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उत्तराखंड में घट रहा मजबूरी का पलायन! स्वरोजगार बन रहा लोगों की पहली पसंद - Uttarakhand Migration Commission

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 5, 2024, 2:29 PM IST

Updated : May 5, 2024, 3:59 PM IST

Uttarakhand Migration Commission उत्तराखंड में अब मजबूरी का पलायन घट रहा है. क्योंकि, युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक स्वरोजगार लोगों की पहली पसंद बन रहा है. उत्तराखंड पलायन आयोग की ओर से जारी आंकड़ें बताते हैं कि मजबूरी पलायन घटकर 10 से 12 फीसदी हो गया है. इसके अलावा सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों की संख्या बढ़ी है.

Uttarakhand Migration Commission
उत्तराखंड में घट रहा पलायन (फोटो- ईटीवी भारत)
उत्तराखंड में घट रहा मजबूरी का पलायन (वीडियो ( ईटीवी भारत))

देहरादून: उत्तराखंड में पिछले कई दशकों से लगातार हो रहे पलायन के बाद पलायन आयोग का गठन किया गया. कुछ शुरुआती खराब रिपोर्ट के बाद अब पलायन की रिपोर्ट में कुछ राहत वाले आंकड़े सामने आए हैं. जहां गांव में रोजगार को लेकर लोग स्वरोजगार को अपना रहे हैं. उत्तराखंड पलायन आयोग के ताजा आंकड़े इसकी तस्दीक दे रहे हैं. जिसके तहत उत्तराखंड से बाहर जाने वाला (मजबूरी) पलायन घट गया है. जबकि, ग्रामीण क्षेत्र के आसपास छोटे कस्बों में लोग ज्यादा जा रहे हैं.

घट रहा है मजबूरी का पलायन: उत्तराखंड पलायन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में सामान्यत 60 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है. जबकि, पर्वतीय जिलों में यह ग्रामीण जनसंख्या 80 फीसदी के करीब है. इनमें से बड़ी संख्या में युवा भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जो कि पहले की अपेक्षा अब ज्यादा शिक्षित हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी जनसंख्या के पीछे कोरोना महामारी भी एक बड़ी वजह है. वहीं, पलायन आयोग के ताजा डाटा के अनुसार पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में मजबूरी का पलायन बेहद कम हुआ है.

उत्तराखंड पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. शरद नेगी ने बताया कि एक समय था, जब उत्तराखंड में 30 फीसदी लोग आजीविका की तलाश में राज्य के बाहर पलायन करते थे, लेकिन अब इस तरह के पलायन में तकरीबन 10 से 12 फीसदी कमी आई है. उन्होंने कहा कि श्रीनगर, उत्तरकाशी जैसे बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ों से लेकर मैदान तक छोटे-छोटे टाउन में आसपास के गांव से लोग अपने काम धंधों के लिए निकल रहे हैं.

इसके साथ-साथ वो पास में मौजूद अपने गांव का भी पूरा ध्यान दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे पलायन में 30 से 35 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो कि गांव के आसपास छोटे कस्बों की ओर हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को लेकर एक नई क्रांति देखने को मिल रही है. ऐसे में देखा जाए तो कस्बों में बढ़ा है, लेकिन बाहर जाने वाले पलायन में कमी आई है.

लोग चुन रहे हैं स्वरोजगार की राह: पलायन आयोग की ओर से लगातार प्रदेश के हर जिले में हो रहे पलायन को लेकर के सर्वे किया गया और लगातार पिछले कुछ सालों में किस तरह से लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं या फिर किस सेक्टर में हाथ आजमा रहे हैं, इसको लेकर पलायन आयोग ने एक विस्तृत सर्वे किया है. वहीं, पलायन आयोग ने रोजगार को लेकर पौड़ी, हल्द्वानी, रुद्रपुर, उधम सिंह नगर और देहरादून में कई बड़ी वर्कशॉप की. जिसमें सभी जिलों से स्वरोजगार करने वालों को बुलाया गया. जिससे तैयार की गई रिपोर्ट में पता चला है कि उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में खासतौर से कोरोनाकाल के बाद स्वरोजगार ने बेहद तेज गति से उछाल पकड़ी है.

सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों की संख्या बढ़ी: पलायन आयोग की रिपोर्ट में कृषि पशुपालन, सहकारिता दुग्ध विकास, मत्स्य पालन, उद्यान ग्रामीण विकास पर्यटन और सौर ऊर्जा में सरकार की ओर से चलाई गई योजनाओं में लाभार्थियों की संख्या काफी ज्यादा बड़ी है. पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हर सेक्टर की अलग-अलग सरकारी योजनाओं और उनके लाभार्थियों को लेकर विस्तृत जानकारी साझा करते हुए निष्कर्ष निकला है कि पिछले कुछ सालों में कोरोना के बाद उत्तराखंड के लोगों ने स्वरोजगार के क्षेत्र में काफी रुचि दिखाई है.

पलायन आयोग की सिफारिशें: प्रदेश में लगातार बढ़ रहे स्वरोजगार और मजबूरी के पलायन को लेकर घटते आंकड़ों को देखते हुए प्रदेश सरकार लगातार समीक्षा कर रही है. वहीं, पलायन आयोग भी प्रदेश भर में सभी जिलों के ब्लॉक स्तर पर अपने विस्तृत सर्वे के जरिए सामने आई वस्तुस्थिति को देखते हुए प्रदेश में कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं. पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी ने बताया कि पलायन आयोग को सरकार की ओर से दो प्रमुख रूप से लक्ष्य दिए गए हैं.

