कानपुर : दीपावली का पर्व नजदीक आते ही बाजारों में भी रौनक लौट आई है. इस पर्व पर आप सभी ने अपने घरों में शक्कर से बने घोड़े, हाथी, चिड़िया, मोर समेत कई आकृतियों वाले भरपूर मीठे से भरे खिलौने जरूर खाए होंगे. ये खिलौने कानपुर के 250 साल पुराने हुलागंज बाजार में तैयार किए जाते हैं. यहां के कारोबारी इसे पूरी शुद्धता के साथ तैयार करते हैं. एक दौर में अंग्रेज भी इन मीठे खिलौने के दीवाने थे. वह भी इस बाजार में हाथी घोड़ा और चिड़िया खरीदने के लिए आते थे. इन आकर्षक और अद्भुत दिखने वाले मीठे खिलौनों का प्रयोग करवा चौथ पूजन से लेकर गोवर्धन पूजा तक होता चला आ रहा है. त्योहार के दौरान 15 दिनों के अंदर ही करीब एक करोड़ रुपये का टर्नओवर हो जाता है.
250 साल से शहर में मिठास घोल रहा ये बाजार : हुलागंज बाजार एक ऐसा बाजार है जहां दीपावली के पूजन के साथ-साथ खान-पान में चीनी के बने हुए गट्टे, खिलौने, लइया व खील बड़े पैमाने पर मिलते हैं. बाजार की सबसे खास बात यह है कि यहां के कारखाना संचालक और दुकानदार करीब 250 साल से पूरे शहर में मिठास घोल रहे हैं. अगर आप भी इस दिवाली पर गट्टा, खिलौना, लइया,खील जैसी वस्तुएं खरीदने का मन बना रहे हैं तो फिर यह बाजार आपके लिए बेहद ही खास है. बाजार में दीपावली पूजन के लिए भी सभी सामान किफायती दामों पर मिलते हैं.
कारीगर 3 पीढ़ियों से तैयार कर रहे शक्कर के आकर्षक खिलौने : ईटीवी भारत संवाददाता से खास बातचीत के दौरान कारोबारी राकेश गुप्ता ने बताया कि इन खिलौनों को अच्छी क्वालिटी (यानी साफ) शक्कर से तैयार किया जाता है. ये खाने में बेहद ही नरम होते है. इनके स्वाद बच्चे से लेकर बूढ़े तक ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी है जो इस कारोबार को कर रहे हैं. हम लोग इन्हें प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए पशु-पक्षियों की आकृतियां वाले खिलौने इसलिए भी तैयार करते हैं ताकि एक ओर जहां बच्चे उनका खेल-खेल में स्वाद ले सके. वहीं दूसरी ओर इन सभी आकर्षक दिखने वाले पशु-पक्षियों की पूजा भी हो सके. शक्कर से तैयार होने वाली सभी आकृतियां भगवान स्वरूप ही हैं. इन खिलौनों को दूसरे जिलों में भी भेजा जाता है.
विशेष प्रकार के सांचों से तैयार करते हैं शक्कर के खिलौने : कारोबारी राकेश गुप्ता बताते हैं कि, हथेली जैसे बड़े गट्टा और अलग-अलग तरह के खिलौने तैयार करने के लिए विशेष प्रकार के लकड़ी से निर्मित सांचे का इस्तेमाल किया जाता है. इन अलग-अलग डिजाइन के सांचों के जरिए ही हम मोर, कछुआ, हाथी, घोड़ा, चूहा, सारस, मगरमच्छ और नीलकंठ जैसी कई अलग-अलग आकृतियों को तैयार करते हैं. इन आकृतियों में लोग हाथी, घोड़ा, चिड़िया, पालकी जैसी डिजाइन काफी ज्यादा पसंद करते हैं. सबसे पहले हम साफ शक्कर को झारखंड से आने वाले कोयले की तेज और फिर धीमी आंच में खिलौने बनाने के लिए तरल पदार्थ (चासनी) तैयार करते हैं. इसके बाद इन्हें सांचे में डालकर अलग-अलग डिजाइनों को तैयार करते हैं.
इतने हैं कीमत, एक दुकान पर काम करते हैं इतने कारोबार : कारोबारी राकेश गुप्ता ने बताया कि इन शक्कर के खिलौने को तैयार करने के बाद कानपुर शहर ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी भेजा जाता है. पिछले 5 सालों की बात की जाए तो इनके दामों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. पिछले साल भी हम 75 रुपये प्रति किलो की दर से इन्हें बेच रहे थे. इस बार भी इनके दाम 75 रुपए किलो ही हैं. पिछले साल की अपेक्षा इस बार भी बाजार में दुकानदार अच्छी खासी संख्या में खरीदने के लिए आ रहे हैं. बाजार में करीब 40 दुकाने हैं. करवाचौथ से पहले और दीपावली बाद तक करीब 15 दिनों तक चीनी के खिलौने वाली मिठाई तैयार की जाती है. त्योहार कर करीब एक करोड़ रुपये का टर्नओवर होता है. इस बार एक दुकान से करीब 2 लाख रुपये तक के खिलौने बिकने का अनुमान है. उन्नाव के काफी कारीगर इन दुकानों पर काम करते हैं.
ऐसे पड़ा इस बाजार का नाम हुलागंज : इतिहासकार बताते हैं कि ब्रिटिश काल में ह्यू व्हीलर के नाम पर इस मोहल्ले की पहचान व्हीलरगंज के नाम से थी. उनकी स्मृति में ही यह नाम पड़ा था. अंग्रेजों की छावनी पास होने के कारण अक्सर वह यहां पर आया-जाया करते थे. भारतीयों ने अपने सेनापति हुलास सिंह के नाम पर बाद में इसे हुलागंज कर दिया.
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