लखनऊ : 'अबकी बार चार सौ पार' के नारे के साथ लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के सामने यह लक्ष्य बहुत बड़ी चुनौती भी है. खासतौर पर पांच साल तक सरकार में मंत्री रहे नेताओं पर विशेष दायित्व भी है. पार्टी की अपेक्षा होती है कि सरकार में मंत्री रहे नेता न सिर्फ अपनी सीट जीतें, बल्कि अपने प्रभाव से आसपास की सीटों पर भी पार्टी को बढ़त दिलाएं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री को छोड़कर उत्तर प्रदेश से नौ नेताओं को मंत्री बनाया गया था. इनमें से कुछ मोदी-1 में भी मंत्री थे. ऐसे में सरकार का लक्ष्य पूरा करने में इन नेताओं के प्रदेश में ज्यादा मेहनत करनी होगी. यही नहीं इनकी जीत-हार ऐसे नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगी. 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ था, जबकि आगामी चुनावों में सपा और कांग्रेस गठबंधन कर लड़ रहे हैं. ऐसी स्थिति में किस सीट पर किस तरह का समीकरण बनेगा और क्या चुनौती होगी, यह जानना जरूरी है. आइए जानते हैं कि केंद्र सरकार में मंत्री कौन-कौन से नेता किस सीट से चुनाव लड़ते हैं? इस सीट का राजनीतिक इतिहास क्या है और आगामी चुनाव में उन्हें किस पार्टी से चुनौती मिलने वाली है.
राजनाथ सिंह : भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ संसदीय सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले दोनों बार वह भारी मतों से जीतकर संसद पहुंचे थे. यदि पिछले 25 वर्षों की बात करें, तो इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी भी अन्य दल को सफलता हाथ नहीं लगी है. यह सीट भाजपा के गढ़ वाली सीटों में शुमार है. हालांकि इस बार राजनाथ को चुनौती लखनऊ मध्य से सपा विधायक और गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा देने वाले हैं. मेहरोत्रा लोकप्रिय नेता हैं, इसीलिए योगी आदित्यनाथ की प्रचंड लहर में भी वह अपना चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे. राजनाथ पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. इसलिए उनकी भूमिका आसपास के जिलों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने की है. इनमें मिश्रिख, सीतापुर, बाराबंकी, उन्नाव आदि की सीटें प्रमुख हैं. इस सीट पर 1991 से भाजपा का कब्जा रहा है. राजनाथ सिंह से पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यहां से सांसद थे. उन्होंने लखनऊ संसदीय सीट से आठ बार चुनाव लड़ा था. पहली बार 1955 में उप चुनाव लड़ा और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. 1957 और 1962 के चुनावों में वह दूसरे स्थान पर रहे. तीन बार की हार के बाद शुरू हुआ अटल जी की जीत का सिलसिला 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी जारी रहा. 2009 में पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन लोकसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद से राजनाथ सिंह का इस सीट पर कब्जा बरकरार है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से पूनम सिन्हा (अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी) और कांग्रेस से आचार्य प्रमोद कृष्णम राजनाथ सिंह के खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे.
स्मृति ईरानी : वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अमेठी संसदीय सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह पहली बार कांग्रेस पार्टी की इस परंपरागत सीट से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं. इस चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. 2019 में उन्होंने दोबारा किस्मत आजमाई और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनके गढ़ में ही पटखनी दे दी. माना जा रहा है कि यदि इस बार राहुल गांधी स्मृति ईरानी के खिलाफ मैदान में उतरे तो उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. यह कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और आज तक इस सीट से भाजपा को दो बार ही जीत का स्वाद चखने को मिला है. स्मृति ईरानी को इस कार्यकाल में संजय गांधी अस्पताल बंद कराने को लेकर हुए विवाद में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा. वहीं कुछ अन्य स्थानीय कारणों से भी लोगों में नाराजगी की बात कही जा रही है. स्भाविक है कि इस बार स्मृति ईरानी की साख दांव पर है. वह 2014 की प्रचंड मोदी लहर में भी यहां से चुनाव हार चुकी हैं. यदि इससे पहले के चुनावों की बात करें तो 1991 के उप चुनाव में अमेठी संसदीय सीट से कैप्टन सतीश शर्मा जीते थे. वर्ष 1996 में कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा ही जीतकर संसद पहुंचे थे. वर्ष 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की और संजय सिंह को चुना गया. इसके बाद 1999 में सोनिया गांधी, 2004, 2009 और 2014 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही इस सीट पर जीतते रहे. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ इस बार कांग्रेस किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी, यह अब तक साफ नहीं हुआ है. कांग्रेस जिले भी अपना उम्मीदवार बनाएगी, स्मृति ईरानी का वही मुख्य प्रतिद्वंद्वी होगा.
