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जगदीश गांधी विधायक भी रहे थे, निर्दलीय पहली बार जीते थे विधानसभा चुनाव, मिला था साइकिल सिंबल

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 23, 2024, 8:19 AM IST

Jagdish Gandhi Memories: जगदीश गांधी अलीगढ़ के सिकंदराराउ से पहली बार बने थे विधायक, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता निक राम शर्मा को 1969 में विधानसभा चुनाव हराया था. जगदीश गांधी ने शिक्षक नेताओं के खिलाफ मोर्चा भी खोला था. शिक्षक एमएलसी चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारा था.

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सीएमएस के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हरिओम शर्मा ने बताई डॉ. जगदीश गांधी के संघर्ष की कहानी

लखनऊ: सिटी मोंटेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी ने निजी विद्यालयों के शिक्षा के जनक के रूप में पूरे देश में ख्याति प्राप्त की थी. उन्होंने 1 जुलाई 1959 को किराए के मकान 12 स्टेशन रोड पर सीएमएस की नींव डाली थी. वर्ष 1959 में 5 बच्चों से अपने विद्यालय का सफर शुरू किया था. शुरुआत में अपने विद्यालय की मान्यता माध्यमिक शिक्षा परिषद से प्राप्त की थी.

Jagdish Gandhi
यादों में सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी.

शिक्षक नेताओं से दो-दो हाथ करने से भी जगदीश गांधी पीछे नहीं रहे थे. सभी बड़े शिक्षक नेताओं को सबक सिखाने के लिए डॉ. जगदीश गांधी ने 1984 के शिक्षक स्नातक चुनाव में अपने साथी को मैदान में उतार दिया था. राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी डॉ. जगदीश गांधी ने भारी भरकम शिक्षक नेताओं से दो-दो हाथ करने के साथ ही पहली बार उत्तर प्रदेश में साल 1987 में यूपी बोर्ड से अपने विद्यालय की मान्यता समाप्त कर ली.

Jagdish Gandhi
यादों में जगदीश गांधी.

नए आईसीएससी बोर्ड से अपने विद्यालय की मान्यता करवाई थी. उनकी इसी कोशिश का परिणाम है कि सिटी मोंटेसरी स्कूल न केवल राजधानी लखनऊ में बल्कि पूरे विश्व में सबसे बड़े निजी स्कूल के रूप में स्थापित होने में कामयाब रहा है. वे निजी विद्यालयों के जनक के रूप में भी अपने आपको स्थापित करने में कामयाब रहे थे.

Jagdish Gandhi
यादों में डॉ. गांधी.

डॉ. जगदीश गांधी साल 1969 से 1974 तक पहली बार अलीगढ़ के सिकंदराराउ से निर्दल प्रत्याशी के तौर पर विधायक बने थे. इस चुनाव में उन्हें साइकिल का निशान चुनाव चिह्न मिला था. कांग्रेस के कदावर नेता निक राम शर्मा को हराया था. विधायक रहते उन्होंने 1971 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. इस सीट पर कांग्रेस ने हैदराबाद से आए सलीम को अपना प्रत्याशी बनाया था. जबकि प्रकाश वीर शास्त्री निर्दल प्रत्याशी के तौर पर खड़े थे.

Jagdish Gandhi
यादों में सीएमएस के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी.

इसी चुनाव के दौरान हिंदू मुस्लिम दंगे हो गए. इसके बाद आर्य समाज छवि वाले नेता प्रकाश वीर शास्त्री के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हुई और वह आसानी से यह लोकसभा चुनाव जीत गए. विधायक रहने के दौरान ही जगदीश गांधी ने एक स्वतंत्र धर्म के तौर पर बहाई धर्म को स्वीकार कर लिया. इस धर्म की मान्यता के अनुसार एक अवसरवाद और विश्व भर के विभिन्न धर्म और पंथ्यों की एकमात्र आधारशिला पर जोड़ देता है.

Jagdish Gandhi
यादों में डॉ. जगदीश गांधी.

