लखनऊ : यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बहुजन समाज पार्टी ने अब तक 70 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. अब 10 ही उम्मीदवारों की घोषणा होनी है. टिकटों के बंटवारे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने बेजोड़ जातीय समीकरण साधे हैं. मुस्लिम वोटरों को समाजवादी पार्टी और लोकसभा में कांग्रेस का वोटर माना जाता है लेकिन बीएसपी ने मुसलमानों को इतने टिकट दे दिए हैं कि दोनों पार्टियों के जातीय समीकरणों का दांव फेल होता नजर आ रहा है. टिकटों के बंटवारे में बसपा सुप्रीमो ने हर जाति और वर्ग का ख्याल रखा है.
उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म की राजनीति न करने की बातें भले ही पार्टियां कहती आई हों लेकिन जब चुनाव आता है तो केवल इनकी ही बातें होती हैं. जातीय समीकरणों को देखते हुए ही उम्मीदवारों की घोषणा की जाती है. जहां पर जिस जाति के ज्यादा वोटर होते हैं, वहां पर उसी जाति के प्रत्याशी को उतार कर सीट जीतना पार्टियां अपना उद्देश्य बना लेती हैं. राजनीतिक दल उस व्यक्ति पर दांव लगाते हैं जो अपनी जाति के वोटरों को साथ लेकर चुनाव जीतने में सक्षम हों.
अभी तक जातीय समीकरणों को देखते हुए ही यूपी में प्रत्याशी उतारे गए हैं. बहुजन समाज पार्टी ने अब तक सोच समझकर हर सीट पर प्रत्याशी घोषित किए हैं, जिससे दूसरे दलों के प्रत्याशियों से सीधी टक्कर ली जा सके. बहुजन समाज पार्टी ने हर सीट पर ऐसे प्रत्याशियों का मौका दिया है जो दूसरे दल के प्रत्याशी को सोचने पर मजबूर कर सकें. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने हर सीट पर गुणा गणित लगाने के बाद प्रत्याशियों का चयन किया है. टिकटों का बंटवारा इस तरह किया कि जिससे कोई भी जाति या वर्ग यह न कह सके कि प्रतिनिधित्व के मामले में बहुजन समाज पार्टी ने किसी जाति या वर्ग को दरकिनार किया है.
बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक सबसे ज्यादा टिकटों के मामले में प्रतिनिधित्व मुस्लिम वर्ग को ही दिया है. पार्टी की तरफ से सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारे गए हैं. इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी है. इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों को लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी के इस कदम से निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को फायदा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट आपस में डिवाइड हो जाएंगे.
बहुजन समाज पार्टी के नेताओं का कहना है कि बसपा ने अपनी रणनीति के तहत प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. बीएसपी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है इसलिए अपने प्रत्याशी के जीत की संभावना के साथ ही टिकट वितरित किए गए हैं. किसी के फायदे व नुकसान से बसपा का क्या लेना-देना? पार्टी के अपने प्रत्याशी खुद चुनाव जीतेंगे और पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी. बीएसपी ने अब तक 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है . 18 सवर्ण, 16 ओबीसी और 15 एससी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. एक सिख उम्मीदवार को भी पार्टी ने टिकट दिया है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन ने बताया कि बहुजन समाज पार्टी के इस बार जो भी प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, निश्चित तौर पर सियासी गलियारों में इसकी चर्चा है. पार्टी ने इस बार टिकटों के मामले में काफी सूझबूझ दिखाई है. हर जाति और वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है. टिकटों के मामले में मुसलमानों को आगे रखकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के सामने निश्चित तौर पर चुनौती पेश की है. सवर्ण, पिछड़ा वर्ग, दलित को प्रतिनिधित्व देकर हर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है. मुस्लिम उम्मीदवारों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर निश्चित तौर पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशियों की राह मुश्किल हुई है.
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