महेंद्र नाथ पांडेय : भाजपा का ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली संसदीय सीट से तीसरी बार मैदान में हैं. इससे पहले 2014 और 2019 में वह इसी सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे. इस चुनाव में पांडेय को लगातार दस साल तक सत्ता में रहने के कारण सत्ता विरोधी लहर का सामना भी करना पड़ सकता है. वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं इसलिए भी उन पर अधिक दायित्व है. यदि 2019 के चुनाव की बात करें, तो उन्हें 5,10,733 वोट मिले थे और उनके निकटतम प्रति द्वंदी संजय सिंह चौहान को 4,96,774 मत मिले थे. यानी पिछले चुनाव में उनती जीत का अंतर भी मामूली ही था. ऐसे में इस चुनाव में उन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा. महेंद्र नाथ पांडेय के खिलाफ इस चुनाव में सपा और कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी पूर्व मंत्री वीरेंद्र नाथ सिंह होंगे. उन्हें सपा का कद्दावर नेता माना जाता है और क्षेत्र में अच्छी पकड़ भी. इसलिए मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है. 1991 में इस सीट से भाजपा प्रत्याशी आनंद रत्न मौर्य पहली बार चुनाव जीते थे. 1996 और 1998 में भी उन्हें जीत हासिल हुई और उन्होंने इस सीट पर हैट्रिक लगाई थी. 1999 में समाजवादी पार्टी और 2004 में बहुजन समाज पार्टी का इस सीट पर कब्जा रहा. 2009 में एक बार भी सपा ने इस सीट को जीत लिया, लेकिन इसके बाद एक दशक से यहां भाजपा का परचम लहरा रहा है. केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय के पास इस वक्त भारी उद्योग का जिम्मा है. इससे पहले वह कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री थे. पांडेय उत्तर प्रदेश भाजपा इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं पार्टी के ब्राह्मण नेताओं में उनका शुमार है.
साध्वी निरंजन ज्योति : केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति फतेहपुर संसदीय सीट से तीसरी बार मैदान में हैं. इससे पहले 2014 और 2019 में भी इन्होंने इसी सीट पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को पराजित किया था. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी उन्हें मंत्री बनाया गया है. दोनों ही चुनावों में यहां बसपा के उम्मीदवारों से इनका मुकाबला था. इस सीट पर बसपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है. यहां पिछड़ी जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. निरंजन ज्योति अपने दोनों पिछले चुनाव भारी मतों से जीती थीं. इसलिए सपा-कांग्रेस गठबंध इस सीट के लिए कोई मजबूत प्रत्याशी तलाश रहा है. हालांकि निरंजन ज्योति तेजतर्रार और लोकप्रिय नेता मानी जाती हैं. फिर भी उनके सामने आसपास की सीटें जिताने की चुनौती होगी. इस चुनाव में साध्वी निरंजन ज्योति के खिलाफ सपा-कांग्रेस और बसपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा अभी नहीं की है जो भी अतीत के आंकड़ों को देखते हुए ऐसा लगता है कि आगामी चुनावों में यहां रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा. वर्ष 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह इस सीट से जनता दल के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे थे. वर्ष 1996 में बसपा के विशंभर प्रसाद निषाद, वर्ष 1998 और 1999 में भाजपा के अशोक कुमार पटेल ने लोकसभा चुनाव जीता था. वहीं वर्ष 2004 में बसपा के महेंद्र प्रसाद निषाद और वर्ष 2009 में सपा के राकेश सचान ने लोकसभा चुनाव जीता था.
