शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां पर दगना जैसी कुप्रथा बहुत ज्यादा हावी है. अब यह मासूम बच्चों के लिए दंश बन गया है. आए दिन दगना कुप्रथा के केस सामने आ रहे हैं. जिसमें मासूम बच्चों को अपनी जान भी गंवानी पड़ रही है. दगना कुप्रथा को लेकर लगातार अवेयर भी किया जा रहा है, लेकिन मैदानी लेवल पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है, क्योंकि इसके केस में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. एक बार फिर से दगना कुप्रथा का शिकार एक मासूम हुआ है, जहां 5 माह के बालक की दगना कुप्रथा के चलते मौत हो गई है.
दगना एक दंश
मामला शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 20 से 25 किलोमीटर दूर पठरा गांव का है. जहां 5 माह का एक मासूम बीमार था. बीमार होने के बाद परिजनों ने पहले उसे घर पर ही पेट में किसी गर्म वस्तु से दाग दिया. परिजनों को लगा कि इससे उनका बच्चा स्वस्थ हो जाएगा, लेकिन जब तबीयत और बिगड़ने लगी तो फिर उसे सिंहपुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर परिजन पहुंचे. यहां उस बालक की स्थिति नाजुक देखते हुए, उसे तुरंत ही आनन फानन में जिला अस्पताल रेफर किया गया.
जिला अस्पताल से तुरंत ही उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर ने बुधवार को बताया कि बच्चा दिमागी बुखार से गंभीर हालत में है, उसे राहत के लिए ट्यूब डालना पड़ेगा, तो पिता रामदास पाल और परिवार के अन्य सदस्य इसके लिए राजी नहीं हुए और जबरन वहां से अपने बच्चे को घर ले आए जहां बालक की मौत हो गई. मेडिकल कॉलेज में बच्चे का इलाज करने वाले डॉक्टर ने बताया कि 'उसके शरीर पर दागने के निशान थे, ये अंधविश्वास ही है कि परिजन मेडिकल कॉलेज में इलाज की जगह बच्चे को घर ले गए और आखिर में उस बच्चे की मौत हो गई.'
इस पूरे मामले को लेकर सीएमएचओ डॉक्टर ए के लाल का कहना है कि 'दिमागी बुखार से पीड़ित पांच माह के बच्चे को नाजुक हालत में अस्पताल लाया गया था. उसके शरीर पर दागने के निशान थे, बालक की मौत की जानकारी मिली है.
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आखिर कब तक ये कुप्रथा ?
दगना कुप्रथा कहें या अंधविश्वास आखिर कब तक ये हावी रहेगा. दुनिया 21वीं सदी में पहुंच गई है, शहडोल जैसे आदिवासी बहुल इलाके में भी मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े-बड़े स्वास्थ्य के लिए संस्थान खुल चुके हैं, फिर भी लोग बीमारी में बच्चों को इलाज कराने की जगह दगना जैसे कुप्रथा के रास्ते क्यों अपनाते हैं, यह भी एक बड़ा सवाल है.