बहाई धर्म अपनाने के बाद सन 1974 में लन्दन में आयोजित सम्मेलन के दौरान बहाई धर्म स्वीकार करने के बाद भी डॉ. गांधी पुनः 1977 में विधानसभा के उप चुनाव में विधायक का चुनाव लड़ने के लिए लालायित हो गए थे. उस समय उन्हें उनकी 14 वर्ष की बेटी गीता ने यह स्मरण दिलाया कि बहाई धर्म के अनुयायी का जीवन अपनी आत्मा के विकास, मानव मात्र की सेवा तथा हृदयों की एकता के लिए होता है और बहाई धर्म में राजनीति में भाग लेने की मनाही भी है. बेटी गीता द्वारा स्मरण कराई गई बहाई शिक्षाओं के परिणामस्वरूप डॉ. गांधी ने चुनाव लड़ने का फैसला छोड़ दिया.

डॉ जगदीश गांधी ने माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्यता लेने के बाद अपने विद्यालय का संचालन शुरू किया था. उस समय शिक्षक राजनीति अपने उफान पर थी. उत्तर प्रदेश में तब अम्मार रिजवी, स्वरूप कुमारी बक्शी, पीके शर्मा, राम सिंह सैनी, मांधाता सिंह, पंचानन राय, कामेश्वर पांडे और ओम प्रकाश शर्मा जैसे बड़े शिक्षक नेता मौजूद थे. शिक्षक नेताओं ने डॉ. गांधी के स्कूल में अपनी यूनियन स्थापित कर दी.

यूनियन ने विद्यालय के संचालन करने के लिए नियम बनाने के साथ अन्य मांगों को लेकर लगातार हड़ताल और प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. इसके विरोध में डॉ. जगदीश गांधी ने शिक्षकों के दो जगह से सैलरी लेने के मुद्दे को उठाते हुए उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का निर्णय किया. हालांकि उन्होंने राजनीति से पूरी तरह से किनारा कर दिया था. ऐसे में उन्होंने अपने साथी हरिओम शर्मा को 1984 में शिक्षक स्नातक के पद पर चुनाव लड़ने के लिए नामांकन कराया था.

दोहरे पद का लाभ के मुद्दे को लेकर उन्होंने चुनाव प्रभारी आरएन त्रिवेदी से इसकी शिकायत की जिसके बाद कई शिक्षक नेताओं के पर्चे खारिज किए गए. इस दौरान चुनाव प्रचार के समय रायबरेली में डॉ. हरिओम शर्मा पर जानलेवा हमला भी हुआ पर वह इस चुनाव में महेश्वर पांडे से करीबी मुकाबले में चुनाव हार गए थे. पर उन्हें शिक्षक चुनाव में काफी अधिक मत मिलने से शिक्षक नेताओं में एक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ा. जिसका असर यह रहा की डॉ. जगदीश गांधी ने अपने विद्यालय में शिक्षक यूनियन का संचालन करने वाले 115 शिक्षकों को तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

डॉ. गांधी ने जुलाई 1955 में लखनऊ विश्वविद्यालय में बीकॉम में प्रवेश लिया. इसके साथ ही उन्होंने अखबार बेचकर भी अपनी पढ़ाई एवं खाने-पीने की व्यवस्था की. इन सब कठिनाइयों के बावजूद डॉ. गांधी अपनी शिक्षा के साथ ही साथ अपने सहपाठियों के साथ मिलकर शिक्षा में सुधार लाने तथा समाज सेवा के कार्यो में संलग्न रहते थे. धीरे-धीरे डॉ. गांधी विद्यार्थियों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गये और वर्ष 1957 के लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में वे ‘उपाध्यक्ष’ व वर्ष 1958 में एमकॉम द्वितीय वर्ष के छात्र रहते हुए भारी बहुमत से लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के ‘अध्यक्ष’ चुने गये.

