नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक पत्रकार द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) से डीपफेक के पब्लिक एक्सेस सक्षम करने वाले प्लेटफार्मों और मोबाइल एप्लिकेशन की पहचान करने के साथ उन तक पहुंच को रोकने के निर्देश देने की मांग की गई है.
यह याचिका एक हिंदी समाचार चैनल के अध्यक्ष और प्रधान संपादक ने याचिका दायर कर कहा है कि डीपफेक सामग्री जनता की सुरक्षा, प्रतिष्ठा और कल्याण के लिए बेहद हानिकारक होने की क्षमता रखती है और इसके लिए समर्पित और विशेष विनियमन की आवश्यकता है. इसपर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी किया और मामले की तारीख 19 जुलाई तय की.
याचिका में डीपफेक के संबंध में शिकायतें प्राप्त करने, 12 घंटे के भीतर शिकायत पर कार्रवाई करने और किसी सार्वजनिक व्यक्ति की सामग्री के संबंध में प्राप्त शिकायत के मामले में 6 घंटे के भीतर कार्रवाई करने के लिए एक समर्पित नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि सभी सोशल मीडिया बिचौलियों को संबंधित व्यक्ति से शिकायत मिलने पर डीपफेक को हटाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश जारी करें.
किसी भी पर्याप्त नियामक नियंत्रण के अभाव के कारण इसमें एक खालीपन पैदा हो गया है, जो बदले में इस देश के नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता का उल्लंघन कर रहा है, जिससे गंभीर घटनाएं हो रही हैं. विधायिका ने डीपफेक के इस खतरे को नियंत्रित करने में कोई गहरी दिलचस्पी नहीं ली है. डिजिटल इंडिया अधिनियम, जिसका उद्देश्य एआई के बढ़ते उपयोग और इसके प्रभावों को ध्यान में रखना था, वास्तव में कभी भी प्रकाश में नहीं आया.
याचिका में आगे कहा गया कि भारत में विधानसभा चुनावों के दौरान, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वाईएस शर्मिला जैसी सार्वजनिक हस्तियों को निशाना बनाने वाले डीपफेक ने चुनावी राजनीति में जटिलता की एक परत जोड़ दी. इतना ही नहीं, अधिकारियों और जनता को झूठ के बीच सच्चाई को समझने की चुनौती दी. वहीं इजराइल-हमास संघर्ष में डीपफेक के उपयोग ने दोनों पक्षों के बीच सूचना युद्ध में एक नया आयाम जोड़ा.
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याचिका में यह भी कहा गया है कि जॉर्डन की रानी रानिया अल अब्दुल्लाह का डीपफेक वीडियो (जिसमें वह इजराइल का पक्ष लेती हुई दिखाई दी) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि क्षेत्रीय संघर्षों में डीपफेक को कैसे हथियार बनाया जा सकता है. एआई सिस्टम बड़ी मात्रा में प्रशिक्षण डेटा पर निर्भर करते हैं और जब किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा का उपयोग किया जाता है तो गोपनीयता संबंधी काफी चिंताएं होना स्वाभाविक है.
पर्याप्त गोपनीयता सुरक्षा उपायों की कमी प्रौद्योगिकी को किसी व्यक्ति की सहमति या जानकारी के बिना उसके व्यक्तिगत जीवन को पूरी तरह से रिकॉर्ड करने और उसका विश्लेषण करने की अनुमति दे सकती है, जो डेटा के उपयोग पर उनकी प्राथमिकताओं की उपेक्षा करके किसी व्यक्ति के हितों को काफी नुकसान पहुंचा सकती है. ऐसा नुकसान आर्थिक से लेकर भावनात्मक तक हो सकता है.
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