जयपुर. एक बच्चे का सबसे ज्यादा लगाव अपनी मां से होता है. मां से उसका इमोश्नल अटैचमेंट होता है. यही वजह है कि मां से बच्चे का संवाद उसके मेंटल और इमोशनल बिहेवियर को प्रभावित करता है. कुछ इसी सोच के साथ जयपुर निवासी डॉ. सीमा जोशी ने बच्चों की काउंसलिंग को अपना प्रोफेशन बनाया और सैकड़ों बच्चों से एक मां की तरह खुलकर बात करते हुए, उनकी मानसिक समस्या का निस्तारण करने का प्रयास किया.
एक दिव्यांग बच्ची ने बदली सीमा की जिंदगी : 'आओ बात करें' कुछ इसी तरह का प्रकल्प लेकर चल रही डॉ. सीमा जोशी खुद तो निःसंतान है, लेकिन आज सैकड़ों बच्चों की जिंदगी संवारते हुए उनकी मां का किरदार निभा रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके सफर की शुरुआत एक दिव्यांग बच्ची के कथन के साथ हुई. 2010 में जब वो खुद एक एक्सीडेंट की वजह से चलने में सक्षम नहीं थी, उस दौरान उनकी फ्रेंड की दिव्यांग बच्ची ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा था कि 'सीमा आंटी आप रोती क्यों हो आपकी बेटी है ना'. ये वो शब्द थे जिन्होंने न सिर्फ उन्हें इंस्पायर किया बल्कि उनके जीवन में एक नया अध्याय लिखने की ओर अग्रसर किया. उन्होंने कॉलेज में भी पढ़ाया था, पीएचडी भी की थी. लेकिन उनके सफर की असली शुरुआत उस दिव्यांग बच्ची के प्रेरित करने वाले कथन के साथ हुई और फिर उन्होंने एक एनजीओ की शुरुआत की और उसमें नन्हें फरिश्ते कार्यक्रम के तहत फिजिकल और मेंटली चैलेंज्ड बच्चों के लिए काम किया. नन्हें फरिश्ते प्रकल्प के बाद उन्होंने एक नए कार्यक्रम की शुरुआत की 'आओ बात करें'.
डॉ. सीमा ने बताया कि कोरोना काल में लोग को डिप्रेशन और बीपी जैसी शिकायत होने लगी थी. जिसका एक बड़ा कारण था अकेलापन. कुछ इसी तरह का अकेलापन बच्चों में भी सामने आया. तब उन्होंने 'पेरेंटिंग इन कोरोना टाइम' प्रकल्प की शुरुआत की. इसी दौरान वो बच्चों से भी मिली. उनकी मेंटल हेल्थ पर बात की. डॉ. सीमा ने बताया कि जब वो बाल आयोग में थी उस दौरान भी ये बात सामने आई थी कि बच्चों के दिल में बहुत सारी बातें होती हैं, जो वो सबसे नहीं कह पाते. कभी वो एक्सप्रेस नहीं कर पाते और कभी खुद नहीं समझ पाते कि उनको कोई प्रॉब्लम है. तब बच्चों के नजरिए से उन्होंने एक प्रकल्प शुरू किया 'आओ बात करें', जिसके तहत बच्चों को उनसे बात करने के लिए प्रेरित किया. उन्हें समझाया गया कि वो जो भी कहना चाहते हैं, उनसे कहें.
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उन्होंने बताया कि वो खुद एक सर्टिफाइड चाइल्ड काउंसलर भी है. इस वजह से साउंड बिहाइंड द वर्ड और साउंड बिटवीन द वर्ड्स कैच करने पर ही वो बच्चों की दिल की गहराई में उतर सकती हैं. इसी तरह की काउंसलिंग उन्होंने फोन पर भी की, लेकिन उन्होंने बच्चों से फेस टू फेस मिलकर ही काउंसलिंग करने को प्राथमिकता दी. इससे बच्चों की बॉडी लैंग्वेज, एनर्जी लेवल से वो कनेक्ट कर पाती हैं और इस कनेक्शन के जरिए ही बच्चे को करेक्ट कर पाती हैं.
" हम पैरेंट्स नहीं बने, लेकिन जन्में तो पैरेंट्स से ही है " : उन्होंने कहा कि कई बार ऐसे सवाल भी उठे कि वो खुद तो निःसंतान है तो बच्चों की काउंसलिंग किस तरह कर सकती हैं. आखिर किस तरह बच्चों की मानसिक स्थिति को दुरुस्त कर सकती हैं. इस सवाल को उन्होंने कई बार फेस किया. तब जवाब यही दिया कि वो खुद पैरेंट नहीं बनी, लेकिन जन्म तो पेरेंट्स से लिया है. इसलिए उस भावना को समझती हैं. दूसरा मातृत्व की वजह से महिलाएं अपने बच्चे तक सेंट्रलाइज होकर रह जाती हैं, लेकिन उनके पास बहुत सारे बच्चों के लिए काम करने का मौका था और इसी ब्रॉड विजन के साथ उन्होंने बच्चों के लिए काम करना शुरू किया, और समझ में आ गया कि ये तो सारी दुनिया ही अपनी है. यही वजह है कि वो एक नहीं बल्कि अनेक बच्चों की 'मां' बन गई. बहुत से बच्चों की दोस्त बन गई और बच्चों की बीच सीमा दोस्त नाम से फेमस हो गई, क्योंकि दोस्ती के रिश्ते में बच्चा खुलकर अपनी बात कह पाता है.
कई शहरों में करती हैं काउंसलिंग : बहरहाल, आज डॉ. सीमा जयपुर से बाहर जाकर भी कई शहरों में बच्चों की काउंसलिंग करती है. कई स्कूल-कॉलेज में सेशन लेती हैं. बच्चों की बात सुनती है, इसलिए वह भी खुलकर अपनी बात उनसे शेयर करते हैं. यही वजह है कि उनका प्रकल्प 'आओ बात करें' अभी भी बदस्तूर जारी है, क्योंकि यहां एक 'मां' सुन रही होती है.