शिमला: चुनाव प्रचार के दौरान कंगना ने किन्नौरी शॉल पहनी, करसोगी बास्केट से लेकर पट्टू और रेजटा पहना. यही नहीं, अपने प्रचार की शुरुआत भी मंडयाली में की और मार्च की 29 तारीख को मंडयाली में भाषण दिया. कंगना ने मंडी में रोड शो में कहा कि तुहां एड़ा नी सोचणा के कंगना कोई हिरोईन ई, मैं कोई कसर नहीं छड़णी तुहाड़ी सेवा च. साथ ही ये भी कहा था कि कंगना असां री बेटी, असां री बैहण ई. एथी सारे ई मेरे रिश्तेदार है. कदी ये नी सोचणा की असां कंगना ने कियां गलांगे. फिर पहली अप्रैल को भी मंडी में अपनी बोली में कई बातें कहीं. कंगना ने कहा कि दिख्यां मेरी नक कटाई दिंदे यानी देखना मेरी नाक न कटवा देना. वहीं, अनुराग ठाकुर हों या आनंद शर्मा या फिर अन्य प्रत्याशी. समय और मौका मिलते ही अपनी बोली में प्रचार करने लग जाते हैं. यही नहीं, लोकल मीडिया में भी अपनी बोली में बात करते दिखाई दे रहे हैं.
सीधे दिल में उतरती है अपनी बोली
कहा जाता है कि अपनी बोली मीठी होती है और उसकी मिठास सीधे दिल में उतरती है. चुनाव के दौरान राजनेताओं की इच्छा यही होती है कि उनकी बात मतदाताओं के मन में बस जाए. आखिर वोट का मसला जो है. यही कारण है कि हिमाचल में चुनाव लड़ रहे प्रभावशाली नेता अपने-अपने इलाके की बोलियों में प्रचार के जरिए मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं. देश भर में हॉट सीट बनी मंडी में बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत चुनाव लड़ रही हैं. कंगना ने प्रचार की शुरुआत में खूब मंडयाली बोली में बातें कहीं.
लोगों के दिल को छू रही कंगना की पहाड़ी बोली
यही नहीं, कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान भी कंगना पहाड़ी में बात कर लेती हैं. इससे कंगना के समर्थकों को खुशी मिलती है कि बॉलीवुड में नाम कमाने के बाद भी हिमाचल की ये लड़की अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है. उधर, शिमला से प्रत्याशी विनोज सुल्तानपुरी भी बघाटी में बात करते नजर आते हैं. विनोद शिमला सीट से अपने पिता की छह बार की विजय पारी को आगे बढ़ाने के इरादे से उतरे हैं. नामांकन के बाद विनोद सुल्तानपुरी ने अपने समर्थकों से बघाटी बोली में कहा था-हाऊं त्हारा बेटा, त्हारा छोअटू, हाऊं त्हारी खातर काम करणे. यानी मैं तुम्हारा बेटा, तुम्हारा पुत्र हूं और मैं तुम्हारी खातिर काम करूंगा. इसी प्रकार अनुराग ठाकुर तो अकसर हमीरपुरी बोलते हैं. सामान्य चर्चा में अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों से हमीरपुरी में बात करने लगते हैं.
आनंद का पहाड़ी रूप देख लोग हैरान
आनंद शर्मा को कार टू कारपेट लीडर कहा जाता रहा है. एसी कमरों में बैठकर चिंतन करने वाले नेता के तौर पर भी उन्हें कहा जाता रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांगड़ा सीट से चुनाव लड़ रहे आनंद शर्मा हाई प्रोफाइल व्यवहार छोडक़र सामान्य हिमाचली की तरह व्यवहार कर रहे हैं. उन्होंने एक साक्षात्कार में कांगड़ी व चंबयाली मिश्रित बोली में अपनी बात कही. यही नहीं, चंबा में एक सभा के दौरान उन्होंने कहा कि लोकल नेता का अपना महत्व है. आनंद शर्मा ने कहा-अपणा सांसद होंआं न पुच्छी बी सकदे, गलाई सकदे तिसा नाल. यानी अपना लोकल सांसद हो तो उसे पूछ सकते हैं, अपने इलाके की बात कर सकते हैं.
वहीं, कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर रहे सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू, डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री भी लोकल बोलियों का प्रयोग अकसर कर रहे हैं. सीएम हमीरपुरी तो डिप्टी सीएम ऊना में बोले जाने वाली मिश्रित पंजाबी में बात करते हैं. इससे कम्यूनिकेश अच्छा हो जाता है. वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी जिस तरह से प्रचार के दौरान स्थान विशेष के कुछ शब्दों को बोलते हैं तो जनसभा में जमकर तालियां बजती हैं, उसी तर्ज पर अन्य नेता भी लोकल बोली का महत्व समझ चुके हैं.
कंगना ने आरंभ में मंडयाली में अपनी बात कही. इससे जनता को लगता है कि प्रत्याशी अपने ही बीच का आम इंसान है. धनंजय शर्मा कहते हैं कि एक सभा में कंगना के साथ महिलाएं मंडयाली में गा रही थीं कि असां करणा चार सौ पार कुड़े. यानी इस बार हमने यानी समर्थकों ने भाजपा को चार सौ पार करना है. इससे वोटर्स के साथ बेहतर कनेक्ट होता है. फिलहाल, देखना है कि नेताओं का ये लोकल प्रेम और स्थानीय बोली में प्रचार उनके कितना काम आता है.