नई दिल्लीः दिल्ली के उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच एक बार फिर से टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. LG वीके सक्सेना ने दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन (डीडीसीडी) को अस्थायी रूप से भंग कर दिया है. साथ ही इसके गैर-आधिकारिक मैंबरों को भी हटाने के आदेश दिया है. इन सभी आदेशों को तब तक प्रभावी माना जाएगा जब तक नियमों के अनुसार इसके उपाध्यक्ष और मैंबर आदि के रूप में डोमेन एक्सपर्ट की स्क्रीनिंग और चयन के लिए एक तंत्र को विकसित नहीं कर लिया जाता है.
एलजी की तरफ से कहा गया है कि मौजूदा सरकार ने डीडीसीडी का गठन सिर्फ फाइनेंशियल बेनिफिट्स बढ़ाने और कुछ पसंदीदा राजनीतिक लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण झुकाव रखते हुए उनको संरक्षण देने के लिए किया था. डीडीसीडी के पदों पर राजनीतिक रूप से नियुक्त व्यक्तियों को मुख्यमंत्री की इच्छा पर ही इन पदों पर बने रहने की अनुमति दी गई थी.
एलजी ने डीडीसीडी की पारदर्शी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए यह भी कहा कि इसके लिए कोई स्क्रीनिंग मापदंड नहीं अपनाए गए. इससे सरकारी खजाने से भारी वेतन का भुगतान किया गया, जो सौंपे गए कर्तव्यों के अनुरूप नहीं था. इस मामले में नियमों की घोर अवहेलना की गई और भाई-भतीजावाद और भेदभावपूर्ण रवैये को स्पष्ट दर्शाता है.
उपराज्यपाल ने योजना विभाग के रिकॉर्ड का भी जिक्र किया है, जिसमें डीडीसीडी के सदस्यों के बीच किसी तरह के कार्य आवंटन नहीं होने की बात कही गई है. इसलिए इसके गैर-आधिकारिक सदस्यों की ओर से भारी भरकम वेतन लेने को 'अवांछनीय' बताया गया है, जो सीधे तौर पर अवैध भी है. डीडीसीडी के सभी सदस्यों को भारत सरकार के सचिव रैंक और वेतन के बराबर वेतन का भुगतान किया जा रहा था.
एलजी ने वित्त विभाग से डीडीसीडी के इन गैर-आधिकारिक सदस्यों को भुगतान किए गए वेतन की वसूली की संभावना का मानवीय तरीके से पता लगाने के लिए भी कहा है. इस संबंध में सर्विसेज विभाग के स्पेशल सेक्रेटरी वाईवीवीजे राजशेखरन की ओर से आदेश भी जारी कर दिए गए हैं.
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