लखनऊ : थायराॅइड आज के समय में एक बड़ी बीमारी के रूप में उभर रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक हर 10 में से तीन व्यक्ति को थायराॅइड है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक इस बीमारी की चपेट में आती हैं. कुछ लोगों में हारमोन इंबैलेंस के कारण थायराॅइड की समस्या हो जाती है. वहीं कुछ लोगों में थायराॅइड ग्रंथि बढ़ जाती है. थायराॅइड ग्रंथि जब अत्यधिक बड़ी हो जाती है तो उस स्थिति में उसे घेंघा कहा जाता है. विशेषज्ञ के मुताबिक आज के समय में घेंघा की समस्या बहुत कम हो गई है. थायराॅइड ग्रंथि बहुत अधिक नहीं बढ़ पाती है, क्योंकि समय रहते लोग इसकी दवा लेना शुरू कर देते हैं.
किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार मिश्रा ने बताया कि उनके विभाग में थायराॅइड से पीड़ित होने वाले मरीजों की संख्या सबसे अधिक होती है. इनमें महिलाओं की संख्या अधिक होती है. हर 10 में से तीन या चार मरीज थायराॅइड की समस्या से जूझ रहा होता है. आज के समय में थायराॅइड की ग्रंथि बहुत अधिक नहीं बढ़ पाती है, क्योंकि समय रहते मरीज जांच कर लेता है और यह कंफर्म हो जाता है कि उसे थायराॅइड है. उसके बाद आयोडीन की पूर्ति के अलावा दवा शुरू हो जाती है. इससे थायराॅइड ग्रंथि घेंघा के रूप में तब्दील नहीं हो पाती है.
थायराॅइड की होती है रोबोटिक सर्जरी : केजीएमयू में इस समय थायराॅइड की रोबोटिक सर्जरी होती है. सबसे पहले चीर विधि से थायराॅइड ग्रंथि को बाहर किया जाता था. इसके कारण गर्दन पर एक लंबा चीर लगाया जाता था. यह ऑपरेशन महिलाओं के लिए थोड़ा कठिन था, क्योंकि हर इंसान चाहता है कि वह सुंदर दिखे, लेकिन थायराॅइड ऑपरेशन में गले में चीरा लग जाता था. फिर उसके बाद नेक स्कार एवॉइडिंग सर्जरी (गले में चीरा न आए) जिसको इंडोस्कोपी विधि कहते हैं. इसी सर्जरी के आधार से अब रोबोटिक सर्जरी हो रही है. इन नवीन सर्जरी में व्यक्ति के गले में चीरा नहीं लगता है, बल्कि बांह के नीचे, गर्दन के पीछे या फिर कान के पीछे से एंडोस्कोपी या रोबोटिक इंजेक्ट करके ऑपरेशन किया जाता है. यह बहुत ही माइनर सा चीरा होता है जिसका निशान बहुत हल्का व छोटा सा होता है.
स्क्रीनिंग पर निर्भर करती है ऑपरेशन विधि : डॉ. आनंद कुमार मिश्रा ने कहा कि यह निर्भर करता है कि किसी मरीज को किस विधि से ऑपरेशन किया जाए यह उसकी पूरी स्क्रीनिंग पर निर्भर करता है. मरीज ओपीडी में आता है उसको देखते हैं उसकी काउंसिलिंग की जाती है. उसकी समस्या के आधार पर यह निर्धारित होता है कि उसे किस प्रकार की सर्जरी की आवश्यकता है. ऐसा नहीं है कि हर व्यक्ति के ऑपरेशन के लिए रोबोटिक सर्जरी ही की जाए. मरीज की क्या समस्या है. कितनी दिक्कत होती है. उसके थायराॅइड ग्रंथि की क्या स्थिति है. उसके आधार पर मरीज की सर्जरी कौन सी विधि से होनी है, यह निर्धारित होता है.
पहले चीरा विधि से थायराॅइड का ऑपरेशन होता था. जिसमें कई बार मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती थी या फिर उसे खाने-पीने में दिक्कत होती थी. कई केस में देखा जाता था कि मरीज की आवाज चली जाती थी. इन्हीं सारी दिक्कतों को देखते हुए एंडोक्राइन डिपार्टमेंट के वरिष्ठ सर्जनों ने एंडोस्कोपी और रोबोटिक सर्जरी शुरुआत की जो काफी सफल है.
थायराॅइड के शुरुआती लक्षण : डॉ. आनंद ने बताया कि आमतौर में सबसे शुरुआती लक्षण में थायराॅइड ग्रंथि बढ़ने से गर्दन में उभार हो सकता है. गर्दन में दर्द होना थायराॅइड का सबसे पहला लक्षण हो सकता है. तेज दिल की धड़कन, घबराहट, वजन कम होना, भूख बढ़ना, हाथ कांपना, अनियमित दिल की धड़कन, गर्मी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ना हाईपरथायरायडिज्म के लक्षण होते हैं. इसके अलावा कठोर मल या कब्ज, ठंड लगना, थकान, भारी और अनियमित मासिक धर्म, जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द, पीलापन या शुष्क त्वचा, उदासी या अवसाद, पतले, भंगुर बाल या नाखून, कमज़ोरी, वजन बढ़ना भी हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण हैं. अचानक वजन कम होना, थकान, मांसपेशियों में कमजोरी, चिड़चिड़ापन, शुष्क त्वचा, याददाश्त की समस्या, कब्ज, अनियमित दिल की धड़कन, ठंड के प्रति लापरवाही करना थायराइड नोड्यूल्स के लक्षण हैं.
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