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अजमेर में गुटबाजी डुबो रही है कांग्रेस की लुटिया, नेताओं के बीच की अदावत ने पार्टी को बना दिया 'कमजोर' - Ajmer Lok Sabha Seat - AJMER LOK SABHA SEAT

लोकसभा चुनाव के नतीजों में अजमेर सीट पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है. नगर निगम चुनाव से शुरू हुआ बीजेपी की जीत का सिलसिला बदस्तूर जारी है. कांग्रेस की हार की मुख्य कारण नेताओं की आपसी गुटबाजी को माना जा रहा है, जानिए क्यों.

AJMER LOK SABHA RESULT
कांग्रेस में गुटबाजी (Etv Bharat ajmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 5, 2024, 6:29 PM IST

अजमेर. लोकसभा चुनाव के नतीजों से ने साबित कर दिया है कि अजमेर सीट भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है. यहां पर लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतों से भाजपा की जीत हुई है. भाजपा की जीत का रथ नगर निगम चुनाव से शुरू हुआ, जो नगर निगम और उसके बाद विधानसभा चुनाव में बरकरार रहते हुए लोकसभा चुनाव तक पहुंच गया है. वहीं, कांग्रेस ने अपनी हार से सबक नहीं लिया. स्थानीय कांग्रेस के नेताओं में आपस में ही शह-मात का खेल नगर निगम चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक चलता रहा. गुटबाजी के इस खेल में कांग्रेस की हार ही नहीं हुई, बल्कि अजमेर में कांग्रेस कमजोर होती चली गई.

अजमेर लोकसभा चुनाव में दूसरी बार भाजपा रिकॉर्ड मतों से जीती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 4 लाख 12 हजार मतों से जीती थी. इस बार भाजपा ने 3.29 लाख मतों से अजमेर लोकसभा चुनाव बीजेपी प्रत्याशी ने जीता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आठ में 5 सीट मिली थी. इनमें 2 कांग्रेस और एक निर्दलीय सीट थी, जबकि 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ सीट में से कांग्रेस को मात्र 1 सीट ही हाथ लगी. वो भी तब जब भाजपा का युवा नेता विकास चौधरी को किशनगढ़ से भाजपा ने टिकट नहीं दिया और कांग्रेस ने विकास चौधरी को टिकट दे दिया और वह जीत गए. नगर निगम चुनाव में 80 में से केवल 18 सीट कांग्रेस को मिली थी, जबकि 48 सीट भाजपा, 1 आरएलपी और 13 निर्दलीय पार्षद जीते.

इसे भी पढ़ें-अजमेर में भागीरथ चौधरी ने फिर मारी बाजी, 3 लाख से ज्यादा वोटों से लहराया जीत का परचम, बोले-जनता के भरोसे पर उतरुंगा खरा - Lok Sabha Eletion Counting 2024

कांग्रेस में गुटबाजी नई नही : राजनीति के जानकारों की मानें तो अजमेर में कांग्रेस की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण यहां पार्टी के नेताओं के बीच आपसी अदावत और गुटबाजी है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 25 वर्षो से अजमेर शहर की दोनों सीट पर भाजपा का कब्जा है. कांग्रेस के लिए दोनों सीट जीतना सपना बन गया है. पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की अदावत किसी से छुपी हुई नहीं है. इसका असर अजमेर में भी देखने को मिलता है. पायलट के अजमेर लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले गहलोत गुट का वर्चस्व था. पायलट के अजमेर आने के बाद गहलोत गुट हाशिए पर आ गया, जबकि पायलट का जिले में नया गुट बन गया.

