अजमेर. राजस्थान में चुनावी रण सज चुका है. सभी दलों ने चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है. नामांकन की प्रक्रिया लगभग खत्म होने वाली है. अब प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मैदान में उतर चुके हैं. चुनावी रण के बीच हम आपके लिए लेकर आए हैं इतिहास के झरोखे से हर सीट का चुनावी गणित, जिसमें आज हम बात करेंगे अजमेर लोकसभा सीट की. अजमेर सीट के इतिहास की बात करें, तो इस सीट पर 1952 से 1984 तक कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन इसके बाद भाजपा ने अजमेर सीट पर कांग्रेस का दबदबा धीरे-धीरे खत्म कर दिया और इसके बाद इस सीट पर बीजेपी की पकड़ मजबूत होने लगी. सन 1989 से 2019 तक अजमेर सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाने लगा. हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस बीच कांग्रेस ने अजमेर लोकसभा सीट नहीं जीती. आइए जानते हैं अजमेर लोकसभा सीट का राजनीतिक अतीत.
अजमेर लोकसभा सीट पर 1952 से 2019 तक 17 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें एक बार उपचुनाव भी हुआ है. अजमेर सीट पर 18वें लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. बीजेपी ने भागीरथ चौधरी को दोबारा मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने नए चेहरे रामचंद्र चौधरी पर दांव खेला है. भाजपा प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव का अनुभव है, लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भागीरथ चौधरी ने अजमेर सांसद रहते हुए अपने गृह क्षेत्र किशनगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गए है. भागीरथ चौधरी 2003 और 2013 में किशनगढ़ से विधायक रह चुके हैं.
अजमेर सीट से सांसद रहते हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद माना जा रहा था कि भागीरथ चौधरी को पार्टी दोबारा रिपीट नहीं करेगी, लेकिन पार्टी ने उन भरोसा जताया और उन्हें फिर से मौदान में उतारा. भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भी पार्टी का यह डिसीजन हैरान कर देने वाला था. इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र चौधरी भी चार बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन चारों चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. रामचंद्र चौधरी ने दुग्ध सहकारी को ही अपना राजनीति का अखाड़ा बना लिया और इसमें वह कामयाब भी रहे. रामचंद्र चौधरी 30 साल से लगातार जिला दुग्ध उत्पादन समिति के अध्यक्ष हैं. पशुपालकों में उनकी अच्छी पैठ है, लेकिन लोकसभा चुनाव का दायरा बड़ा है, इसलिए उनके लिए चुनौतियां कई हैं.
यह जातियां होंगी निर्णायक : अजमेर लोकसभा सीट जाट बाहुल्य है. यही वजह है कि बीजेपी की ही तरह कांग्रेस ने भी जाट समाज के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. ऐसे में जाट समाज के मतों का विभाजन होना तय है. ऐसे में गुर्जर, सामान्य वर्ग और एससी समाज के मतदाता अब निर्णायक स्थिति में होंगे. रावत समाज को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है. ठीक उसी तरह मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है, लिहाजा गुर्जर, सामान्य वर्ग और एससी के मतदाताओं की भूमिका अब निर्णायक है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों का ही फोकस अब इन वर्ग पर है.
कभी कांग्रेस का था दबदबा : सन 1952 से लेकर 2019 तक अजमेर लोकसभा क्षेत्र में 17 बार चुनाव हो चुके हैं. अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस 10 बार जीत चुकी है. इसमें एक उपचुनाव भी है, जबकि बीजेपी सात बार चुनाव जीती है. 1952 से 1984 तक कांग्रेस 7 बार लगातार इस सीट पर चुनाव जीती. 1989 में कांग्रेस के जीत के रथ को बीजेपी ने रोक दिया था. इसके बाद से ही कांग्रेस की पकड़ सीट पर कमजोर होती गई. 1989 से 2019 तक 10 बार लोकसभा चुनाव हुए. इनमें से कांग्रेस केवल तीन बार ही चुनाव जीत पाई. अजमेर लोकसभा सीट की आठ विधानसभा पर वर्तमान में राजनीतिक हालात भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं हैं. किशनगढ़ सीट कांग्रेस के कब्जे में है, जबकि अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, मसूदा, नसीराबाद, केकड़ी, पुष्कर और दूदू सीट भाजपा के कब्जे में है.
एक बार ही मिला महिला प्रतिनिधित्व : अजमेर लोकसभा सीट के इतिहास को देखें, तो भाजपा ने अजमेर लोकसभा सीट पर कभी भी महिला को उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा, जबकि कांग्रेस ने 1998 में महिला उम्मीदवार के तौर पर प्रभा ठाकुर को टिकट दिया था. प्रभा ठाकुर बीजेपी के उम्मीदवार रासासिंह रावत को हराकर संसद पहुंची थी. 1 वर्ष तक ही उन्हें लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. 1999 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए कांग्रेस ने प्रभा ठाकुर पर फिर से दांव खेला, लेकिन बीजेपी के रासासिंह सिंह इस बार चुनाव जीत गए.