इन दोनों ही चुनाव में डॉ. गांधी ने बिना पैसा खर्च किए केवल ‘व्यक्तिगत सम्पर्क’ एवं ‘सेवा भावना’ के बलबूते भारी जीत हासिल की. डॉ. गांधी के व्यक्तिगत आमंत्रण पर छात्र संघ के शपथ ग्रहण समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे.

ये भी पढ़ेंः CMS के संस्थापक जगदीश गांधी का निधन, मेदांता अस्पताल में ली अंतिम सांस

सीएमएस के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हरिओम शर्मा ने बताई डॉ. जगदीश गांधी के संघर्ष की कहानी

लखनऊ: सिटी मोंटेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी ने निजी विद्यालयों के शिक्षा के जनक के रूप में पूरे देश में ख्याति प्राप्त की थी. उन्होंने 1 जुलाई 1959 को किराए के मकान 12 स्टेशन रोड पर सीएमएस की नींव डाली थी. वर्ष 1959 में 5 बच्चों से अपने विद्यालय का सफर शुरू किया था. शुरुआत में अपने विद्यालय की मान्यता माध्यमिक शिक्षा परिषद से प्राप्त की थी.

Jagdish Gandhi
यादों में सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी.

शिक्षक नेताओं से दो-दो हाथ करने से भी जगदीश गांधी पीछे नहीं रहे थे. सभी बड़े शिक्षक नेताओं को सबक सिखाने के लिए डॉ. जगदीश गांधी ने 1984 के शिक्षक स्नातक चुनाव में अपने साथी को मैदान में उतार दिया था. राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी डॉ. जगदीश गांधी ने भारी भरकम शिक्षक नेताओं से दो-दो हाथ करने के साथ ही पहली बार उत्तर प्रदेश में साल 1987 में यूपी बोर्ड से अपने विद्यालय की मान्यता समाप्त कर ली.

Jagdish Gandhi
यादों में जगदीश गांधी.

नए आईसीएससी बोर्ड से अपने विद्यालय की मान्यता करवाई थी. उनकी इसी कोशिश का परिणाम है कि सिटी मोंटेसरी स्कूल न केवल राजधानी लखनऊ में बल्कि पूरे विश्व में सबसे बड़े निजी स्कूल के रूप में स्थापित होने में कामयाब रहा है. वे निजी विद्यालयों के जनक के रूप में भी अपने आपको स्थापित करने में कामयाब रहे थे.

Jagdish Gandhi
यादों में डॉ. गांधी.

डॉ. जगदीश गांधी साल 1969 से 1974 तक पहली बार अलीगढ़ के सिकंदराराउ से निर्दल प्रत्याशी के तौर पर विधायक बने थे. इस चुनाव में उन्हें साइकिल का निशान चुनाव चिह्न मिला था. कांग्रेस के कदावर नेता निक राम शर्मा को हराया था. विधायक रहते उन्होंने 1971 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. इस सीट पर कांग्रेस ने हैदराबाद से आए सलीम को अपना प्रत्याशी बनाया था. जबकि प्रकाश वीर शास्त्री निर्दल प्रत्याशी के तौर पर खड़े थे.

Jagdish Gandhi
यादों में सीएमएस के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी.

इसी चुनाव के दौरान हिंदू मुस्लिम दंगे हो गए. इसके बाद आर्य समाज छवि वाले नेता प्रकाश वीर शास्त्री के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हुई और वह आसानी से यह लोकसभा चुनाव जीत गए. विधायक रहने के दौरान ही जगदीश गांधी ने एक स्वतंत्र धर्म के तौर पर बहाई धर्म को स्वीकार कर लिया. इस धर्म की मान्यता के अनुसार एक अवसरवाद और विश्व भर के विभिन्न धर्म और पंथ्यों की एकमात्र आधारशिला पर जोड़ देता है.

Jagdish Gandhi
यादों में डॉ. जगदीश गांधी.

