जबलपुर:(विश्वजीत सिंह) आदिवासी बच्चों के लिए बनाई गई आश्रम पाठशालाओं का जिले में कैसे पलीता लगाया जा रहा है इसके लिए ईटीवी भारत की टीम ने ककरहटा में बने शासकीय आदिवासी बालक आश्रम नाहनदेवी का जायजा लिया और यहां जाना कि कितने बच्चे हॉस्टल में दर्ज हैं और कितने बच्चे यहां रहते हैं. जो जानकारी निकलकर सामने आई वह चौंकाने वाली है. बता दें कि यह हॉस्टल आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित है.
ककरहटा का शासकीय आदिवासी बालक आश्रम
जबलपुर के कटंगी ब्लॉक के पास ककरहटा नाम का एक गांव है. यहां एक पहाड़ी के ठीक नीचे ऐसी ही एक शासकीय आश्रम पाठशाला बनाई गई है. यहां एक बड़ा सा हॉस्टल और स्कूल है. बच्चों के लिए कवर्ड कैंपस है और खाना बनाने के लिए एक मैस भी है. ईटीवी भारत की टीम सुबह 8 बजे इस आश्रम पाठशाला में पहुंची. इस दौरान ना तो यहां एक भी बच्चे थे और ना ही हॉस्टल अधीक्षक अशोक उपाध्याय यहां मिले. यहां मौजूद खाना बनाने वाली कर्मचारी रितु ने बताया कि यहां 20 बच्चे रहते हैं और बाकी कॉलोनी में रहते हैं.
8 बच्चे आए सामने
खाना बनाने वाली कर्मचारी रितु से सवाल जवाब के बाद उसने कुछ बच्चों को आवाज दी तो मौके पर 8 बच्चे सामने आए हैं. महिला का जवाब था कि वह यहां खाना बनाती है बाकी बच्चे पास की कॉलोनी में रहते हैं. यहां 20 बच्चे रहते हैं आप थोड़ी देर रुके हैं तो वह कॉलोनी से पूरे बच्चों को बुला सकती है. छात्रावास अधीक्षक कहां है तो उसने बताया कि वे कंटगी में रहते हैं. इधर जब बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि यहा 7-8 बच्चे ही रहते हैं.
मौके पर पहुंचे हॉस्टल अधीक्षक
मौके पर पहुंचे हॉस्टल अधीक्षक अशोक उपाध्याय ने बताया कि यहां 20 बच्चे रजिस्टर्ड हैं. 8 बच्चे मौजूद होने के सवाल पर उन्होंने बताया कि बाकी बच्चे स्कूल गए हैं. नियमानुसार आश्रम पाठशाला के बाहर बच्चे नहीं जा सकते तो फिर बच्चे दूसरे स्कूल में कैसे चले गए. ककेरहटा गांव के शासकीय स्कूल में टीम पहुंची तो यहां आश्रम पाठशाला के 2 बच्चे मिले. बच्चों ने बताया कि उनका नाम आश्रम पाठशाला में लिखा है लेकिन वे रहते गांव में हैं.
देगा गांव के आदिवासी छात्रावास का भी है प्रभार
अशोक उपाध्याय के पास देगा गांव का आदिवासी छात्रावास का प्रभार भी है. जब हमारी टीम इस छात्रावास में पहुंची तो पता लगा कि पूरे बच्चे स्कूल में हैं. कटंगी के सरकारी स्कूल में हमने आदिवासी छात्रावास के बच्चों की जानकारी ली तो 5 बच्चे सामने आए. यहां पर भी हॉस्टल में रहने वाले छात्रों की संख्या 30 बताई गई है.
आश्रम पाठशाला के नाम पर घोटाला!
हॉस्टल अधीक्षक अशोक उपाध्याय के पास दो आश्रम का प्रभार है. बता दें कि यहां गांव के ही बच्चों का नाम आश्रम में लिख लिया गया है. यह बच्चे गांव में अपने घरों में रहते हैं. इन बच्चों के खाने, रहने और दूसरी व्यवस्थाओं के लिए हर महीने हजारों रुपये आता है. सवाल यही है कि जब आश्रम में बच्चे ही नहीं हैं तो फिर यह पैसा कहां जा रहा है.
जांच के बाद होगी कड़ी कार्रवाई
आदिम जाति कल्याण विभाग के संभागीय अधिकारी नीलेश रघुवंशी का कहना है कि "हॉस्टल में रहने वाले हर बच्चे को लगभग 15 सौ रुपये प्रतिमाह दिया जाता है. इसमें से 10% राशि बच्चों के अकाउंट में जाती है और बाकी अधीक्षक के अकाउंट में जाती है." ककरहटा और देगा गांव के आश्रम में बच्चों के नहीं होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि "इस मामले की जांच करेंगे और यदि आरोप सही पाए गए तो हॉस्टल अधीक्षक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. जिले में 72 छात्रावास अधीक्षक के पद स्वीकृत हैं जबकि 33 अधीक्षक वर्तमान में हैं."
इसलिए बनाई गई हैं आदिम जाति आश्रम पाठशाला
मध्य प्रदेश आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है. जबलपुर जिले में भी कई ब्लॉक ऐसे हैं जहां आदिवासी रहते हैं. इनमें गोंड जनजाति और कोल जनजाति के लोग निवास करते हैं. काम को लेकर आदिवासी पलायन करते हैं और साल के आधे से ज्यादा समय बाहर रहते हैं ऐसे में इनके बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है. पढ़ाई के बीच में छूट जाने की वजह से दूसरी पीढ़ी फिर नहीं पढ़ पाती और गरीबी का कुचक्र चलता रहता है. इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने एक योजना बनाई थी जिसे आदिम जाति आश्रम पाठशाला नाम दिया गया था.
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एक ही कैंपस में सभी व्यवस्था
ऐसे बच्चों के लिए खाने-पीने रहने और पढ़ाई की व्यवस्था एक ही कैंपस में करने का फैसला लिया गया. इसके लिए सरकार ने करोड़ों रुपये का बजट बनाया और एक बड़े कैंपस में एक हॉस्टल बनाया. हॉस्टल के ठीक बाजू में एक स्कूल बनाया. खाना बनाने के लिए एक मैस बनाई गई और बच्चों के खेलने के लिए बड़ा सा मैदान बनाया गया. इनमें ज्यादातर पहली क्लास से पांचवी क्लास तक के बच्चे शामिल हैं. इसलिए पूरे कैंपस को कवर्ड किया गया. बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए गेटकीपर लगाए गए. योजना में यह स्पष्ट है कि हॉस्टल अधीक्षक बच्चों के साथ ही रात में यही रुकेंगे ताकि इन बच्चों को एक भरोसेमंद अभिभावक मिल सके.