कमजोर संगठन : जानकारों का कहना है कि वर्तमान में अजमेर में शहर और देहात कांग्रेस के निवर्तमान अध्यक्ष और कार्यकारिणी है. 4 साल पहले कार्यकाल पूरा होने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अजमेर शहर और देहात कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने और नई कार्यकारिणी बनवाने में कोई रुचि नही दिखाई. शहर और देहात कांग्रेस कमेटी में अध्यक्ष और कार्यकारणी सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते बनी थी. इनमें पायलट के ही लोग शामिल हैं. कार्यकाल पूरा होने के बाद निवर्तमान अध्यक्ष और कार्यकारिणी असमंजस में ही रहती है कि कभी भी उन्हें बदला जा सकता है. ऐसे में संगठन को मजबूत करने के लिए जो प्रभावी कदम उठाने चाहिए, वह नहीं उठाए गए, जिस कारण अजमेर में संगठन कमजोर और पिछड़ता गया.

अजमेर. लोकसभा चुनाव के नतीजों से ने साबित कर दिया है कि अजमेर सीट भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है. यहां पर लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतों से भाजपा की जीत हुई है. भाजपा की जीत का रथ नगर निगम चुनाव से शुरू हुआ, जो नगर निगम और उसके बाद विधानसभा चुनाव में बरकरार रहते हुए लोकसभा चुनाव तक पहुंच गया है. वहीं, कांग्रेस ने अपनी हार से सबक नहीं लिया. स्थानीय कांग्रेस के नेताओं में आपस में ही शह-मात का खेल नगर निगम चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक चलता रहा. गुटबाजी के इस खेल में कांग्रेस की हार ही नहीं हुई, बल्कि अजमेर में कांग्रेस कमजोर होती चली गई.

अजमेर लोकसभा चुनाव में दूसरी बार भाजपा रिकॉर्ड मतों से जीती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 4 लाख 12 हजार मतों से जीती थी. इस बार भाजपा ने 3.29 लाख मतों से अजमेर लोकसभा चुनाव बीजेपी प्रत्याशी ने जीता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आठ में 5 सीट मिली थी. इनमें 2 कांग्रेस और एक निर्दलीय सीट थी, जबकि 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ सीट में से कांग्रेस को मात्र 1 सीट ही हाथ लगी. वो भी तब जब भाजपा का युवा नेता विकास चौधरी को किशनगढ़ से भाजपा ने टिकट नहीं दिया और कांग्रेस ने विकास चौधरी को टिकट दे दिया और वह जीत गए. नगर निगम चुनाव में 80 में से केवल 18 सीट कांग्रेस को मिली थी, जबकि 48 सीट भाजपा, 1 आरएलपी और 13 निर्दलीय पार्षद जीते.

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कांग्रेस में गुटबाजी नई नही : राजनीति के जानकारों की मानें तो अजमेर में कांग्रेस की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण यहां पार्टी के नेताओं के बीच आपसी अदावत और गुटबाजी है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 25 वर्षो से अजमेर शहर की दोनों सीट पर भाजपा का कब्जा है. कांग्रेस के लिए दोनों सीट जीतना सपना बन गया है. पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की अदावत किसी से छुपी हुई नहीं है. इसका असर अजमेर में भी देखने को मिलता है. पायलट के अजमेर लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले गहलोत गुट का वर्चस्व था. पायलट के अजमेर आने के बाद गहलोत गुट हाशिए पर आ गया, जबकि पायलट का जिले में नया गुट बन गया.

कमजोर संगठन : जानकारों का कहना है कि वर्तमान में अजमेर में शहर और देहात कांग्रेस के निवर्तमान अध्यक्ष और कार्यकारिणी है. 4 साल पहले कार्यकाल पूरा होने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अजमेर शहर और देहात कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने और नई कार्यकारिणी बनवाने में कोई रुचि नही दिखाई. शहर और देहात कांग्रेस कमेटी में अध्यक्ष और कार्यकारणी सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते बनी थी. इनमें पायलट के ही लोग शामिल हैं. कार्यकाल पूरा होने के बाद निवर्तमान अध्यक्ष और कार्यकारिणी असमंजस में ही रहती है कि कभी भी उन्हें बदला जा सकता है. ऐसे में संगठन को मजबूत करने के लिए जो प्रभावी कदम उठाने चाहिए, वह नहीं उठाए गए, जिस कारण अजमेर में संगठन कमजोर और पिछड़ता गया.

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