शिमला: हर साल 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य वर्तमान और भावी पीढ़ी को जंगलों के प्रति जागरूक करना है, ताकि धरती को वनों की हरियाली से सजाया जा सके. इस बार अंतरराष्ट्रीय वन दिवस 2024 "वन और नवाचार: बेहतर दुनिया के लिए नए समाधान" की थीम पर मनाया जा रहा है. इस थीम का अर्थ ये भी है कि पृथ्वी पर सारा जीवन किसी न किसी तरह से वनों के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है. जीवन यापन के लिए मानवों से लेकर जीवन यापन करने के लिए सभी प्रकृति पर आश्रित है. हिमाचल प्रदेश में का ज्यादातर क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है. हिमाचल के वनों को हरा सोना कहा जाता है.
37 हजार KM से ज्यादा वन क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश में वन राज्य के कुल राजस्व में 1/3 का योगदान देते हैं और एक बड़ी आबादी को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं. वर्तमान में प्रदेश का हरित आवरण 27 फीसदी से अधिक है, वहीं कुल वन क्षेत्र 66 फीसदी है. राज्य ने 2030 तक हरित आवरण 30 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. जिसे हासिल करने के लिए प्रदेश भर में 10 हजार से अधिक नए पौधे रोपे जाएंगे, ताकि इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके. हिमाचल में 31 फीसदी क्षेत्र ट्री लाइन से ऊपर है, जिसमें पेड़ नहीं उग सकते हैं. इसके अलावा प्रदेश में 37 हजार से अधिक किलोमीटर क्षेत्र वनों से लदा है. इसलिए इसे वनों का हरा सोना कहा जाता है.
हिमाचल में इन प्रजातियों के वन
हिमाचल प्रदेश में बान, देवदार, चीड़, राई, पाइन, खैर, सैंबल, ऑक, चिलगोजा आदि सहित पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती है. हिमाचल में वन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं. वन न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है, बल्कि जंगलों से ईंधन, चारा, इमारती लकड़ी, जड़ी-बूटियां, घर निर्माण, बागवानी उत्पादों की पैकेजिंग और कृषि उपकरण जैसी जरूरतें भी पूरी हो रही हैं. ऐसे में जंगलों के बिना मानव जीवन संभव नहीं है. यही कारण है कि प्रदेश के कई स्थानों में देवता का वास समझकर पेड़ों की पूजा की जाती है.
देवताओं के जंगल
देवभूमि हिमाचल के तहत जिला मंडी के करसोग उपमंडल से करीब 25 किलोमीटर दूरी छतरी मार्ग पर नगेलडी इलाके में सड़क के किनारे ऐसा ही एक वनशीरा देवता का मंदिर हैं. जिसे जंगल का राजा भी कहा जाता है. ये देवता गाड़ियों की रक्षा करने के साथ-साथ देवता जंगलों की भी सुरक्षा करते हैं. स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है कि यहां से गुजरते वक्त चाहे कोई कितना भी जल्दी में क्यों ना हो, वाहन चालक यहां रुकते हैं और वनशीरा देवता को नंबर प्लेट या गाड़ियों के पुर्जे चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद ही अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हैं. देवता का वास होने की वजह से यहां पर वन माफिया भी पेड़ काटने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं. मान्यता है कि यहां पेड़ में वनशीरा देवता वास करते हैं.
वनों के लिए सरकार की योजना
हिमाचल प्रदेश में धरती मां की गोद को हरा भरा रखने के लिए प्रदेश सरकार भी प्रयास कर रही है. हिमाचल में ग्रीन एरिया में निर्माण पर प्रतिबंध लगाए जाने के साथ वनों को बचाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं. इसमें सामुदायिक वन संवर्धन योजना, जिसका उद्देश्य पौधरोपण के जरिए वनों के संरक्षण और विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना है. इसी तरह विद्यार्थी वन मित्र योजना चलाई गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को वनों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका के बारे में छात्रों को संवेदनशील बनाना है.
"एक बूटा बेटी के नाम"
एक अन्य योजना वन समृद्धि जन समृद्धि योजना हिमाचल सरकार द्वारा चलाई गई है. जिसका मकसद स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी के जरिए राज्य में उपलब्ध गैर काष्ठ वन उत्पाद संसाधनों को सुदृढ़ करना और अच्छी तकनीक अपनाकर अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करना है. वहीं, साल 2019 से एक नई योजना "एक बूटा बेटी के नाम" चलाई गई है. जिसके तहत राज्य में कहीं भी बालिका शिशु के जन्म पर वन विभाग की ओर से माता-पिता को चयनित वानिकी प्रजाति के पांच पौधे भेंट किए जाते हैं. ऐसे में लड़की के माता-पिता निजी भूमि या वन भूमि में मानसून और शीत ऋतु पौधे रोपकर बेटी पैदा होने की खुशी मनाते हैं.