जयपुर. रुणाचलम मुरुगनंतम को पूरा देश पैडमैन के नाम से जानता है. उन पर फिल्म भी बन चुकी है और उनके प्रयासों की आज भी सराहना होती है, लेकिन आज महिला दिवस के मौके पर हम जयपुर की पैड वूमेन के बारे में बताएंगे, जिन्होंने न सिर्फ माहवारी के वक्त महिलाओं को होने वाली परेशानी को ध्यान में रखकर उन तक सेनेटरी पैड पहुंचाया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड बनाया.
देश में आज भी ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों की महिलाएं माहवारी के दिनों में कपड़ा व पत्ते जैसी असुरक्षित चीजों का इस्तेमाल करती हैं, जिसका एक कारण शिक्षा और जागरूकता में कमी को माना जा सकता है. हालांकि, आज बहुत बड़ी महिला आबादी सेनेटरी पैड का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन जब ये सेनेटरी पैड हजार्डस वेस्ट के रूप में घरों से निकलता है तो सही तरीके से डिस्पोज नहीं होने की वजह से ये पर्यावरण के लिए हानिकारक बन जाता है. कचरे में पड़े सेनेटरी पैड अमूमन मिट्टी और जल स्रोत को दूषित करते हैं. ऐसे में जयपुर की सुनीता शर्मा ने इसका भी उपाय निकाल लिया. उन्होंने अमेरिकन कॉटन और केले के तने से तैयार इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड तैयार किया, जो पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से पूरी तरह से सुरक्षित है.
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ऐसे हुई शुरुआत : ईटीवी भारत से खास बातचीत में सुनीता शर्मा ने बताया कि वसुंधरा राजे के शासनकाल में 'चुप्पी तोड़ो कार्यक्रम' चला था. उससे जुड़कर वो स्कूलों और कॉलेज में इंसीनरेटर और वेंडिंग मशीन सप्लाई करती थी. हालांकि, तब स्कूली छात्रों को यह भी नहीं पता था कि इंसीनरेटर व वेंडिंग मशीन आखिर क्या होता है. वहीं, सेनेटरी नैपकिन को लेकर लंबे समय से काम किया जा रहा है, लेकिन इसको लेकर खुलकर कोई चर्चा नहीं करता था. ऐसे में उन्होंने अपने एनजीओ इलीट संस्था के जरिए न सिर्फ अपना प्रोडक्ट बेचने पर काम किया, बल्कि छात्राओं को यह भी बताया कि प्रोडक्ट का यूटिलाइज कैसे किया जाए. उन्होंने बताया कि जहां भी इंसीनरेटर और वेंडिंग मशीन लगे हो, वहां पर पैड फ्री में सप्लाई किए गए. वहां वो खुद टीचर और बच्चों के साथ बैठकर चर्चा करती थी. उन्हें बताया गया कि सेनेटरी वेंडिंग मशीन से पैड लेकर उसका इस्तेमाल करने के बाद इंसीनरेटर में ही डिस्ट्रॉय किया जा सकता है.
महिला डॉक्टर्स संग की विस्तृत चर्चा : हालांकि, जब वो इस मुहीम को आगे बढ़ा रही थी, तभी 2019 में कोविड आ गया और तब 17-18 महीने तक उनके पास कोई काम नहीं था. अपने नए काम के लिए जब वो इंटरनेट पर सर्च कर रही थी तो पता लगा कि सेनेटरी पैड का बिजनेस थ्री बिलियन डॉलर का है, जिसे अचीव किया जा सकता है. इस काम में बड़ी-बड़ी कंपनियां जुटी हुई हैं. ऐसे में विचार आया कि आखिर उनका पैड कोई क्यों खरीदेगा. इसलिए उन्होंने अलग-अलग पैड के सैंपल मंगवाकर डॉक्टर्स के साथ डिस्कस किया. जयपुर में ही एक अस्पताल में लेडी डॉक्टर से उन्होंने अपने इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड प्रोडक्ट पर चर्चा की. उन्होंने कुछ हद तक संतुष्टि जाहिर की और इस पर गहनता से काम करने की नसीहत दी.
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जमीन में दबाने मात्र से बन जाती है खाद : यहीं से उन्होंने अपने सफर को गति दी. चूंकि अमेरिकन कॉटन में इंफेक्शन होने के चांसेस बहुत कम होते हैं. इसलिए अमेरिकन कॉटन मंगवाकर उस पर काम शुरू किया. साथ ही केले के तने को रीसायकल कर इस्तेमाल किया. उन्होंने बताया कि इसकी पैकिंग में भी कागज का इस्तेमाल किया गया, ताकि पॉलीथिन का इस्तेमाल न हो और पर्यावरण दूषित न हो. वहीं, जो इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड तैयार किया गया, उसमें ऐसा पेपर इस्तेमाल किया गया, जिसके गीला होने के बाद भी किसी तरह की गंध और बैक्टेरिया नहीं होता है. इसे यूज करने के बाद नष्ट किया जा सकता है. इस पैड को इस्तेमाल करने के बाद बीच से फाड़कर अगर मिट्टी में दबा दिया जाए तो वो खाद बन जाती है. इसकी पैकिंग भी ट्राई फोल्ड में की गई, ताकि महिला और युवतियां इसे अपने बैग में आसानी से ले जा सके.
उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने सेनेटरी पैड पर कोई जीएसटी नहीं रखी है. ऐसे में पैड को एक्चुअल कॉस्ट पर बेचा जा रहा है. अब वो इसे बिजनेस नहीं, बल्कि सोशल बिजनेस का रूप दे रही हैं. यही वजह है कि वो कमाने से अधिक इसकी पहुंच ज्यादा से ज्यादा महिलाओं तक बढ़ाने पर विचार कर रही हैं. साथ ही इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड बनाकर पर्यावरण को भी दूषित होने से बचाने का काम किया है.