करनाल: अमेरिका ने बुधवार को 104 भारतीयों को डिपोर्ट करके वापस भारत भेजा है. इनमें 33 लोग हरियाणा के हैं. ये वो लोग हैं जो रोजगार के उद्देश्य से अवैध तरीके से अमेरिका गए थे. ये सभी डोंकी रूट से अमेरिका गए थे. इनको अमेरिका ने भारत भेजा है. इन सभी की कहानियां रुला देने वाली है. ये वो युवा हैं, जो एंजेंटों के झांसे में फंस कर विदेश जाने की सोच तो लेते हैं. हालांकि उनको पैसे लेकर एजेंट अलग ही भंवर जाल में फंसा लेता है.
पहले भी अमेरिका से डिपोर्ट हो चुके हैं लोग: अब जो 33 युवा अमेरिका से डिपोर्ट होकर भारत आए है, सबकी कहानी काफी दर्दनाक है. डिपोर्ट की यह कोई पहली कहानी नहीं है. इससे पहले भी सैकड़ों लोग डीपोर्ट होकर अमेरिका से वापस आ चुके हैं. उनमें से कुछ युवा दोबारा विदेश ना जाकर अपना खुद का काम शुरू करके अच्छा खासा पैसा कमा रहे हैं. साथ ही दूसरे युवाओं को भी सलाह दे रहे हैं कि वह लाखों रुपए खर्च करके बाहर न जाएं बल्कि अपना खुद का काम शुरू करें.
करनाल के अंकित ने नहीं मानी हार: ऐसे लोगों में एक है करनाल के कैमला गांव की अंकित. अंकित साल 2019 में 32 लख रुपए लगाकर डोंकी रूट से अमेरिका में गए थे. डोंकी में मेक्सिको से दीवार फांदकर अमेरिका में एंट्री की जाती है. अंकित ने भी ऐसा ही किया था. उसके बाद वह कई महीने अमेरिका की जेल में रहे, लेकिन और लोगों की तरह अंकित बॉन्ड नहीं भर पाए. इस कारण अंकित को डिपोर्ट करके साल 2020 में वापस भारत भेज दिया गया. ऐसे में अंकित के पैसे भी चले गए और वह अमेरिका भी नहीं रह पाया, लेकिन उसने भारत में आकर हार नहीं मानी.उसने एक कैफे शुरू किया, जिसमें वह आज अच्छा खास पैसा कमा रहा है. साथ ही काफी खुश भी है. वह खुद का रोजगार स्थापित कर पाया, जिसके चलते वह दूसरे लोगों से भी अपने ही देश में कुछ काम शुरू करने की सलाह दे रहे हैं.
अंकित ने बताई अपनी आपबीती: अंकित से ईटीवी भारत ने बातचीत की. अंकित ने कहा, "पहले दिल्ली, फिर दिल्ली से फ्लाइट इथोपिया की ओर, उसके बाद ब्राजील की फ्लाइट, फिर 5 दिन ब्राजील के कैंप में रहा. उसके बाद ब्राजील में होटल बुक हुए. कुछ दिन रहे और उसके बाद ब्राजील से सड़क के रास्ते अवैध तरीके से पेरु में एंट्री की. पेरु से 28 घंटे का सफर बस में किया. उसके बाद पिकअप के माध्यम से एक्वाडोर पहुंच गए. इस दौरान एक नदी भी पार की. एक्वाडोर से कोलंबिया सड़क के माध्यम से करीब 10 दिन में पहुंचे. कोलंबिया से समुद्र में पहुंचे. वहां से किश्ती ली. करीब 4.30 घंटे का सफर रहा, जो काफी खतरनाक था. वहां हर पल मौत नजर आती थी."
ऐसा था अंकित का सफर: आगे अंकित ने बताया, " उसके बाद पनामा के जंगल में पहुंचे, जिसे पार करने में पैदल 5 दिन लग गए. वहां पर माफिया भी मिलते हैं, जो डॉलर या बाकी कीमती सामान छीन लेते हैं. उसके बाद पनामा के कैंप में पहुंचे. अलग-अलग 3 कैंप में कई दिन बिताए. उसके बाद सड़क के माध्यम से क्रोस्टीका पहुंचे. उसके बाद सड़क के माध्यम से निकारोगोआ का बॉर्डर पार किए. फिर हांडरस का बॉर्डर सड़क के माध्यम से पार किया और गुहाटामाला पहुंच गए. इसके बाद सड़क के माध्यम से मैक्सिको पहुंचे."
ट्रंप के ही शासनकाल में हुआ था डिपोर्ट: अंकित ने ईटीवी भारत को आगे कहा कि, "मैक्सिको कैंप में कुछ दिन रहे. मैक्सिको से यूएसए के बॉर्डर तक बस ली फिर दीवार क्रॉस करके यूएसए में प्रवेश कर गए. उसके बाद यूएसए के अलग-अलग कैंप और जेल में कई दिन बिताए. घर वालों से बात नहीं होती थी. समय पर खाना नहीं होता था. जेल में टॉर्चर किया जाता था. ऐसे कई कैम्प और जेल में वक्त बिताया. जब बॉन्ड भरने की बारी आई तो मुझे बॉन्ड भरने का मौका ही नहीं मिला, इसके बाद मुझे भारत डिपोर्ट कर दिया गया. उस समय भी ट्रंप की सरकार थी."
युवाओं से अपील कर रहा हूं कि डोंकी रूट से जाने के बजाए सही रास्ता अपनाएंं. अपने देश में रहकर काम करें, हार ना मानें. -अंकित
युवाओं से कर रहे अपील: करनाल का अंकित तो साल 2020 में वापस भारत आ गए और आज अपना कैफे चलाते हैं. हालांकि ऐसे कई अंकित आज भी वहां फंसे हुए हैं. ऐसे लोगों से अंकित ने देश में रहकर रोजगार की अपील की. अंकित ने देश वापस आकर अपना कर्ज उतारा. अब वो दूसरे युवाओं को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वो देश में रहें. विदेश जाकर कमाने से बेहतर है देश में रहकर कमाना.
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