डॉ. संजीव बालियान : पश्चिमी उत्तर प्रदेश से कद्दावर भाजपा नेताओं में शुमार डॉ. संजीव बालियान मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से तीसरी बार मैदान में हैं. इससे पहले मोदी लहर में उन्होंने इसी सीट से 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव जीता था. वर्ष 2019 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल से अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को नजदीकी मुकाबले में पराजित किया था. वर्ष 2014 में जब वह पहली बार जीतकर संसद पहुंचे तो उन्हें मोदी सरकार में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री का पद दिया गया था, जबकि मोदी-2 सरकार में उन्हें पशुपालन, मत्स्य एवं डेयरी राज्य मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया. पिछले चुनाव में सिर्फ साढ़े छह हजार सीटों से चुनाव जीतने वाले संजीव बालियान के सामने संतोष की बात यह है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल उनकी प्रतिद्वंदी न होकर सहयोगी रहेगी. ऐसे में उनकी राज थोड़ी आसान जरूर होगी. जाटलैंड की इस सीट पर डॉ. संजीव बालियान को सपा-कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी हरेंद्र सिंह मलिक चुनौती देंगे. वहीं बसपा ने उनके खिलाफ दारा सिंह प्रजापति को अपना प्रत्याशी बनाया है. देखना होगा कि रालोद से गठबंधन के बाद संजीव बालियान की राह कितनी आसान होती है और आसपास की सीटों में पार्टी की कितनी कामयाबी मिलती है. वर्ष 1991, वर्ष 1996 और वर्ष 1998 में भी यह सीट भाजपा के पास ही थी. वर्ष 1999 में कांग्रेस, वर्ष 2004 में सपा और वर्ष 2009 में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने इस सीट पर जीत हासिल की थी.
अजय मिश्र टेनी : लखीमपुर जिले की खीरी संसदीय सीट से तीसरी बार चुनावी मैदान में उतर अजय मिश्र टेनी के सामने इस बार कई चुनौतियां भी होंगी. वर्ष 2014 और वर्ष 2019 की मोदी लहर में उन्होंने बसपा के अरविंद गिरि और सपा की डॉ. पूर्वी वर्मा को पराजित किया था. आगामी चुनाव में उनके खिलाफ सपा और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा मैदान में हैं. अजय मिश्रा के पिछले कार्यकाल में तीन अक्टूबर 2021 को विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के मामले में इनके पुत्र आशीष मिश्रा का नाम आने के बाद इनके खिलाफ देशव्यापी माहौल बना और उन्हें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के पद से हटाने की मांग भी हुई. हालांकि भाजपा मजबूती के साथ टेनी के साथ खड़ी रही. इस चुनाव में यह मुद्दा दोबारा गर्मा सकता है. हालांकि 2014 और 2019 के चुनावों में अजय मिश्र को व्यापक जन समर्थन मिला था और वह लाखों वोटों से चुनाव जीतकर आए थे, पर आगामी चुनाव में यह देखना होगा कि किसानों का मुद्दा उन्हें नुकसान पहुंचा पाता है या नहीं. मंत्री होने के कारण उनसे आपपास की सीटें भी जिताकर लाने की अपेक्षा पार्टी जरूर करती है. यदि बात पिछले चुनावों की करें तो 1991 और 1996 में भी यह सीट भाजपा के गेंदन लाल कनौजिया के पास थी. वर्ष 1998, 1999 और 2004 में सपा के रवि प्रकाश वर्मा इस सीट पर काबिज रहे. वर्ष 2009 में कांग्रेस नेता जफर अली नकवी ने इस सीट से चुनाव जीता था. इस बार यहां का चुनाव बेहद रोचक होने की उम्मीद है.
कौशल किशोर : केंद्र सरकार में आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री कौशल किशोर भी मोहनलालगंज सुरक्षित संसदीय सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले उन्होंने 2014 में बसपा के आरके चौधरी और 2019 में बसपा के ही सीएल वर्मा को पराजित किया था. उनकी पत्नी जय देवी मलिहाबाद सुरक्षित सीट से विधायक हैं. पिछले पांच वर्षों में वह अपने बेटों के लेकर कई बार विवादों में आए. इस कारण कई लोगों को लगता था कि उनका टिकट बदल सकता है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन पर एक बार फिर भरोसा दिलाया है. कौशल किशोर के एक पुत्र का निधन अत्यधिक शराब के सेवन के कारण हुआ था. इसके बाद से वह प्रदेश ही नहीं देश में नशा विरोधी अभियान चलाते हैं. हालांकि उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि आज भी उनके संसदीय क्षेत्र में अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से चलता है. कौशल किशोर अपनी जीत की हैट्रिक बना पाएंगे या नहीं यह देखने वाली बात होगी. उनके सामने मिश्रिख सुरक्षित सीट को जिताने की भी चुनौती है, क्योंकि यह संसदीय क्षेत्र इनके क्षेत्र से सटा है और यहां कौशल किशोर का अच्छा प्रभाव भी माना जाता है. इस बार उनके सामने सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी आरके चौधरी फिर से मैदान में हैं. अतीत की बात करें तो इस सीट पर वर्ष 1991 और 1996 में भाजपा का ही कब्जा रहा है. इसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004 और 2009 में इस सीट पर लगातार समाजवादी पार्टी की जीत हुई थी.
