प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जल निगम में जूनियर इंजीनियर भर्ती घोटाले के मामले में बड़ी राहत देते हुए चयनित अभ्यर्थियों को सेवा में बहाल करने का आदेश दिया है. मामले की जांच कैफ आजम खान के जमाने में हुए जल निगम भर्ती सीएफएसएल ने की थी. जांच में 169 अभ्यर्थी दागी पाए गए. कोर्ट ने इनको छोड़ कर बाकी को सेवा में वापस लेने के लिए कहा है. समराह अहमद समेत सैकड़ों अभ्यर्थियों ने याचिका पर न्यायमूर्ति अजित कुमार ने यह फैसला दिया. याचिकाकर्ताओं को का कहना था कि चयन के बाद तीन साल की सेवा के बाद उनको निकाल दिया गया. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बहाल होने वाले याची याचिका लंबित रहने के दौरान का वेतन और बकाया पाने के हकदार नहीं होंगे. जबकी उनकी वरिष्ठता बहाल की जाएगी और काल्पनिक वेतन वृद्धि के साथ वेतन संरक्षण भी प्रदान किया जाएगा.
853 जूनियर इंजीनियरों की नियुक्ति कर दी थी रद्दः गौरतलब है कि वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश जल निगम के जूनियर इंजीनियर के 853 पदों पर चयन और नियुक्ति राज्य सरकार ने रद्द कर दी थी. नियुक्ति रद् करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. याचियों का कहना था कि चयन रद्द करने से पूर्व उनको सुनवाई का मौका नहीं दिया गया.
2017 में जारी हुआ था परिणामः वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे और सीमांत सिंह ने दलील दी थी कि जूनियर इंजीनियर भर्ती का चयन परिणाम एक जुलाई 2017 को जारी हुआ. याचीगण उसमें सफल घोषित किए गए. इसके बाद इन्हें विभिन्न जिलों में तैनाती कर दी गई. इसी बीच अंतिम उत्तरकुंजी के कुछ प्रश्नों को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. कोर्ट ने विभाग को याचीगण की शिकायतों पर विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया. इस आदेश के परिपेक्ष्य में विभाग ने पूरा चयन परिणाम निरस्त करते हुए चयनित याचियों की नियुक्तियां रद्द कर दी. ऐसा करने से पूर्व याचियों को न तो कोई नोटिस दी गयी और न ही उनको अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया. यह भी नहीं बताया गया कि चयन परिणाम गड़बड़ होने में याचीगण कैसे उत्तरदायी हैं.
परीक्षा एजेंसी से कराई गई थी जांचः भर्ती परीक्षा मेसर्स अपटेक ने कराई थी. शिकायत की जांच ट्रिपल आईटी प्रयागराज से कराई गई. जांच रिपोर्ट में कहा गया कि अपटेक ने डाटा सुरक्षित नहीं रखा और न क्लाउड सर्वर तैयार किया. जबकि अपटेक का कहना था कि डाटा सीडी और पेनड्राइव में सुरक्षित है. करार में क्लाउड सर्वर तैयार करने की कोई शर्त नहीं थी. करीब चार साल बाद आए 246 पेज के फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विज्ञापन और चयन के वक्त जल निगम एक एकीकृत निगम था. इसलिए जल निगम उनकी नियुक्ति के लिए जिम्मेदार थे और चयनित उम्मीदवार जल निगम के एकीकृत कर्मचारी थे. वर्ष 2021 में तत्कालीन यूपी जल निगम को यूपी जल निगम (शहरी) और (ग्रामीण) के रूप में तब्दील किए जाने से याचियों के दावे पर कोई असर नहीं पड़ेगा.