बहाई धर्म अपनाने के बाद सन 1974 में लन्दन में आयोजित सम्मेलन के दौरान बहाई धर्म स्वीकार करने के बाद भी डॉ. गांधी पुनः 1977 में विधानसभा के उप चुनाव में विधायक का चुनाव लड़ने के लिए लालायित हो गए थे. उस समय उन्हें उनकी 14 वर्ष की बेटी गीता ने यह स्मरण दिलाया कि बहाई धर्म के अनुयायी का जीवन अपनी आत्मा के विकास, मानव मात्र की सेवा तथा हृदयों की एकता के लिए होता है और बहाई धर्म में राजनीति में भाग लेने की मनाही भी है. बेटी गीता द्वारा स्मरण कराई गई बहाई शिक्षाओं के परिणामस्वरूप डॉ. गांधी ने चुनाव लड़ने का फैसला छोड़ दिया.

डॉ जगदीश गांधी ने माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्यता लेने के बाद अपने विद्यालय का संचालन शुरू किया था. उस समय शिक्षक राजनीति अपने उफान पर थी. उत्तर प्रदेश में तब अम्मार रिजवी, स्वरूप कुमारी बक्शी, पीके शर्मा, राम सिंह सैनी, मांधाता सिंह, पंचानन राय, कामेश्वर पांडे और ओम प्रकाश शर्मा जैसे बड़े शिक्षक नेता मौजूद थे. शिक्षक नेताओं ने डॉ. गांधी के स्कूल में अपनी यूनियन स्थापित कर दी.

यूनियन ने विद्यालय के संचालन करने के लिए नियम बनाने के साथ अन्य मांगों को लेकर लगातार हड़ताल और प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. इसके विरोध में डॉ. जगदीश गांधी ने शिक्षकों के दो जगह से सैलरी लेने के मुद्दे को उठाते हुए उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का निर्णय किया. हालांकि उन्होंने राजनीति से पूरी तरह से किनारा कर दिया था. ऐसे में उन्होंने अपने साथी हरिओम शर्मा को 1984 में शिक्षक स्नातक के पद पर चुनाव लड़ने के लिए नामांकन कराया था.

दोहरे पद का लाभ के मुद्दे को लेकर उन्होंने चुनाव प्रभारी आरएन त्रिवेदी से इसकी शिकायत की जिसके बाद कई शिक्षक नेताओं के पर्चे खारिज किए गए. इस दौरान चुनाव प्रचार के समय रायबरेली में डॉ. हरिओम शर्मा पर जानलेवा हमला भी हुआ पर वह इस चुनाव में महेश्वर पांडे से करीबी मुकाबले में चुनाव हार गए थे. पर उन्हें शिक्षक चुनाव में काफी अधिक मत मिलने से शिक्षक नेताओं में एक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ा. जिसका असर यह रहा की डॉ. जगदीश गांधी ने अपने विद्यालय में शिक्षक यूनियन का संचालन करने वाले 115 शिक्षकों को तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

डॉ. गांधी ने जुलाई 1955 में लखनऊ विश्वविद्यालय में बीकॉम में प्रवेश लिया. इसके साथ ही उन्होंने अखबार बेचकर भी अपनी पढ़ाई एवं खाने-पीने की व्यवस्था की. इन सब कठिनाइयों के बावजूद डॉ. गांधी अपनी शिक्षा के साथ ही साथ अपने सहपाठियों के साथ मिलकर शिक्षा में सुधार लाने तथा समाज सेवा के कार्यो में संलग्न रहते थे. धीरे-धीरे डॉ. गांधी विद्यार्थियों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गये और वर्ष 1957 के लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में वे ‘उपाध्यक्ष’ व वर्ष 1958 में एमकॉम द्वितीय वर्ष के छात्र रहते हुए भारी बहुमत से लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के ‘अध्यक्ष’ चुने गये.

इन दोनों ही चुनाव में डॉ. गांधी ने बिना पैसा खर्च किए केवल ‘व्यक्तिगत सम्पर्क’ एवं ‘सेवा भावना’ के बलबूते भारी जीत हासिल की. डॉ. गांधी के व्यक्तिगत आमंत्रण पर छात्र संघ के शपथ ग्रहण समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे.

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