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नैनीताल समेत उत्तराखंड के चार शहरों का होगा लिडार सर्वे, आपदा से बचने को सड़क निर्माण में स्लोप का रखा जाएगा ध्यान - Uttarakhand Lidar survey - UTTARAKHAND LIDAR SURVEY

Workshop on Landslide Mitigation and Risk Management in Dehradun उत्तराखंड में लैंडस्लाइड आते रहते हैं. पहले मॉनसून के सीजन में भूस्खलन की घटनाएं होती थीं. अब बिना बारिश के भी लैंडस्लाइड हो रहा है. अभी उत्तरकाशी में हुई घटनाओं ने विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है. देहरादून में भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन विषय पर कार्यशाला हुई. इसमें बताया गया कि जल्द ही उत्तराखंड के चार शहरों का लिडार सर्वे किया जाएगा.

Workshop on Landslide Mitigation
भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन कार्यशाला (Photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 13, 2024, 9:20 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से भूस्खलन जोखिम न्यूनीकरण योजना के तहत राज्य में भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में तमाम वैज्ञानिकों ने प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों और आपदा को लेकर अपने विचार साझा किए.

भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन कार्यशाला: कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि प्रदेश में भूस्खलन एक गंभीर समस्या है. भूस्खलन के चलते हर साल जानमाल का नुकसान होता है. भूस्खलन या फिर अन्य किसी आपदा को समझने के लिए, आपदा का सामना करने के लिए और पुख्ता तैयारी के लिए तमाम विषयों को एक समग्र दृष्टिकोण से समझना होगा. तभी राज्य को आपदा सुरक्षित प्रदेश बनाने की कल्पना को सार्थक कर पाएंगे. सड़क काटने के बाद सिर्फ पुश्ता लगाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि वहां के भूविज्ञान को समझना होगा. भू-भौतिक विज्ञान को समझना होगा और इंजीनियरिंग के साथ जल विज्ञान एवं मिट्टी की संरचना को भी समझना होगा. कुल मिलाकर भूस्खलन का सामना करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है.

भूस्खलन के पीछे इंसान द्वारा पैदा की गई परिस्थितियां: भूस्खलन एक प्राकृतिक आपदा जैसी दिखाई देती है, लेकिन कहीं न कहीं इसके पीछे इंसानों की ओर से उत्पन्न परिस्थितियां भी मुख्य कारण हैं. ऐसे में विकास के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी बहुत जरूरी है, जिससे विकास और पर्यावरण के बीच एक संतुलन स्थापित होगा. तभी जाकर आपदाओं का सामना कर पाएंगे. पहाड़ों के ढलानों को जब किसी विकास संबंधित गतिविधियों के लिए डिस्टर्ब किया जाता है, तो उसी समय उसका उचित ट्रीटमेंट भी किया जाना जरूरी है, ताकि भविष्य में इस क्षेत्र में आपदा के लिहाज से होने वाले खतरे का ठीक ढंग से सामना किया जा सके.

सॉयल बियरिंग कैपेसिटी का अध्ययन जरूरी: प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जब भी कोई निर्माण कार्य हो, तो उससे पहले उस स्थान की सॉयल बियरिंग कैपेसिटी का अध्ययन किया जाना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो आपदा और उसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है. प्रदेश में अधिकतर भूस्खलन की घटनाएं सड़कों के किनारे हो रही हैं. लिहाजा ये स्पष्ट है कि सड़क निर्माण के कारण पहाड़ों का स्लोप डिस्टर्ब हो रहा है. हालांकि सड़कें को बनाना जरूरी है, लेकिन ये उससे भी जरूरी है कि उसी समय स्लोप का वैज्ञानिक तरीके से उचित ट्रीटमेंट करा लिया जाए.

