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दिल्ली चिड़ियाघर में क्यों हुई गैंडे और हिमालयन भालू की मौत, वजह जानकार आप हो जाएंगे हैरान - RHINO DEATH IN DELHI ZOO

दिल्ली में अचानक हुई गैंडे और भालू की मौत ने सवाल खड़े किए थे, लेकिन अब उनकी मौत की वजह का पोस्टमार्टम में खुलासा हो गया.

गैंडे की मौत तीव्र रक्तस्रावी गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण हुई
गैंडे की मौत तीव्र रक्तस्रावी गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण हुई (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jan 6, 2025, 2:14 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क (चिड़ियाघर) में गैंडे और हिमालयन भालू की रहस्यमय मौतों ने वन्यजीव संरक्षण और देखभाल के तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 20 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच हुई इन मौतों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि दोनों जानवर गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे, लेकिन समय पर उनकी देखभाल नहीं की गई.

गैंडे की मौत का कारण "एक्यूट हेमोरेजिक एंटेराइटिस" (आंत और पेट में सूजन व ब्लीडिंग) बताया गया है, जिसे आमतौर पर खूनी पेचिश कहा जाता है. वहीं, हिमालयन भालू की मौत पेट में संक्रमण के चलते हुई.

लापरवाही के संकेत, समय पर चिकित्सा नहीं
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दोनों जानवरों की स्थिति गंभीर होने के बावजूद उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई. सरकारी रिकॉर्ड में इन्हें मौत से पहले तक स्वस्थ बताया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि खूनी पेचिश और पेट संक्रमण के लक्षण 24 घंटे पहले से ही दिखने लगते हैं. बावजूद इसके, जानवरों की गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया गया.

नियमों का पालन नहीं हुआ
चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाल के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं. यहां 20 से अधिक बाड़ों में जानवरों की निगरानी के लिए एनिमल कीपर, हेड कीपर और अन्य स्टाफ के साथ दो वेटरनरी डॉक्टर भी तैनात हैं. इसके अलावा, चिड़ियाघर में 250 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. बावजूद इसके, गैंडे और भालू की स्थिति पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

व्यवहार में बदलाव पर देना चाहिए ध्यान
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी जानवर की गतिविधियां सामान्य नहीं लगतीं, तो एनिमल कीपिंग स्टाफ को तुरंत अधिकारियों को सूचित करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर जानवरों का इलाज किया जाना चाहिए. लेकिन इस मामले में ऐसी कोई प्रक्रिया अपनाई गई हो, इसके प्रमाण नहीं मिले.

जांच के लिए भेजे गए सैंपल
चिड़ियाघर के निदेशक डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि जानवरों की मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए सैंपल बरेली स्थित इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) भेजे गए हैं. उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जा रही है और जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जाएगी.

सवालों के घेरे में चिड़ियाघर प्रशासन
इस घटना ने चिड़ियाघर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते उचित निगरानी और इलाज होता, तो इन जानवरों की जान बचाई जा सकती थी. अब देखना होगा कि प्रशासन इन सवालों के जवाब कैसे देता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं.

स्टाफ की अनुभवहीनता गंभीर मुद्दा
चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाल के लिए स्टाफ की कमी और अनुभवहीन कर्मचारियों की तैनाती को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. मल्टी-टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) को जानवरों की देखभाल में लगाए जाने पर आलोचना हो रही है, क्योंकि ये कर्मचारी मुख्य रूप से कार्यालय के काम के लिए होते हैं. इस पर सफाई देते हुए डॉ. कुमार ने कहा, "हमारे पास तीन प्रकार के वर्कर्स हैं. एक अनुभवी एनिमल कीपर हैं जो लंबे समय से जानवरों की देखभाल कर रहे हैं और इनका अनुभव अमूल्य है. दूसरा प्रशिक्षित एमटीएस, जो नए एमटीएस को पुराने एनिमल कीपर के संरक्षण में प्रशिक्षण देते हैं.

अप्रैल 2024 से अब तक उन्हें नियमित गतिविधियों में शामिल किया गया है. तीसरे डेली वेज वर्कर्स, जो अस्थायी कर्मचारी होते हैं, जो अनुभवी कीपर्स के निर्देशानुसार काम करते हैं. डॉ. संजीत कुमार ने यह भी कहा कि यदि किसी स्तर पर लापरवाही पाई जाती है, तो आवश्यक कार्रवाई की जाती है. उन्होंने कहा कि हमारे हर सेक्शन में कम से कम तीन से पांच एनिमल कीपर होते हैं. हाथियों के मामले में प्रत्येक हाथी पर दो महावत नियुक्त किए जाते हैं.

