कोटा. कोटा से 25 किलोमीटर दूर आलनिया डैम एक नेशनल वेटलैंड के रूप में नोटिफाई है. यहां पर विदेश से हर साल करीब 40000 से ज्यादा पक्षी प्रवास पर आते हैं. हालांकि इस बार पक्षियों के लिए पेटा काश्त करने वाले लोग खतरा बने हुए हैं. इस बार डैम खाली रहने से इन लोगों को जगह भी ज्यादा मिल गई है और करीब 300 बीघा एरिया में यहां पर खेती की जा रही है. हालात ऐसे हैं कि सरकारी और डैम के कैचमेंट एरिया में खेती हो रही है. इसका सीधा असर विदेशी प्रवासी पक्षियों पर पड़ रहा है.
वन विभाग के उपवन संरक्षक तरुण मेहरा का कहना है कि डैम का कैचमेंट फॉरेस्ट लैंड है और डूब क्षेत्र सरकारी भूमि है. बांध का क्षेत्राधिकार सिंचाई विभाग के पास है. डैम फॉरेस्ट लैंड नहीं है, लेकिन वेटलैंड के रूप में नोटिफाई है. सिवायचक और डूब क्षेत्र में जब पानी सिकुड़ जाता है, तब लोग अतिक्रमण कर सिंचाई विभाग की जमीन पर पेटा काश्त करते हैं और यह बड़े तादाद पर हो रहा है. हमने अवैध खनन रोकने के लिए लगाए गए गश्ती दल को जिम्मेदारी सौंप दी है. उन्हें अतिक्रमण रोकथाम के लिए उनको भी पाबंद किया है.
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साथ ही मंडाना रेंजर को गौरव मीना को भी पाबंद किया है कि नियमित रूप से वहां पर गश्त करें और पेटा काश्त रोकने के लिए भी सिंचाई विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों को सूचित कर रहे हैं. ताकि अतिक्रमण को रोकने का प्रयास किया जाएगा. हम यह भी देख रहे हैं कि वहां आसपास कोई शिकारी प्रकृति के लोग तो नहीं आ रहे हैं. ऐसे लोगों को भी पकड़ पुलिस के सुपुर्द करने के निर्देश दिए हैं. नेचर प्रमोटर्स के अनुसार अगर ऐसे ही चला रहा, तो प्रवासी पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट आ जाएगी.
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माइग्रेटरी बर्ड्स के वेटलैंड को पहुंचा रहे नुकसान: डीसीएफ मेहरा का मानना है कि वेटलैंड पर काफी माइग्रेटरी बर्ड्स आते हैं. ये यहां पर मल्टिप्लाई करने आते हैं. अधिकांश जमीन पर ही अंडे देते है, क्योंकि डैम की भूमि में नमी होती है. वहीं आसपास झाड़ियां में घोंसला बना कर रहते हैं. जबकि पेटा काश्त करने वाले लोग पेड़ों को नष्ट करके पेटा काश्त कर रहे हैं. इस जमीन पर पेटा काश्त होने से इन पक्षियों की पापुलेशन पर भी फर्क पड़ेगा. माइग्रेटरी बर्ड्स के हैबिटेट को लालच में नुकसान किया जा रहा है. जबकि यह पक्षी यूरोप से यूरेशिया मार्ग से हजारों मील की दूरी तय कर कोटा के आलनिया वेटलैंड पर आते हैं. इनके नहीं आने से एक पूरे इकोसिस्टम पर भी असर पड़ेगा.
40 साल बाद नजर आया ब्लैक नेक स्टॉक व व्हाइट स्टॉक: नेचर प्रमोटर मनीष आर्य ने बताया कि आलनिया में 200 तरह के विदेशी प्रवासी पक्षी आते हैं, जिनकी तादाद करीब 40000 के आसपास से है. अभी भी वहां पर इसी तरह के पक्षी हैं. इस बार बहुत समय बाद ब्लैक नेक स्टॉक व व्हाइट स्टॉक भी वहां पर देखने को मिला है. दोनों को 30 से 40 साल पहले देखा होगा. अन्य पक्षियों में फ्लेमिंगो, बार हेडेड गूज, गार्गेनि, रेड कस्टर्ड पोचार्ड हैं. इसके अलावा लेसर क्रस्टल सहित कई बर्ड्स आती हैं. वेटलैंड काफी इंपोर्टेंट है, इसलिए उसको संरक्षित हमें करना ही चाहिए.
ट्रैक्टर व अन्य कृषि मशीन लेकर पहुंच रहे लोग: इस बार कम बारिश होने के चलते आलनिया डैम में भी पूरी तरह से पानी नहीं आया था. इसके जरिए सिंचाई भी की जाती है. ऐसे में सिंचाई के लिए पानी छोड़ने के चलते यह काफी खाली भी हो गया है. इसीलिए बड़ी संख्या में लोगों को खाली जमीन कैचमेंट एरिया और डूब क्षेत्र में मिल गई है जिसके चलते यहां पर बड़ी संख्या में लोगों ने खेती कर ली है. हालात ऐसे हैं कि यहां पर ट्रैक्टर से निराई, गुड़ाई और सब कुछ चल रहा है. मानवीय दखल का सीधा असर प्रवासी पक्षियों के इस बड़े हैबिटेट पर पड़ रहा है.