ETV Bharat / state

उत्तराखंड की राजनीति के ये हैं परिवारवादी सूरमा, जानें कब किस नेता ने अपनों के लिए तैयार किया लॉन्च पैड - lok sabha election 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष पर परिवारवादी राजनीति को लेकर अक्सर तंज कसते रहते हैं. इनमें बिहार का लालू यादव का परिवार, यूपी में मुलायम सिंह यादव का परिवार, तेलंगाना में केसीआर का परिवार और तमिलनाडु में करुणनिधि के परिवार शामिल हैं. उत्तराखंड की राजनीति में भी परिवारवाद और रिश्तेदारी का खेल जमकर खेला जाता है. परिवार पॉलिटिक्स उत्तराखंड में भी हावी है. आइए आपको उत्तराखंड में परिवारवादी पॉलिटिक्स के बारे में बताते हैं.

author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 29, 2024, 12:03 PM IST

Updated : Mar 29, 2024, 1:30 PM IST

uttarakhand
uttarakhand
उत्तराखंड की राजनीति परिवारवादी के सूरमा

देहरादून: राजनीति में परिवारवाद देश की पुरानी समस्याओं में से एक है. उत्तराखंड की राजनीति में फैलते परिवारवाद पर अगर नजर डालें तो इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कोई भी पीछे नहीं है. उत्तराखंड की राजनीति में बढ़ते परिवारवाद की सबसे बड़ी पराकाष्ठा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत हैं.

हरीश रावत ने अपने परिवार के अधिकतम लोगों के लिए राजनीतिक लॉन्च पैड तैयार किया. हरीश रावत को कांग्रेस पार्टी ने अल्मोड़ा से 1980 में पहली बार सांसद प्रत्याशी बनाया. फिर साल 1984 में, साल 1989 में, साल 1991 में, साल 1996 में, साल 1998 में, साल 1999 में सांसद प्रत्याशी बनाया. इनमें से शुरू के तीन बार को छोड़ कर बाद के चारों चुनाव हरीश रावत हारे, लेकिन टिकट मिलता रहा.

साल 2000 में उत्तराखंड का गठन हुआ और हरीश रावत नए प्रदेश उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने. इसके बाद साल 2002 में कांग्रेस ने हरीश रावत को राज्यसभा भी भेजा. साल 2004 में हरीश रावत ने अपनी धर्मपत्नी रेणुका रावत को अल्मोड़ा से सांसद प्रत्याशी बनाया लेकिन वो हार गईं. इसके बाद हरीश रावत ने 2012 में अपने पुत्र आनंद रावत को युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया.

अल्मोड़ा सीट आरक्षित हुई तो हरीश रावत ने 2009 में हरिद्वार से सांसद का चुनाव लड़ा और जीत कर केंद्र में मंत्री बने. इसके बाद 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और फिर उपचुनाव में स्थानीय नेता के बजाय अपनी पत्नी रेणुका रावत को हरिद्वार से सांसद प्रत्याशी बनाया और फिर से वह बुरी तरह हार गईं. साल 2017 में हरीश रावत ने अकेले दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और हार गए.

साल 2019 में हरीश रावत नैनीताल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बने और फिर हार गए. इससे बाद साल 2022 में हरीश रावत ने अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को हैरतअंगेज तरीके से कांग्रेस का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया था. तब यह मामला बेहद चर्चाओं में रहा था. लोगों ने कहा कि जिस व्यक्ति ने पार्टी की सदस्यता की पर्ची भी नहीं भरी उसे उपाध्यक्ष बना दिया.

इससे पहले हरीश रावत 2019 में ही अपनी पुत्री अनुपमा रावत को महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री बना चुके थे. बाद में अनुपमा रावत को साल 2022 में हरिद्वार ग्रामीण से विधायक का टिकट दिला दिया. 2022 में हरीश रावत खुद लालकुआं से लड़े और हारे. अब लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी पर दबाव बनाकर उन्होंने अपने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है.

यही नहीं हरीश रावत ने अपने साले पूरन सिंह माहरा को साल 1980, 1985, 1989, 1991 और 2002 में रानीखेत से पांच बार विधायक प्रत्याशी बनाया जो केवल एक बार जीते और बाकी सब चुनाव हारे. लेकिन टिकट पर उनका कब्जा हरीश रावत के गॉड फादर होने के चलते बरकरार रहा.

