कानूनी तौर पर इन्हें (गिरिपार के लोगों को) जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना प्रथम दृष्टया सही नहीं पाया है. चुनौती याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही उक्त क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित कर दिया गया. अलग-अलग याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि गिरिपार की जनता पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखती है. प्रदेश में हाटी नाम से कोई भी जनजाति नहीं है.

आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दे दिया गया है जो कानूनी तौर पर गलत है. किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने के मानदंड को पूरा नहीं करता हो.

देश में आरक्षण नीति के अनुसार, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत क्रमश: 15 और 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. एससी और एसटी अधिनियम में संशोधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांस गिरि क्षेत्र के सभी लोगों को आरक्षण मिलना शुरू हो जाना था.

इससे उन्हें उच्च और आर्थिक रूप से संपन्न समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी. साथ ही पंचायती राज और शहरी निकाय संस्थानों में अनुसूचित जाति समुदायों के स्थान पर अब एसटी समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सितंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके जिसे ट्रांस गिरि क्षेत्र भी कहा जाता है, वहां के हाटी समुदाय को आदिवासी अथवा जनजातीय दर्जा देने की घोषणा की थी. इसके बाद केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर हाटी को अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दिया था. इसी फैसले के बाद अस्तित्व में आए कानून को याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई होने तक कानून के अमल पर रोक लगाई हुई है.

ये भी पढ़ें: कल से शुरू हो जाएंगी OPD, डॉक्टरों को सीएम ने दिया आश्वासन

शिमला: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़े मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई 21 नवंबर तक टल गई है. हाटी समुदाय को ये दर्जा दिए जाने संबंधी कानून को एक याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

गिरिपार यानी ट्रांसगिरि क्षेत्र के हाटी समुदाय को केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया है. इस संबंध में कानून बन गया था, लेकिन उसके बाद इस कानून को हिमाचल हाईकोर्ट में याचिका के जरिए चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई 21 नवंबर तक टल गई है.

अगली सुनवाई तक अदालत ने इस मामले के कानून के अमल पर लगाई रोक को बढ़ा दिया है. हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार के जनजातीय विकास विभाग के पहली जनवरी 2024 को जारी उस पत्र पर भी रोक लगाई है, जिसमें गिरिपार क्षेत्र के लोगों को जनजातीय प्रमाण पत्र जारी करने को लेकर डीसी सिरमौर को आदेश जारी किए गए थे.

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष हुई. ट्रांस गिरि क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने से जुड़ा यह मामला वर्ष 1995, 2006 व 2017 में केंद्र सरकार के समक्ष भेजा गया था. केंद्र सरकार ने तब इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था.

इन कारणों में पहला गिरिपार क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया था. इसके अलावा दूसरा कारण हाटी शब्द से संबंधित था. हाटी सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है और ये किसी जातीय समूह की तरफ संकेत नहीं करता है.

अदालत ने कानूनी तौर पर इन्हें (गिरिपार के लोगों को) जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना प्रथम दृष्टया सही नहीं पाया है. चुनौती याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही उक्त क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित कर दिया गया. अलग-अलग याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि गिरिपार की जनता पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखती है. प्रदेश में हाटी नाम से कोई भी जनजाति नहीं है.

आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दे दिया गया है जो कानूनी तौर पर गलत है. किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने के मानदंड को पूरा नहीं करता हो.

देश में आरक्षण नीति के अनुसार, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत क्रमश: 15 और 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. एससी और एसटी अधिनियम में संशोधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांस गिरि क्षेत्र के सभी लोगों को आरक्षण मिलना शुरू हो जाना था.

इससे उन्हें उच्च और आर्थिक रूप से संपन्न समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी. साथ ही पंचायती राज और शहरी निकाय संस्थानों में अनुसूचित जाति समुदायों के स्थान पर अब एसटी समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सितंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके जिसे ट्रांस गिरि क्षेत्र भी कहा जाता है, वहां के हाटी समुदाय को आदिवासी अथवा जनजातीय दर्जा देने की घोषणा की थी. इसके बाद केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर हाटी को अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दिया था. इसी फैसले के बाद अस्तित्व में आए कानून को याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई होने तक कानून के अमल पर रोक लगाई हुई है.

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