ऐसे मिल सकती है अर्ली वार्निंग: आपदा प्रबधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि इनसार InSAR (Interferometric Synthetic Aperture Radar) भूस्खलन के दृष्टिकोण से अर्ली वार्निंग को लेकर सबसे आधुनिकतम तकनीक है. यह तकनीक सेटेलाइट आधारित और ड्रोन आधारित है. सेटेलाइट आधारित तकनीक का इस्तेमाल करके भूस्खलन होने से पहले वार्निंग मिल सकेगी. इस आधुनिक तकनीक को किस तरीके से इस्तेमाल में लाया जा सकता है, इसको लेकर भारत सरकार और राज्य सरकार के स्तर पर विचार-मंथन चल रहा है.

उत्तराखंड के चार शहरों का होगा लिडार सर्वे: बैठक के दौरान उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक शांतनु सरकार ने बताया कि हेलीकॉप्टर और ड्रोन के जरिए नैनीताल, उत्तरकाशी, चमोली और अल्मोड़ा का लिडार (LiDAR) (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सर्वे जल्द शुरू होगा. साथ ही इससे प्राप्त होने वाले डाटा को अलग अलग विभागों के साथ साझा भी किया जाएगा, जिससे सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में रॉक फॉल टनल बनाकर भी यातायात को सुचारू बनाए रखा जा सकता है तथा जन हानि की घटनाओं को कम किया जा सकता है.

निसार होने वाला है लॉन्च: कार्यशाला के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के डॉ. सुरेश कन्नौजिया ने कहा कि नासा-इसरो सार मिशन (निसार, NISAR) इसी साल लॉन्च करने जा रहे हैं. आपदा प्रबंधन के दौरान इस तकनीकी की बड़ी उपयोगिता होगी. इसके अलावा, भूस्खलन न्यूनीकरण के लिए भू-संरचना और स्लोप पैटर्न में आ रहे बदलावों को समझना आवश्यक है.

भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग जरूरी: वाडिया भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने कहा कि उत्तराखंड राज्य भूस्खलन से लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील है. ऐसे में भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के साथ ही प्रभावित क्षेत्र की मैपिंग किए जाने की जरूरत है. इसके बाद इसकी जानकारी सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवा कर सुरक्षित निर्माण के लिए कार्य शुरू किया जाएगा.

मैपिंग का डाटा सिटी प्लानर्स को करें शेयर: भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग की जानी जरूरी है. वह डाटा सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवाकर सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. हिमालय बहुत संवेदनशील हैं और मानवीय गतिविधियों के कारण उन्हें काफी नुकसान पहुंच रहा है. इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है.
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देहरादून: उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से भूस्खलन जोखिम न्यूनीकरण योजना के तहत राज्य में भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में तमाम वैज्ञानिकों ने प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों और आपदा को लेकर अपने विचार साझा किए.

भूस्खलन न्यूनीकरण और जोखिम प्रबंधन कार्यशाला: कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि प्रदेश में भूस्खलन एक गंभीर समस्या है. भूस्खलन के चलते हर साल जानमाल का नुकसान होता है. भूस्खलन या फिर अन्य किसी आपदा को समझने के लिए, आपदा का सामना करने के लिए और पुख्ता तैयारी के लिए तमाम विषयों को एक समग्र दृष्टिकोण से समझना होगा. तभी राज्य को आपदा सुरक्षित प्रदेश बनाने की कल्पना को सार्थक कर पाएंगे. सड़क काटने के बाद सिर्फ पुश्ता लगाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि वहां के भूविज्ञान को समझना होगा. भू-भौतिक विज्ञान को समझना होगा और इंजीनियरिंग के साथ जल विज्ञान एवं मिट्टी की संरचना को भी समझना होगा. कुल मिलाकर भूस्खलन का सामना करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है.

