करनाल: इन दिनों हरियाणा में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. ठंड और कोहरे के डबल अटैक ने एक तरफ जनजीवन को प्रभावित किया है, तो दूसरी तरफ इससे किसानों के चेहरों पर लंबी मुस्कान है. किसानों के मुताबिक ठंड जितनी ज्यादा पड़ेगी, गेहूं की फसल उतनी ही ज्यादा अच्छी होगी. 31 जनवरी और 1 फरवरी को हरियाणा में बारिश और ओलावृष्टि भी हुई है. किसानों के मुताबिक ये बारिश भी उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
गेहूं की बंपर पैदावार होने की उम्मीद: अब गेहूं में पानी देने यानी सिंचाई का समय आ गया है. किसानों के मुताबिक अब जो बारिश हुई है. उसकी वजह से फसल में लगा कीड़ा मर जाएगा. जिससे गेहूं की पैदावार अच्छी होगी. किसानों के मुताबिक अगर मौसम गर्म रहेगा, तो गेहूं में फुटाव नहीं होगा. गेहूं का पौधा बढ़ जाएगा और समय से पहले बाली निकल आएगी. ऐसे में बाली भी छोटी आती है और गेहूं का दाना कमजोर रहता है. कृषि वैज्ञानिकों का भी मानना है कि ठंड जितनी बढ़ेगी, गेहूं की पैदावार उतनी अच्छी होगी.
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने इस बार गेहूं की बंपर पैदावार की उम्मीद जताई है. केंद्र सरकार ने इस बार 114 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है. जिसको लेकर कृषि वैज्ञानिक पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रहे हैं. भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि ठंड जितनी अधिक होती है, गेहूं की पैदावार उतनी ही बढ़ जाती है. कोहरे और पाले से गेहूं की फसल में फुटाव अच्छा होता है.
किसानों के लिए एडवाइजरी जारी: उन्होंने कहा कि अब की बार ठंड लंबी चली है. इस वजह से गेहूं की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है. किसानों के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए उन्होंने कहा कि कोहरे के चलते कई बार फसलों में पीलापन आ जाता है, जिसको लेकर किसानों को ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि धूप निकलने पर ये अपने आप ठीक हो जाएगा. उन्होंने कहा कि फसलों में ये पीलापन पीला रतवा नहीं है.
जलवायु विरोधी किस्म की बिजाई का लक्ष्य: डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि अभी तक क्षेत्र में कहीं भी पीले रतवे की बीमारी की सूचना नहीं है, लेकिन अगर कहीं पीले रतवे का प्रकोप दिखाई दे, तो किसान संस्थान के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सकते हैं. निदेशक ने कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हें 70% क्षेत्र में जलवायु रोधी किस्मों की बिजाई का लक्ष्य दिया था. खुशी की बात है कि इस बार उत्तर भारत के 80% क्षेत्र में किसानों ने जलवायु रोधी किस्मों को अपनाया है.
इन किस्म पर जलवायु परिवर्तन का कोई खास असर नहीं होता है. डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि आने वाले समय में उनका संस्थान स्पेक्ट्रल इमेजिंग तकनीक पर काम कर रहा है. इस तकनीक के विकसित होने पर खेत में गेहूं की कौन सी प्रजाति लगी है. इसका पता लगाया जा सकेगा. इसके अलावा फसलों में कौन सी बीमारी है या कितने उर्वरक की जरूरत है. इसकी भी जानकारी किसानों को मिल सकेगी. अभी इस पर शोध कार्य चल रहा है. वहीं किसानों ने बताया कि सर्दी से गेहूं की फसल को फायदा ही फायदा है.
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