नई दिल्ली: दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क (चिड़ियाघर) में गैंडे और हिमालयन भालू की रहस्यमय मौतों ने वन्यजीव संरक्षण और देखभाल के तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 20 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच हुई इन मौतों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि दोनों जानवर गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे, लेकिन समय पर उनकी देखभाल नहीं की गई.

गैंडे की मौत का कारण "एक्यूट हेमोरेजिक एंटेराइटिस" (आंत और पेट में सूजन व ब्लीडिंग) बताया गया है, जिसे आमतौर पर खूनी पेचिश कहा जाता है. वहीं, हिमालयन भालू की मौत पेट में संक्रमण के चलते हुई.

लापरवाही के संकेत, समय पर चिकित्सा नहीं
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दोनों जानवरों की स्थिति गंभीर होने के बावजूद उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई. सरकारी रिकॉर्ड में इन्हें मौत से पहले तक स्वस्थ बताया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि खूनी पेचिश और पेट संक्रमण के लक्षण 24 घंटे पहले से ही दिखने लगते हैं. बावजूद इसके, जानवरों की गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया गया.

नियमों का पालन नहीं हुआ
चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाल के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं. यहां 20 से अधिक बाड़ों में जानवरों की निगरानी के लिए एनिमल कीपर, हेड कीपर और अन्य स्टाफ के साथ दो वेटरनरी डॉक्टर भी तैनात हैं. इसके अलावा, चिड़ियाघर में 250 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. बावजूद इसके, गैंडे और भालू की स्थिति पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

व्यवहार में बदलाव पर देना चाहिए ध्यान
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी जानवर की गतिविधियां सामान्य नहीं लगतीं, तो एनिमल कीपिंग स्टाफ को तुरंत अधिकारियों को सूचित करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर जानवरों का इलाज किया जाना चाहिए. लेकिन इस मामले में ऐसी कोई प्रक्रिया अपनाई गई हो, इसके प्रमाण नहीं मिले.

जांच के लिए भेजे गए सैंपल
चिड़ियाघर के निदेशक डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि जानवरों की मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए सैंपल बरेली स्थित इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) भेजे गए हैं. उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जा रही है और जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जाएगी.

सवालों के घेरे में चिड़ियाघर प्रशासन
इस घटना ने चिड़ियाघर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते उचित निगरानी और इलाज होता, तो इन जानवरों की जान बचाई जा सकती थी. अब देखना होगा कि प्रशासन इन सवालों के जवाब कैसे देता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं.

स्टाफ की अनुभवहीनता गंभीर मुद्दा
चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाल के लिए स्टाफ की कमी और अनुभवहीन कर्मचारियों की तैनाती को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. मल्टी-टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) को जानवरों की देखभाल में लगाए जाने पर आलोचना हो रही है, क्योंकि ये कर्मचारी मुख्य रूप से कार्यालय के काम के लिए होते हैं. इस पर सफाई देते हुए डॉ. कुमार ने कहा, "हमारे पास तीन प्रकार के वर्कर्स हैं. एक अनुभवी एनिमल कीपर हैं जो लंबे समय से जानवरों की देखभाल कर रहे हैं और इनका अनुभव अमूल्य है. दूसरा प्रशिक्षित एमटीएस, जो नए एमटीएस को पुराने एनिमल कीपर के संरक्षण में प्रशिक्षण देते हैं.

अप्रैल 2024 से अब तक उन्हें नियमित गतिविधियों में शामिल किया गया है. तीसरे डेली वेज वर्कर्स, जो अस्थायी कर्मचारी होते हैं, जो अनुभवी कीपर्स के निर्देशानुसार काम करते हैं. डॉ. संजीत कुमार ने यह भी कहा कि यदि किसी स्तर पर लापरवाही पाई जाती है, तो आवश्यक कार्रवाई की जाती है. उन्होंने कहा कि हमारे हर सेक्शन में कम से कम तीन से पांच एनिमल कीपर होते हैं. हाथियों के मामले में प्रत्येक हाथी पर दो महावत नियुक्त किए जाते हैं.

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