पलायन आयोग को सरकार की ओर से टारगेट दिए गए हैं कि वो देखें कि किस तरह से योजनाओं को और सरल किया जा सकता है और योजनाओं का किस तरह से और ज्यादा लाभ लोगों को दिया जा सकता है. इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में खासतौर से शिक्षा के स्तर में कैसे सुधार किया जा सकता है और गुणवत्ता युक्त शिक्षा में कैसे काम किया जा सकता है? इसको लेकर भी पलायन आयोग ने अपनी सिफारिशें दी है.

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उत्तराखंड में घट रहा मजबूरी का पलायन (वीडियो ( ईटीवी भारत))

देहरादून: उत्तराखंड में पिछले कई दशकों से लगातार हो रहे पलायन के बाद पलायन आयोग का गठन किया गया. कुछ शुरुआती खराब रिपोर्ट के बाद अब पलायन की रिपोर्ट में कुछ राहत वाले आंकड़े सामने आए हैं. जहां गांव में रोजगार को लेकर लोग स्वरोजगार को अपना रहे हैं. उत्तराखंड पलायन आयोग के ताजा आंकड़े इसकी तस्दीक दे रहे हैं. जिसके तहत उत्तराखंड से बाहर जाने वाला (मजबूरी) पलायन घट गया है. जबकि, ग्रामीण क्षेत्र के आसपास छोटे कस्बों में लोग ज्यादा जा रहे हैं.

घट रहा है मजबूरी का पलायन: उत्तराखंड पलायन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में सामान्यत 60 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है. जबकि, पर्वतीय जिलों में यह ग्रामीण जनसंख्या 80 फीसदी के करीब है. इनमें से बड़ी संख्या में युवा भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जो कि पहले की अपेक्षा अब ज्यादा शिक्षित हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी जनसंख्या के पीछे कोरोना महामारी भी एक बड़ी वजह है. वहीं, पलायन आयोग के ताजा डाटा के अनुसार पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में मजबूरी का पलायन बेहद कम हुआ है.

उत्तराखंड पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. शरद नेगी ने बताया कि एक समय था, जब उत्तराखंड में 30 फीसदी लोग आजीविका की तलाश में राज्य के बाहर पलायन करते थे, लेकिन अब इस तरह के पलायन में तकरीबन 10 से 12 फीसदी कमी आई है. उन्होंने कहा कि श्रीनगर, उत्तरकाशी जैसे बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ों से लेकर मैदान तक छोटे-छोटे टाउन में आसपास के गांव से लोग अपने काम धंधों के लिए निकल रहे हैं.

इसके साथ-साथ वो पास में मौजूद अपने गांव का भी पूरा ध्यान दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे पलायन में 30 से 35 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो कि गांव के आसपास छोटे कस्बों की ओर हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को लेकर एक नई क्रांति देखने को मिल रही है. ऐसे में देखा जाए तो कस्बों में बढ़ा है, लेकिन बाहर जाने वाले पलायन में कमी आई है.

लोग चुन रहे हैं स्वरोजगार की राह: पलायन आयोग की ओर से लगातार प्रदेश के हर जिले में हो रहे पलायन को लेकर के सर्वे किया गया और लगातार पिछले कुछ सालों में किस तरह से लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं या फिर किस सेक्टर में हाथ आजमा रहे हैं, इसको लेकर पलायन आयोग ने एक विस्तृत सर्वे किया है. वहीं, पलायन आयोग ने रोजगार को लेकर पौड़ी, हल्द्वानी, रुद्रपुर, उधम सिंह नगर और देहरादून में कई बड़ी वर्कशॉप की. जिसमें सभी जिलों से स्वरोजगार करने वालों को बुलाया गया. जिससे तैयार की गई रिपोर्ट में पता चला है कि उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में खासतौर से कोरोनाकाल के बाद स्वरोजगार ने बेहद तेज गति से उछाल पकड़ी है.

सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों की संख्या बढ़ी: पलायन आयोग की रिपोर्ट में कृषि पशुपालन, सहकारिता दुग्ध विकास, मत्स्य पालन, उद्यान ग्रामीण विकास पर्यटन और सौर ऊर्जा में सरकार की ओर से चलाई गई योजनाओं में लाभार्थियों की संख्या काफी ज्यादा बड़ी है. पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हर सेक्टर की अलग-अलग सरकारी योजनाओं और उनके लाभार्थियों को लेकर विस्तृत जानकारी साझा करते हुए निष्कर्ष निकला है कि पिछले कुछ सालों में कोरोना के बाद उत्तराखंड के लोगों ने स्वरोजगार के क्षेत्र में काफी रुचि दिखाई है.

पलायन आयोग की सिफारिशें: प्रदेश में लगातार बढ़ रहे स्वरोजगार और मजबूरी के पलायन को लेकर घटते आंकड़ों को देखते हुए प्रदेश सरकार लगातार समीक्षा कर रही है. वहीं, पलायन आयोग भी प्रदेश भर में सभी जिलों के ब्लॉक स्तर पर अपने विस्तृत सर्वे के जरिए सामने आई वस्तुस्थिति को देखते हुए प्रदेश में कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं. पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी ने बताया कि पलायन आयोग को सरकार की ओर से दो प्रमुख रूप से लक्ष्य दिए गए हैं.

पलायन आयोग को सरकार की ओर से टारगेट दिए गए हैं कि वो देखें कि किस तरह से योजनाओं को और सरल किया जा सकता है और योजनाओं का किस तरह से और ज्यादा लाभ लोगों को दिया जा सकता है. इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में खासतौर से शिक्षा के स्तर में कैसे सुधार किया जा सकता है और गुणवत्ता युक्त शिक्षा में कैसे काम किया जा सकता है? इसको लेकर भी पलायन आयोग ने अपनी सिफारिशें दी है.

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Last Updated : May 5, 2024, 3:59 PM IST
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