इसके बाद साल 2007, 2012, 2017 और 2022 चार बार हरीश रावत के दूसरे साले करन माहरा को रानीखेत से विधायक प्रत्याशी बनाया गया. 2017 की जीत के बाद कारण माहरा को कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर उप नेता प्रतिपक्ष बनाया. साल 2022 में चुनाव हारने के बावजूद भी करण माहरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

इसके अलावा कांग्रेस में इंदिरा हृदयेश के पुत्र सुमित हृदयेश, शूरवीर सजवाण की पत्नी ने पंचायत चुनाव लड़ा पुत्रवधू को ब्लॉक प्रमुख बनाया. वहीं इसके अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह की राजनीति उनकी कई पीढ़ियों से चली आ रही है.

प्रीतम सिंह के पिता उसके बाद प्रीतम सिंह और फिर उनके भाई और परिवार के लोगों ने भी चुनाव लड़े. इसके अलावा यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत सहित कांग्रेस के तमाम ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में लॉन्च किया.

बीजेपी में भी परिवारवाद की लंबी लिस्ट: बीजेपी की अगर बात करें तो दूसरी पीढ़ी को सेट करने का काम भाजपा के नेताओं ने भी खूब किया है. इसमें हरीश रावत जैसा कोई बड़ा उदाहरण तो नहीं है, लेकिन भाजपा में कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में उतारा है.

इनमें से विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा, स्वर्गीय भाजपा नेता प्रकाश पंत की पत्नी चंद्र पंत, भाजपा विधायक सुरेंद्र जीना के भाई महेश जीना, पूर्व सांसद मानवेंद्र शाह की पुत्रवधू माला राज्य लक्ष्मी, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की बेटी नेहा जोशी, हरबंस कपूर की पत्नी सविता कपूर, बंशीधर भगत के पुत्र विकास भगत, चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास हैं.

परिवारवाद के विषय पर भाजपा और कांग्रेस के नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं, लेकिन दोनों ही दलों में एक जैसी स्थिति है. इस विषय पर भाजपा नेता जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि राजनीति में ऐसे लोग जो अपनी दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लोगों को सेट करने में लगे रहते हैं, ऐसे में कार्यकर्ता लगातार उस दल से छिटकना शुरू कर देता है.

उन्होंने कांग्रेस के तमाम परिवारवाद के उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तराखंड में कांग्रेस की स्थिति वही है, जिस तरह से केंद्र में कांग्रेस एक परिवार की ही पार्टी बनकर रह गई है. वहीं कांग्रेस की तरफ से कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को पहले अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए, उसके बाद कांग्रेस पर आरोप लगाने चाहिए.

पढ़ें---

उत्तराखंड की राजनीति परिवारवादी के सूरमा

देहरादून: राजनीति में परिवारवाद देश की पुरानी समस्याओं में से एक है. उत्तराखंड की राजनीति में फैलते परिवारवाद पर अगर नजर डालें तो इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कोई भी पीछे नहीं है. उत्तराखंड की राजनीति में बढ़ते परिवारवाद की सबसे बड़ी पराकाष्ठा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत हैं.

हरीश रावत ने अपने परिवार के अधिकतम लोगों के लिए राजनीतिक लॉन्च पैड तैयार किया. हरीश रावत को कांग्रेस पार्टी ने अल्मोड़ा से 1980 में पहली बार सांसद प्रत्याशी बनाया. फिर साल 1984 में, साल 1989 में, साल 1991 में, साल 1996 में, साल 1998 में, साल 1999 में सांसद प्रत्याशी बनाया. इनमें से शुरू के तीन बार को छोड़ कर बाद के चारों चुनाव हरीश रावत हारे, लेकिन टिकट मिलता रहा.

साल 2000 में उत्तराखंड का गठन हुआ और हरीश रावत नए प्रदेश उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने. इसके बाद साल 2002 में कांग्रेस ने हरीश रावत को राज्यसभा भी भेजा. साल 2004 में हरीश रावत ने अपनी धर्मपत्नी रेणुका रावत को अल्मोड़ा से सांसद प्रत्याशी बनाया लेकिन वो हार गईं. इसके बाद हरीश रावत ने 2012 में अपने पुत्र आनंद रावत को युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया.

