नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) देश के अग्रणी शिक्षण संस्थानों में से एक है. इसके चलते छात्र यहां प्रवेश पाने के लिए प्रयासरत रहते हैं. लंदन स्थित उच्च शिक्षा विश्लेषिकी फर्म, क्यूएस (क्वाक्यूरेली साइमंड्स) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के नवीनतम संस्करण में जेएनयू को भारत में टॉप यूनिवर्सिटी के रूप में नामित किया है. विकास अध्ययन के लिए जेएनयू को वैश्विक स्तर पर 20वें स्थान पर रखा गया है. वहीं, 25 विषयों के अध्ययन के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय को भी दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में नामित किया गया है. विश्लेषिकी फर्म की तरफ से बुधवार को यह रैंकिंग जारी की गई.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति ने दी बधाई: डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यायल ने कई विषयों में पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार और भी अच्छा स्थान पाया है. इसके लिए उन्होंने विश्वविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों को बधाई दी. कुलपति ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय इनमें से 25 विषयों के लिए रैंक करता है. इनमें से 9 विषयों में पिछले वर्ष के मुकाबले डीयू ने उच्च पायदान प्राप्त किया है.
वहीं, 11 विषयों में रैंक पिछले साल के बराबर और चार विषयों में डीयू को पहली बार रैंक मिली. इस रैंकिंग में भारत के 68 संस्थानों में 368 कार्यक्रमों की रैंकिंग की गई है. दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस बार डेवलपमेंट स्टडीज, एंथ्रोपोलोजी, हिस्ट्री, बिजनेस एंड मैनेजमेंट स्टडीज, बायोलॉजिकल साइंस, कंप्यूटर साइंस एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स, लिंगुइस्टिक्स, केमिस्ट्री और पर्यावरण विज्ञान में पिछले वर्ष के मुकाबले काफी अच्छा स्कोर प्राप्त किया है.
भारत के सामने बड़ी चुनौती: इस पर क्वाक्यूरेली साइमंड्स की सीईओ जेसिका टर्नर ने कहा कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. बढ़ती मांग के बावजूद उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना. इसे एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) ने न सिर्फ पहचाना, बल्कि 2035 तक 50 प्रतिशत ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया.
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रिसर्च का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक बना भारत: क्वाक्यूरेली साइमंड्स के मुताबिक, भारत दुनिया के सबसे तेजी से विस्तार करने वाले अनुसंधान केंद्रों में से भी एक है. डेटा के अनुसार, 2017 से 2022 तक, इसके अनुसंधान उत्पादन में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यह वृद्धि न केवल वैश्विक औसत के दोगुने से अधिक है, बल्कि इसके पारंपरिक रूप से मान्यता प्राप्त पश्चिमी समकक्षों के उत्पादन से भी काफी अधिक है.
वहीं, क्यूएस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बेन सॉटर ने कहा कि मात्रा के संदर्भ में भारत अब अनुसंधान का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है. जिसने इस अवधि में 1.3 मिलियन एकैडमिक पेपर तैयार किए हैं. यह चीन (4.5 मिलियन), अमेरिका (4.4 मिलियन) और यूनाइटेड किंगडम (1.4 मिलियन) से थोड़ा ही कम. उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए भारत अनुसंधान उत्पादकता में यूनाइटेड किंगडम से आगे निकलने की कगार पर है.