नई दिल्ली: मात्र 23 किलोग्राम वजन की 65 वर्षीय महिला की लो-वेट बाइलेटरल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया. दिल्ली के एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने सफलतापूर्वक इस सर्जरी को अंजाम दिया. डॉक्टरों का दावा है कि देश में वह इतने कम वजन की पहली ऐसी महिला हैं, जिनकी इतनी जटिल किस्म की सर्जरी की गई है. महिला की सर्जरी करने वाले डॉक्टर अश्विनी मायचंद ने बताया कि मरीज गंभीर आर्थराइटिस के कारण पिछले दो वर्षों से बिस्तर पर थीं. सर्जरी के बाद वह दोबारा चलने-फिरने में सक्षम हो गई हैं.
पिछले दो वर्षों से मरीज शुभांगी देवी दोनों कूल्हों में तेज दर्द की समस्या से पीड़ित थीं, जो उम्र बढ़ने की वजह से आर्थराइटिस में बदल गया था. वह व्हीलचेयर के सहारे ही चलती-फिरती थीं. इस बीच उनकी हालत और बिगड़ गई. जिससे उनका इलाज कर रही मेडिकल टीम के लिए भी काफी चुनौतियां बढ़ गई. डॉ. अश्वनी मायचंद ने बताया कि सबसे बड़ा रिस्क सर्जरी के दौरान बोन फ्रैक्चर का था. क्योंकि उनकी हड्डियां काफी कमजोर हो गई थीं. वह कैल्शियम की कमी के साथ ऑस्टियोपोरोसिस से भी जूझ रही थीं.
कम वजन और लंबाई के कारण इंप्लांट करना था कठिन: डॉक्टर ने बताया कि कम वजन और कम लंबाई के कारण उनकी हड्डियों का आकार भी कम था, जिसकी वजह से इंप्लांट का प्लेसमेंट करना काफी मुश्किल काम था. मरीज की नाजुक हालत और अत्यधिक कम वजन के बावजूद मेडिकल टीम ने उनके इलाज के लिए सर्वोत्तम विकल्प के रूप में मिनीमली इन्वेसिव सर्जरी (एमआईएस) को चुना. मिनीमली इनवेसिव सर्जरी (एमआईएस) में छोटे आकार के चीरे लगाए जाते हैं. ऐसी एडवांस तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कम से कम टिश्यू डैमेज होते हैं. यानी मरीज को ऑपरेशन के बाद कम तकलीफ होती है. रिकवरी भी तेजी से होता है और कम समय में नॉर्मल रूटीन में लौट पाते हैं.
सभी चुनौतियों को कुशलतापूर्वक निपटाया: डॉक्टर ने बताया कि इस मामले में मरीज की दो सर्जरी की गई. पहली सर्जरी दाएं कूल्हे पर और दूसरी बाएं कूल्हे पर की गई. दोनों को ही बेहद सावधानीपूर्वक प्लान किया गया था. करीब एक घंटे में ही दोनों सर्जरी को पूरा किया गया. मरीज की अधिक उम्र को देखते हुए एनेस्थीसिया के इस्तेमाल को लेकर भी ज्यादा रिस्क था. मेडिकल टीम ने ऐसी सभी चुनौतियों को कुशलतापूर्वक निपटाया. सर्जरी के बाद मरीज की रिकवरी बिना किसी जटिलता के सामान्य तरीके से हो रही है. सर्जरी के बाद अगले ही दिन वह वॉकर की मदद से चलने लगी थीं और छह दिन बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई. मरीज इसके अलावा अन्य किसी रोग से पीड़ित नहीं थी और न ही उनके परिवार में ऐसी किसी कंडीशन की कोई हिस्ट्री थी.
ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त हड्डियों में फ्रैक्चर: डॉ अश्विनी मायचंद ने बताया कि यह केस इस वजह से काफी अलग और चुनौतीपूर्ण था कि मरीज का वजन बेहद कम था, जिसके चलते उनकी डुअल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी अत्यंत दुर्लभ हो गई. सबसे प्रमुख चुनौती उनकी ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त हड्डियों में फ्रैक्चर को लेकर थी, क्योंकि ये हड्डियां काफी नाजुक और आकार में छोटी थीं. हमने काफी सावधानीपूर्वक सर्जरी की तैयारी की और बिना किसी जटिलता के सफलतापूर्वक इसे अंजाम दिया. यह उपलब्धि हमारी टीम की क्षमता और हमारे अस्पताल में मरीजों के लिए उपलब्ध एडवांस केयर का सबूत है. ऐसे मरीजों की ऑपरेशन के बाद देखभाल भी काफी महत्वपूर्ण होती है. रेगुलर फॉलो-अप के अलावा उचित डाइट और फिजियोथेरेपी उनके इंप्लांट्स की लंबी उम्र तथा मरीज के स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं.
दो साल तक बाहर की दुनिया नहीं देखी: सर्जरी के बाद स्वास्थ्य लाभ ले रही मरीज शुभांगी देवी ने ETV Bharat को बताया कि पहले दर्द और परेशानी के कारण बिस्तर पर पड़ी थी. दो साल तक बाहर की दुनिया नहीं देखी थी. अब सर्जरी के बाद काफी आराम है. चल फिर सकती हूं और बाहर निकल कर लोगों को देख रही हूं. अच्छा लग रहा है. उन्होंने बताया कि वह गोरखपुर की रहने वाली हैं और उससे पहले गोरखपुर, कानपुर और कई जगह उन्होंने इलाज कराया, लेकिन उनको कोई फायदा नहीं मिला. फिर उनके परिवार से किसी ने मोबाइल पर अस्पताल और डॉक्टर के बारे में जानकारी देखी. उसके बाद वह दिल्ली इलाज के लिए आई.
बढ़ रहा हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी का चलन: उन्होंने बताया कि भारत में हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी अब काफी तेजी से आम होती जा रही हैं. आर्थराइटिस के बढ़ते मामलों और बुजुर्ग आबादी के मद्देनज़र, देश में हर साल करीब 50,000 से अधिक ऐसी सर्जरी की जा रही हैं. लेकिन तमाम प्रगति के बावजूद आज भी ग्रामीण इलाकों की पहुंच इस प्रकार की सुविधाओं तक काफी सीमित है. इस प्रकार की सफल सर्जरी यह संदेश देती है कि गंभीर आर्थराइटिस से पीड़ित बुजुर्ग मरीजों के लिए समय पर मेडिकल इंटरवेंशन काफी महत्वपूर्ण है. यदि ऐसे में इलाज नहीं किया जाए, तो कंडीशन बिगड़कर और भी कई जटिलताओं जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, बेडसोर और इंफेक्शन आदि का कारण बन सकती है.
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