अल्मोड़ा सीट आरक्षित हुई तो हरीश रावत ने 2009 में हरिद्वार से सांसद का चुनाव लड़ा और जीत कर केंद्र में मंत्री बने. इसके बाद 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और फिर उपचुनाव में स्थानीय नेता के बजाय अपनी पत्नी रेणुका रावत को हरिद्वार से सांसद प्रत्याशी बनाया और फिर से वह बुरी तरह हार गईं. साल 2017 में हरीश रावत ने अकेले दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और हार गए.

साल 2019 में हरीश रावत नैनीताल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बने और फिर हार गए. इससे बाद साल 2022 में हरीश रावत ने अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को हैरतअंगेज तरीके से कांग्रेस का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया था. तब यह मामला बेहद चर्चाओं में रहा था. लोगों ने कहा कि जिस व्यक्ति ने पार्टी की सदस्यता की पर्ची भी नहीं भरी उसे उपाध्यक्ष बना दिया.

इससे पहले हरीश रावत 2019 में ही अपनी पुत्री अनुपमा रावत को महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री बना चुके थे. बाद में अनुपमा रावत को साल 2022 में हरिद्वार ग्रामीण से विधायक का टिकट दिला दिया. 2022 में हरीश रावत खुद लालकुआं से लड़े और हारे. अब लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी पर दबाव बनाकर उन्होंने अपने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है.

यही नहीं हरीश रावत ने अपने साले पूरन सिंह माहरा को साल 1980, 1985, 1989, 1991 और 2002 में रानीखेत से पांच बार विधायक प्रत्याशी बनाया जो केवल एक बार जीते और बाकी सब चुनाव हारे. लेकिन टिकट पर उनका कब्जा हरीश रावत के गॉड फादर होने के चलते बरकरार रहा.

इसके बाद साल 2007, 2012, 2017 और 2022 चार बार हरीश रावत के दूसरे साले करन माहरा को रानीखेत से विधायक प्रत्याशी बनाया गया. 2017 की जीत के बाद कारण माहरा को कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर उप नेता प्रतिपक्ष बनाया. साल 2022 में चुनाव हारने के बावजूद भी करण माहरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

इसके अलावा कांग्रेस में इंदिरा हृदयेश के पुत्र सुमित हृदयेश, शूरवीर सजवाण की पत्नी ने पंचायत चुनाव लड़ा पुत्रवधू को ब्लॉक प्रमुख बनाया. वहीं इसके अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह की राजनीति उनकी कई पीढ़ियों से चली आ रही है.

प्रीतम सिंह के पिता उसके बाद प्रीतम सिंह और फिर उनके भाई और परिवार के लोगों ने भी चुनाव लड़े. इसके अलावा यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत सहित कांग्रेस के तमाम ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में लॉन्च किया.

बीजेपी में भी परिवारवाद की लंबी लिस्ट: बीजेपी की अगर बात करें तो दूसरी पीढ़ी को सेट करने का काम भाजपा के नेताओं ने भी खूब किया है. इसमें हरीश रावत जैसा कोई बड़ा उदाहरण तो नहीं है, लेकिन भाजपा में कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में उतारा है.

इनमें से विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा, स्वर्गीय भाजपा नेता प्रकाश पंत की पत्नी चंद्र पंत, भाजपा विधायक सुरेंद्र जीना के भाई महेश जीना, पूर्व सांसद मानवेंद्र शाह की पुत्रवधू माला राज्य लक्ष्मी, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की बेटी नेहा जोशी, हरबंस कपूर की पत्नी सविता कपूर, बंशीधर भगत के पुत्र विकास भगत, चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास हैं.

परिवारवाद के विषय पर भाजपा और कांग्रेस के नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं, लेकिन दोनों ही दलों में एक जैसी स्थिति है. इस विषय पर भाजपा नेता जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि राजनीति में ऐसे लोग जो अपनी दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लोगों को सेट करने में लगे रहते हैं, ऐसे में कार्यकर्ता लगातार उस दल से छिटकना शुरू कर देता है.

उन्होंने कांग्रेस के तमाम परिवारवाद के उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तराखंड में कांग्रेस की स्थिति वही है, जिस तरह से केंद्र में कांग्रेस एक परिवार की ही पार्टी बनकर रह गई है. वहीं कांग्रेस की तरफ से कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को पहले अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए, उसके बाद कांग्रेस पर आरोप लगाने चाहिए.

पढ़ें---

Last Updated : Mar 29, 2024, 1:30 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.