चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से हरियाणा बीजेपी में बैठकों और मंथन का दौर जारी है. कई ऐसे मुद्दे रहे जिनकी वजह से बीजेपी को डेंट लगा है. शायद इनमें से एक चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना भी है. लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने के साथ-साथ कैबिनेट में बदलाव किया गया. पूर्व सीएम मनोहर लाल की जगह प्रदेश की बागडोर नायब सैनी को दी गई. इसके साथ ही मंत्रिमंडल में भी फेरबदल किया गया.
क्या सीएम चेहरा बदलने से हुआ बीजपी को नुकसान? चुनाव के दौरान दो चेहरे ही प्रदेश में सक्रिय रहे. एक सीएम नायब सैनी तो दूसरे पूर्व सीएम मनोहर लाल. ऐसे में चुनाव जीतने की बड़ी जिम्मेदारी भी दोनों के कंधे पर थी, लेकिन नतीजे उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. ऐसे में सवाल बनता है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा में सीएम के चेहरे को बदलने से बीजेपी को नुकसान हुआ? या फिर चेहरा बदलकर 5 सीटें जीतने में पार्टी को कामयाबी मिली? क्या पार्टी के इस बदलाव का लोकसभा के चुनाव के नतीजों पर असर पड़ा?
जातीय समीकरण नहीं आया काम? इन सवालों को लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "बीजेपी को इस बदलाव का नुकसान हुआ है. बदलाव के बावजूद जनता की मुद्दों की नाराजगी बनी रही. सरकार से नाराजगी किसी वर्ग विशेष में नहीं थी, बल्कि हर वर्ग में रही. सरकार बदलकर जो जातीय संतुलन बनाने की जो कोशिश की गई थी, वो भी उलटी पड़ी. इससे जाट और दलित सरकार से किनारे हो गए. रही सही कसर किसान और अग्निवीर योजना ने पूरी की. उससे भी बीजेपी को नुकसान हुआ."
उम्मीदवार नहीं, मोदी के नाम पर मिला वोट: धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "जिन लोगों इस बार भी मतदान बीजेपी को किया है, उन्होंने सीएम और पूर्व सीएम को देखकर वोट नहीं दिया, बल्कि इस बार भी मोदी के नाम पर ही बीजेपी को वोट मिला है. इस बात का पता इससे चलता है कि सीएम नायब सैनी विधानसभा क्षेत्र नारायणगढ़ से बीजेपी को नुकसान देखना पड़ा है. यानि वहां भी कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं. इसके साथ ही करनाल विधानसभा क्षेत्र जहां से पूर्व सीएम मनोहर लाल चुनाव लड़े थे. वहां से भी बीजेपी का वोट काम हुआ है. इसलिए कह सकते हैं कि सरकार में बदलाव का असर नहीं हुआ. लोगों की नाराजगी बरकरार है, और लोग विधानसभा में बदलाव की तरफ देख रहे हैं."
एंटी इनकंबेंसी बड़ा फैक्टर: इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल ने कहा "सरकार में चुनाव से पहले हुए बदलाव की वजह से लोगों की नाराजगी खत्म नहीं हुई, बल्कि कहीं ना कहीं पार्टी के अंदर भी इसकी वजह से नाराजगी ज्यादा हुई. इसका उदाहरण पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हैं. जिन्होंने बदली सरकार में मंत्री बनना पसंद नहीं किया. इसका भी लोगों में गलत संदेश गया. जो नाराजगी लोगों में प्रदेश सरकार के खिलाफ बनी हुई थी. वो बरकरार रही."
उन्होंने कहा कि सरकार का चेहरा बदलने से उसमें कोई फर्क नहीं पड़ा. वहीं विपक्ष ने जो मुद्दे उठाए. सरकार उनको लेकर जनता में अपनी स्थिति स्पष्ट करने में नाकाम रही. यानी सरकार में बदलाव कर जातीय समीकरण बैठने की जो कोशिश की गई थी. वो भी जमीनी स्तर पर कारगर साबित नहीं हुई.