एसपी सिंह बघेल : पुलिस सेवा से राजनीति में आए सत्यपाल सिंह बघेल (एसपी सिंह बघेल) आगरा सुरक्षित संसदीय सीट से दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले वह वर्ष 2019 में भारी मतों से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे और मोदी सरकार में उन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया. इससे पहले वर्ष 1996 से 2009 तक वह समाजवादी पार्टी में रहे और फिर 2009 से 2014 तक बहुजन समाज पार्टी की राजनीति की. एसपी सिंह बघेल अपने पिछले दोनों चुनाव लाखों वोटों के अंतर से जीतकर आए थे. सत्ता विरोधी लहर की आशंका को यदि छोड़ दें, तो इस सीट पर अभी यह देखना बाकी है कि गठबंधन का उम्मीदवार कौन होगा? इस चुनाव गठबंधन की यह सीट सपा के हिस्से में आई है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब तक एसपी सिंह बघेल के खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है. ऐसे में देखना रोचक होगा कि यहां को कौन प्रमुख प्रत्याशी होंगे और मुकाबला कैसा रहेगा. इस सीट के अतीत की बात करें तो वर्ष 1991, 1996 और 1998 में भी यह सीट भाजपा के भगवान शंकर रावत जीते थे. वहीं 1999 और 2004 में फिल्म अभिनेता राज बब्बर ने सपा के टिकट पर यह सीट जीती थी. वर्ष 2009 और 2014 में इस सीट पर भाजपा के राम शंकर कठेरिया जीतकर संसद पहुंचे थे.
अनुप्रिया पटेल : अपना दल (एस) की अध्यक्ष और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल एनडीए गठबंधन से उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण नेता हैं. वह भी इस सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले वर्ष 2014 और 2019 में उन्होंने बसपा और सपा प्रत्याशियों को पराजित कर बहुत बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीता था. इस चुनाव में सपा गठबंधन से राजेंद्र एस. बिंद को उम्मीदवार बनाया गया है. वह भदोही जिले के मूल निवासी हैं और कारोबार मुंबई में करते हैं. दूसरी ओर अभी तक बसपा ने अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. यदि बसपा से कोई बड़ी चुनौती देने में सक्षम नेता मैदान में नहीं उतरा, तो अनुप्रिया पटेल की राह बहुत मुश्किल नहीं होगी. सपा प्रत्याशी के बाहरी होने के कारण उन्हें इसका लाभ मिल सकता है. दूसरी ओर कर्मी बहुल इस सीट पर अनुप्रिया पटेल की अच्छी पकड़ मानी जाती है. यदि वह इस बार भी चुनाव जीतीं और भाजपा सरकार बनी, तो वह कैबिनेट का हिस्सा हो सकती हैं. हालांकि कि भाजपा चाहेगी कि वह निकटवर्ती सीटों पर अफना प्रभाव दिखाकर जीत जरूर दिलाएं. यदि पिछले चुनावों की बात करें तो 1991 में भाजपा के वीरेंद्र सिंह इस सीट से चुनाव जीते थे. वहीं 1996 में सपा के टिकट पर फूलन देवी को जीत हासिल हुई थी. वर्ष 1998 में एक बार फिर भाजपा की यहां से जीत हुई, जबकि 1999 में सपा से फूलन देवी ने एक बार फिर चुनाव जीता था. वर्ष 2004 में बसपा के नरेंद्र कुशवाहा तो 2009 में सपा के बाल कुमार पटेल को यहां जीत हासिल हुई थी.
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