भूस्खलन के पीछे इंसान द्वारा पैदा की गई परिस्थितियां: भूस्खलन एक प्राकृतिक आपदा जैसी दिखाई देती है, लेकिन कहीं न कहीं इसके पीछे इंसानों की ओर से उत्पन्न परिस्थितियां भी मुख्य कारण हैं. ऐसे में विकास के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी बहुत जरूरी है, जिससे विकास और पर्यावरण के बीच एक संतुलन स्थापित होगा. तभी जाकर आपदाओं का सामना कर पाएंगे. पहाड़ों के ढलानों को जब किसी विकास संबंधित गतिविधियों के लिए डिस्टर्ब किया जाता है, तो उसी समय उसका उचित ट्रीटमेंट भी किया जाना जरूरी है, ताकि भविष्य में इस क्षेत्र में आपदा के लिहाज से होने वाले खतरे का ठीक ढंग से सामना किया जा सके.

सॉयल बियरिंग कैपेसिटी का अध्ययन जरूरी: प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जब भी कोई निर्माण कार्य हो, तो उससे पहले उस स्थान की सॉयल बियरिंग कैपेसिटी का अध्ययन किया जाना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो आपदा और उसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है. प्रदेश में अधिकतर भूस्खलन की घटनाएं सड़कों के किनारे हो रही हैं. लिहाजा ये स्पष्ट है कि सड़क निर्माण के कारण पहाड़ों का स्लोप डिस्टर्ब हो रहा है. हालांकि सड़कें को बनाना जरूरी है, लेकिन ये उससे भी जरूरी है कि उसी समय स्लोप का वैज्ञानिक तरीके से उचित ट्रीटमेंट करा लिया जाए.

ऐसे मिल सकती है अर्ली वार्निंग: आपदा प्रबधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि इनसार InSAR (Interferometric Synthetic Aperture Radar) भूस्खलन के दृष्टिकोण से अर्ली वार्निंग को लेकर सबसे आधुनिकतम तकनीक है. यह तकनीक सेटेलाइट आधारित और ड्रोन आधारित है. सेटेलाइट आधारित तकनीक का इस्तेमाल करके भूस्खलन होने से पहले वार्निंग मिल सकेगी. इस आधुनिक तकनीक को किस तरीके से इस्तेमाल में लाया जा सकता है, इसको लेकर भारत सरकार और राज्य सरकार के स्तर पर विचार-मंथन चल रहा है.

उत्तराखंड के चार शहरों का होगा लिडार सर्वे: बैठक के दौरान उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक शांतनु सरकार ने बताया कि हेलीकॉप्टर और ड्रोन के जरिए नैनीताल, उत्तरकाशी, चमोली और अल्मोड़ा का लिडार (LiDAR) (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सर्वे जल्द शुरू होगा. साथ ही इससे प्राप्त होने वाले डाटा को अलग अलग विभागों के साथ साझा भी किया जाएगा, जिससे सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में रॉक फॉल टनल बनाकर भी यातायात को सुचारू बनाए रखा जा सकता है तथा जन हानि की घटनाओं को कम किया जा सकता है.

निसार होने वाला है लॉन्च: कार्यशाला के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के डॉ. सुरेश कन्नौजिया ने कहा कि नासा-इसरो सार मिशन (निसार, NISAR) इसी साल लॉन्च करने जा रहे हैं. आपदा प्रबंधन के दौरान इस तकनीकी की बड़ी उपयोगिता होगी. इसके अलावा, भूस्खलन न्यूनीकरण के लिए भू-संरचना और स्लोप पैटर्न में आ रहे बदलावों को समझना आवश्यक है.

भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग जरूरी: वाडिया भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने कहा कि उत्तराखंड राज्य भूस्खलन से लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील है. ऐसे में भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के साथ ही प्रभावित क्षेत्र की मैपिंग किए जाने की जरूरत है. इसके बाद इसकी जानकारी सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवा कर सुरक्षित निर्माण के लिए कार्य शुरू किया जाएगा.

मैपिंग का डाटा सिटी प्लानर्स को करें शेयर: भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग की जानी जरूरी है. वह डाटा सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवाकर सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. हिमालय बहुत संवेदनशील हैं और मानवीय गतिविधियों के कारण उन्हें काफी नुकसान पहुंच रहा है. इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है.
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