चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव इस बार ना सिर्फ हरियाणा कांग्रेस के लिए बल्कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए भी अहम होने वाला है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को सभी दस सीटों पर पटखनी दी थी. इस बार कांग्रेस बीजेपी को उस इतिहास को दोहराने से रोकने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरी है. इस वजह से पार्टी ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी सात उम्मीदवारों को लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरकर हुड्डा खेमे का मनोबल बढ़ाने का भी काम किया है.
हुड्डा के आगे एसआरके गुट हुआ बेदम! एसआरके गुट (कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी) के नेताओं को दरकिनार किया है. जिसकी वजह से कुछ नेताओं का दर्द भी मीडिया में सामने आ रहा है. हालांकि वे खुलकर पार्टी की खिलाफत तो नही कर रहे हैं, लेकिन इसका कुछ सीटों पर कांग्रेस की परफॉर्मेंस पर असर पड़ सकता है. वहीं लोकसभा चुनाव के इस बार विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में पार्टी के साथ-साथ हुड्डा खेमे के लिए ये चुनाव विधानसभा चुनाव से पहले लिटमस टेस्ट हो सकता है. यानि इन चुनावों की परफॉर्मेंस का असर विधानसभा चुनाव में हुड्डा की भूमिका पर भी देखने को मिल सकता है.
कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती: साल 2019 में बेशक लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी दस सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस ने 40 सीटों पर रोक दिया था. वहीं कांग्रेस ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जीतने वाले ज्यादातर उम्मीदवार हुड्डा खेमे के थे. कहीं ना कहीं पार्टी को भी इस बात का एहसास है. तभी पार्टी हरियाणा की सत्ता में वापसी के लिए हुड्डा को मजबूत कर रही है. इसकी वजह से इस बार लोकसभा चुनाव में उनके खेमे के नेताओं को मैदान में उतारा गया है.
क्या लोकसभा चुनाव में होगा हुड्डा लिटमस टेस्ट? क्या ये लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ साथ पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए लिटमस टेस्ट साबित होगा? क्योंकि इस चुनाव में हुड्डा के करीबी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा गया है, इसलिए उनकी साख भी दांव पर है. इस मामले में राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "भूपेंद्र सिंह हुड्डा आज की तारीख में किसी भी पार्टी में हरियाणा में सबसे बड़ी कद के नेता माने जाते हैं. विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव उनके लिए ग्राउंड तैयार करेगा."
मुद्दों का असर होता है हावी: उन्होंने कहा "तकनीकी तौर पर ये माना जाता है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न अलग-अलग होता है, लेकिन ये तब होता है. जब कोई राष्ट्रीय स्तर पर वेव चल रही हो. 2019 के लोकसभा चुनाव में बालाकोट एयर स्ट्राइक का असर देखने को मिला था. उसके चलते सभी 10 सीटें बीजेपी को मिली थी. बेशक 2019 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग थे, लेकिन इसका असर उसमें भी देखने को मिला."
विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा लोकसभा के नतीजों का असर? धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "लोकसभा चुनाव के तीन-चार महीने के बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होंगे तो निश्चित तौर पर इसका असर उसे पर पड़ेगा. ऐसे में ये चुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए भी अहम है. जैसा कि माना जाता है कांग्रेस में कोई और सीएम पद का हुड्डा के मुकाबले दावेदार नहीं है. ऐसे में इसका उनकी संभावनाओं पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. वो भी तब जब लोकसभा चुनाव में जो उम्मीदवार उतारे गए हैं उनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा की इच्छा का ध्यान रखा गया है. वो कहते हैं कि इससे हाई कमान ने भी और संदेश साफ दे दिया है कि हर हो या जीत वो हुड्डा के खाते में जाएगी".
क्या कांग्रेस को मिलेगी 'संजीवनी'? हरियाणा में नाराज नेताओं की वजह से अगर लोकसभा चुनाव के नतीजे पर कोई असर पड़ता है, तो क्या उसका अलग से आकलन होगा? इसको लेकर धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जितना उम्मीद कर रही है उसे तरह से परफॉर्म नहीं करती है, तो उसका विधानसभा चुनाव के समय जो टिकट वितरण होगा. उस वक्त जरूर असर होगा. वे कहते हैं कि लोकसभा चुनाव का जो आकलन होगा और परफॉर्मेंस उस स्तर की नहीं होगी, तो निश्चित तौर पर ही वे बातें भी हुड्डा साहब के खाते में जायेगी. टिकट वितरण में विधानसभा चुनाव में उसका असल पड़ेगा."
कांग्रेस का लिटमस टेस्ट: उन्होंने कहा "जब टिकट वितरण होता है तो उसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं की इच्छा का भी ख्याल रखा जाता है, लेकिन पार्टी के अपने सर्वे भी अहमियत रखते हैं. इस लोकसभा चुनाव में जो भी हार जीत होगी, वो विधानसभा चुनाव के लिए ग्राउंड बनेगी. इसलिए लोकसभा चुनाव ना सिर्फ कांग्रेस का लिटमस टेस्ट है, बल्कि हुड्डा का भी लिटमस टेस्ट है. इसी के आधार पर ही आने वाले विधानसभा की जिम्मेदारियां नेताओं की तय की जाएगी."
इधर इसी मामले को लेकर राजनीतिक मामलों के जान का प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि कांग्रेस हाईकमान ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह का फ्री हैंड नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दिया है. उससे ये साफ जाहिर हो जाता है कि पार्टी को उन पर पूरा भरोसा है. वे कहते हैं कि इस स्थिति में हरियाणा के लोकसभा चुनाव के नतीजे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए पार्टी से ज्यादा अहमियत रखेंगे.
'भूपेंद्र हुड्डा का बढ़ेगा कद': जिस तरह से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी नेताओं को लोकसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा बनाया गया है, वो ये बताने के लिए काफी है कि हरियाणा में अभी कांग्रेस के पास उनके कद का कोई नेता नहीं है. इसलिए इस लोकसभा चुनाव के नतीजे आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी नेताओं की भूमिका को तय करेंगे. इसमें कोई शक नहीं है कि ये चुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा का लिटमस टेस्ट है, और अगर वे इस टेस्ट में पार्टी की उम्मीदों के मुताबिक पास हो जाते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस जीतती है, तो फिर उसका ताज भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सिर ही सजेगा.